पुलिस को मिली दो लाख की एक सीडी!
बरेली पुलिस का जवाब नहीं है। पुलिस मॉडर्नाइजेशन के लिए पैसा मिला सरकार से। सुविधा मिलनी थी पब्लिक को लेकिन पैसा खर्च भी हो गया और सुविधा का कोई अता-पता ही नहीं है। खर्च का जब हिसाब किताब पता करने की कोशिश की गई तो पता चला कि दो लाख रुपए से सिर्फ एक सीडी ही सामने आ पाई और वह सीडी भी करप्ट निकली। जनता को सुविधा न मिलनी थी और न मिली लेकिन केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना का पूरे उत्तर प्रदेश में हाल बेहाल हो गया। अगर बरेली डिस्ट्रिक्ट की बात करें तो स्थिति हास्यास्पद ही नजर आती है।

ठगी गई जनता
केंद्र ने सीसीटीएनएस(क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम) के नाम से एक परियोजना की शुरुआत 2009 में की थी। इसका मकसद पहले से लागू सीपा(कॉमन इंटीग्रेटेड सिस्टम) और इसके पहले लागू सीसीआईएस(क्राइम एंड क्रिमिनल इंफॉरमेशन सिस्टम) में होने वाली कमियों को दूर करना था। इस योजना के तहत पूरे उत्तर प्रदेश के सभी थानों(लगभग 14 हजार के ऊपर), वरिष्ठ अधिकारियों के ऑफिस (सीओ, अपर पुलिस अधीक्षक, पुलिस अधीक्षक, परिक्षेत्रीय कार्यालय, डीजीपी मुख्यालय), पुलिस कंट्रोल रूम अन्य इन्वेस्टीगेटिंग एजेंसीज जैसे सीबीसीआईडी, ईओडब्ल्यू को कम्प्यूटराइज कर नेटवर्किंग के माध्यम से आपस में जोडऩे की व्यवस्था है। इस योजना के लागू हो जाने के बाद आम जनता घर से ही अपनी कंप्लेन कंप्यूटर पर इंटरनेट के माध्यम से पुलिस अधिकारियों के पास पहुंचा सकती है. 

कैसे होता काम?
इस योजना के तहत एक यूनिक कोड जैसा रेलवे पीएनआर की तरह होता है वैसा ही दिया जाएगा। उस कोड के माध्यम से वह अपनी कंप्लेन को घर बैठे ही देख सकता है। इसके अलावा इस योजना में चरित्र सत्यापन, शस्त्र लाइसेंस, धरना प्रदर्शन की अनुमति के लिए आवेदन करने की आन लाइन व्यवस्था है। इस योजना में डेटा फीडिंग थाने स्तर पर करने की बात कही गई थी और कंप्लेनेंट को एफआईआर की कंप्यूटरीकृत प्रतिलिपि देने की बात कही गई थी। इसके लिए एनसीआरबी को नोडल एजेंसी बनाया गया था। विप्रो के माध्यम से सॉफ्टवेयर को यूपी के 3 जिलों (गौतमबुद्ध नगर, लखनऊ और बनारस) में पायलट टेस्टिंग के तौर पर लागू करने की बात कही गई थी।

जिम्मेदारी स्टेट की
सूत्रों की मानें तो इस प्रोजेक्ट की प्लानिंग सेंट्रल स्तर पर होम मिनिस्ट्री एवं एनसीआरबी में की गई थी, जबकि प्रोजेक्ट को लागू करने की पूरी जिम्मेदारी स्टेट की थी। इसके लिए सेंट्रल से अनुदान देने की बात कही गई थी। यूपी में इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए टेक्निकल सेवाएं मुख्यालय लखनऊ को नोडल एजेंसी बनाया गया था। यहीं से सारे काम संचालित होने थे।

दम तोड़ गई योजनाएं
इन परियोजनाओं के लागू होने के बाद जनता को बहुत फायदा हो जाता, लेकिन केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना ने उत्तर प्रदेश में पहुंचते ही दम तोड़ दिया। बरेली में तो शायद ही कोई हो जो सरकार की इस योजना के बारे में जानता हो। बात करने पर ज्यादातर पुलिस वालों को भी सीसीटीएनएस के बारे में जानकारी नहीं थी।

योजना में जो काम होने थे
-थाने एवं आला अधिकारियों के ऑफिस में कंप्यूटर एवं सहवर्ती उपकरणों की सम्पूर्ति।
-सभी कंप्यूटरों को नेटवर्किंग से जोडऩे की कवायद।
-सभी थानों में जनरेटर की व्यवस्था।
-पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग।
-पिछले 10 सालों के अभिलेखों को कंप्यूटरीकृत किया जाना।
-सेंट्रल गर्वमेंट के द्वारा उपलब्ध कराए गए साफ्टवेयर को लोकल नीड के मुताबिक कस्टमाइज कराना और नए माड्यूलस को जोडऩा।
-चेंज मैनेजमेंट के लिए वर्कशाप को आर्गेनाइज करना।


पुलिस डिपार्टमेंट को फायदा
-मैनुअल काम में कमी।
-डुप्लीकेट काम की जरूरत नहीं।
-थानों के रजिस्टर खुद ब खुद बन जाएंगे।
-कोई भी रिपोर्ट तत्काल निकाली जा सकेगी।
-देश के किसी भी कोने से क्राइम एवं अपराधियों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। जिससे क्राइम नियंत्रण एवं विवेचना में लाभ होगा।
-आलाधिकारी थानों की एवं दूसरी विवेचनाओं की ऑन लाइन मानीटरिंग कर सकेंगे।
-पुलिस डिपार्टमेंट में पारदर्शिता आएगी।


पैसा आया कहां से पैसा गया कहां रे
पुलिस मॉडर्नाइजेशन की इस अति महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए प्रदेश सरकार ने विभिन्न डिस्ट्रिक्ट के पुलिस एडमिनिस्ट्रेशन से उनके बैंक एकाउंट नंबर मांगे थे। इसमें बरेली भी शामिल था। बरेली डिस्ट्रिक्ट को परियोजना को लागू करने के लिए इस मद में दो लाख चार हजार रुपए जून 2011 में दिए गए थे। इसमें डिस्ट्रिक्ट पुलिस ने ज्यादातर रुपयों को सीसीटीएनएस परियोजना पर खर्च कर दिया।

अब सिर्फ 329 रुपए बचे
बरेली पुलिस के बैंक एकाउंट नंबर ********** में 30 दिसंबर 2011 को 329 रुपए बकाया बचे। ब्याज मिलने के बाद अब बैंक एकाउंट में 2310 रुपए शेष हैं। परियोजना के मद में मिले सारे रुपयों को खर्च कर दिया गया है.  आई-नेक्स्ट ने जब इस परियोजना की जमीनी हकीकत को तलाशने की कोशिश की तो काफी चौंकाने वाली बातें सामने आईं।

एक सीडी

बरेली पुलिस के सीनियर ऑफिसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि स्टेट गर्वमेंट की ओर से एक सीडी सीसीटीएनएस परियोजना के लिए भेजी गई थी, जिसको अभी तक केवल डीआईजी कार्यालय में डाउनलोड किया गया। वह सीडी भी करप्ट निकली और काम नहीं कर सकी। आप खुद ही सोंचे कि जब पहले के प्रोजेक्ट अधर में थे तो स्टेट और सेंट्रल गवर्नमेंट ने जांच क्यों नहीं की। उनके द्वारा भेजे रुपयों का सदुपयोग हुआ या दुरपयोग इस बारे में सरकार का कोई ध्यान नहीं है। वो पैसा भेज कर निश्चिंत हो जाती है और अधिकारी अपने रिकॉर्ड को मजबूत करके। अगर ये फैसिलिटी हर थाना स्तर पर लागू हो जाती तो पुलिस की छवि भी सुधरती और जनता को भी सुविधा होती।

परियोजना के लिए
बरेली डिस्ट्रिक्ट को मिला पैसा दो लाख चार हजार रुपए
अनुदान मिला  जून 2011 में खर्च होने के बाद अवशेष (30 दिसंबर 2011 को) 329 रुपए ब्याज के साथ पुलिस के अकाउंट में राशि 2310 रुपए

मैं आम आदमी हूं

मेरा नाम रामकुमार (बदला नाम) है। बीते फरवरी के महीने में मैं शहर कोतवाली में मोबाइल चोरी की कंप्लेन दर्ज कराने गया था। मुझसे कंप्लेन दर्ज करने के लिए कोतवाली पुलिस ने पैसों की मांग की। टूटे पैसों की बात कहने पर कोतवाली पुलिस ने मुझसे  500 रुपए ले लिया और 400 रुपए वापस दे दिए। वैसे भी यह कोई नई बात तो है नहीं। मुझे पता है कि थाने कोतवाली में बिना पैसे कोई काम होने वाला नहीं है। एफआईआर की डुप्लिकेट कॉपी लेनी हो या अपने केस का लेटेस्ट स्टेटस जानना हो बिना चढ़ावा चढ़ाए आपका काम नहीं हो सकता। अगर पब्लिक के लिए शुरू होने वाली उक्त सुविधाएं लागू हो जाएं तो कहना ही क्या। सबसे अधिक सुविधा आम आदमी को ही होगी, पुलिस थानों में होने वाली परेशानियों से बचा जा सकेगा।
जैसा आई-नेक्स्ट को बताया।

सीसीटीएनएस से पब्लिक को लाभ
-घर से ही कंप्लेन दर्ज करने की सुविधा
-क्राइम एवं क्रिमिनल के बारे में गोपनीय सूचनाएं कंप्यूटर के माध्यम से ही दे सकेंगे
-कैरेक्टर सर्टिफिकेट, नौकरों का सत्यापन, किराएदारों का सत्यापन, शस्त्र लाइसेंस आदि का इंटरनेट के माध्यम से ही आवेदन किया जा सकता है। इसके लिए पब्लिक को थाने जाने की जरूरत नहीं होगी।
-अपने कंप्लेन की लेटेस्ट स्टेटज भी ऑनलाइन देखी जा सकती है।


यूपी अभी कोसों दूर
छत्तीसगढ़, चेन्नई, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक समेत कई ऐसे स्टेट हैं जहां स्टेट गर्वनमेंट ने या तो सीसीटीएनएस प्रोजेक्ट को लागू कर दिया है या बड़ी तेजी से इसे लागू करने को प्रयासरत हैं, लेकिन यूपी पुलिस अभी इससे कोसों दूर है।
-इसे 2011 में यूपी के सभी जिलों में स्टार्ट होना था, लेकिन 2012 आ जाने के बाद भी लागू नहीं हुई सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना।
-इसमें डेटा फीडिंग का काम थाना स्तर पर किया जाना था जब डीआईजी ऑफिस ही जब इस फैसिलिटी से अछूता है तो थानों की बात बेमानी है।
-इसमें कंप्लेन को घर बैठे लॉज करने की सुविधा थी जो सपना बनकर रह गई।
-इसमें एफआईआर की प्रिंटेड कापी कंप्लेनेंट को देने की फैसिलिटी भी थी जो लागू न हो सकी।

डीआईजी साहब कहते हैं कि
डीआईजी राजकुमार भी स्वीकार करते हैं कि अभी तक डिस्ट्रिक्ट के किसी थाने में सीसीटीएनएस फैसिलिटी नहीं है। हां लेकिन प्रयास किए जा रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि दो लाख रुपए डिस्ट्रिक्ट पुलिस ने किस मद में खर्च कर दिए उसका भी जवाब आलाधिकारियों के पास नहीं है। रुपया कहां और किस मद में खर्च हुआ इसकी तुरंत जांच करवाई जाएगी।
Report by: Amber chaturvedi