बरेली (ब्यूरो)। घर में शादी का उल्लास हो और इसकी गूंज कई दिनों पहले से नहीं सुनाई दे तो वह घर सूना-सूना सा ही लगता है। शादी वाले घर में यह गूंज सुनाई देती है ढोल की थाप पर बन्ना-बन्नी के गीतों से। इन गीतों को महिलाएं एक विशेष लय में पूरे जोश से गाती हैं। विवाह के इन लोकगीतों की लोकप्रियता पर बाहरी चकाचौंध हावी हो रही है। विवाह के मौके पर इन लोकगीतों को गाने की परंपरा पुरातन से ही पीढ़ी दर पीढ़ी ट्रांसफर होते रही है, पर अब नई जनरेशन इस परंपरा को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं है। पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ समूह में गाए जाने वाले इन गीतों की जगह अब फिल्मी गीतों पर डांस और मस्ती का क्रेज ज्यादा दिखने लगा है। विवाह समारोह की हर चीज अब बॉलीवुड बेस्ड सी हो गई है। इससे शादी वाले घरों और विवाह मंडप में बन्ना-बन्नी के सुरीले गीतों के सुर मद्धम पड़ गए हैं। भारतीय संस्कृति की इस परंपरा को बचाने के लिए अगर प्रयास नहीं हुए तो हर खुशी के मौके पर गाए जाने वाले लोकगीतों के लुप्तप्राय होने में बहुत अधिक समय नहीं लगेगा।
अब गीत भी पहले से डिसाइड
शादी समारोह अब फिल्मी हो गया है। यह ही वजह है कि इस समारोह का हर कार्यक्रम फिल्मी अंदाज में आयोजित होने लगा है। दुल्हा-दुल्हन की ड्रेस, मेकअप, डांस, सांग सब पहले से ही डिसाइड हो जाते हैं। फिल्मी सांग पर डांस के लिए तो दुल्हन से लेकर घर की महिलाएं तक कई दिन पहले से रिहर्सल करने लगती हैं। इसके लिए कोरियाग्राफर तक हायर किया जाने लगा है। इस मौके पर किस गाने पर डांस करना है, इसको लेकर सबसे ज्यादा कंफ्यूज गल्र्स रहती हैं।
बन्नी-बन्ना गीत
बन्ना बन्नी से कहे बोलो मिलोगी कहां, बोलो मिलोगी कहां
बन्नी बोली कि मंडप के बीच आधी रात को
मैं तो टीका भी लाया बड़ी दूर से
मैं तो झुमका भी लाया बड़ी दूर से
मैं तो नथनी भी लाया बड़ी दूर से
बोलो पहनोगी कहां
तुझे देखूंगा कहां
बन्नी बोली कि मंडप के बीच आध्ी रात को
मैं तो हरवा भी लाया बड़ी दूर से
मैं तो चूडिय़ां भी लाया बड़ी दूर से
मैं तो मुंदरी भी लाया बड़ी दूर से
बोलो पहनेगी कहां
तुझे देखूंगा कहां
बन्नी बोली कि मंडप के बीच आधी रात को
होती थी तैयारियां
उम्र के छह दसक पार कर चुकीं मीरा गुप्ता कहती हैं कि पहले शादी समारोह से जुड़ी हर तैयारी सब लोग मिलकर करते थे। अब नई जनरेशन को इससे कोई वास्ता नहीं है। खासकर घर की नई बहुओं और बेटियों के लिए तो यह मौका जैसे डांस भर के लिए रह गया है। वह इसकी ही तैयारी में जुटी रहती हैं। विवाह समारोह से जुड़ी पंरपराओं में काफी बदलाव आ चुका है।
क्रेज हुआ कम
शादी समारोह की परंपराओं को लेकर अब लोगों में पहले जैसा क्रेज नहीं रह गया है। यही वजह है कि शादी वाले घर में कई दिनों पहले से ही बजने वाली ढोलक अब नहीं सुनाई देती है। नई जनरेशन अब ढोलक्र मजीरा, खड़ताल, चिमटा के साथ न तो गाना चाहती हैं और न ही उनको यह बजाना आता है।
एक नजर इतिहास पर
इतिहास राजस्थान के राजपूतों में अविवाहित युवकों को बन्ना कहा जाता है, जो संभवत: राजकुमार का पर्याय है। विवाह के समय वर-वधु को भी राजकुमारों जैसा ही लाड़ लड़ाया जाता है। इस दौरान उन्हें भी बन्ना-बन्नी कहते है। दूल्हा-दुल्हन के लाड़ के लिए गाए जाने वाले गीत भी बन्ना-बन्नी लोकगीत कहलाते है।
फिल्मों में बन्ना-बन्नी
लोगों ने अपनी शादी से बन्ना-बन्नी के गीत दूर कर दिए हैं। फिल्मों में कम से कम अभी यह गीत जिंदा हैं। ये ही गीत अब घरों में गाए जाते हैं और इन पर ही डांस भी होता है। शादी के मौके पर घरों में बन्नो तेरी अखियां सुरमे दानी, राजा की आएगी बरात, रंगीली होगी रात, मगन मैं नाचूंगी, तो महिलाओं के पसंदीदा गीत हैं। बन्नो रे बन्नो तेरा गुड्डा परदेशिया, इस गीत पर भी महिलाएं उत्साह से डांस करती हैं।
बजने लगती थी ढोलक
पहले शादी वाले घर में लेडिज बन्ना-बन्नी के गीत गाने के लिए तैयारियां करने लगती थी। ढोकल घर में नहीं होता तो पहले से इसकी व्यवस्था कर ली जाती थी। इसके बाद ढोलक की थाप पर गाए जाने वाले बन्ना-बन्नी के गीतों से पूरे घर में रौनक हो जाती थी। इस मौके पर जिसको यह गीत नहीं भी आते थे तो वह दादी, ताई, चाचाी से पूछ कर याद करने लगती थी।
आधुनिकता में खो गए रिवाज
साहित्यकार डॉ। मीता गुप्ता ने बताया कि शादी के रीति रिवाजों में बन्ना-बन्नी के गीत सबसे बड़ा आकर्षण हुआ करते थे। महीने भर पहले गांव में घरों में ढोलक बैठा दी जाती थी। अपने दिन भर के कामकाज को पूरा करके महिलाएं शादी की तैयारी नाचते गाते, ढोलक बजाते और बन्ना-बन्नी के गीत गाते हुए पूरी करती। बन्ना-बन्नी गीत न केवल सुरीले हुआ करते थे, बल्कि वातावरण को रोमानी बनाते थे। यह सामाजिकता, सौहार्द और आपसी प्रेम का प्रतीक भी थे। बदलते हुए समय के साथ लोगों के पास समय की कमी होने लगी है। विवाह के उत्सव आधुनिकता के कुहासे में कहीं खोने लगे हैं और बन्ना-बन्नी के गीत भी गुम हो गए हैं। आज विवाह के अवसर पर डीजे पर गीत बजाकर नृत्य करने में लोग अपनी शान समझते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोग बहुत भौतिकतावादी हो गए हैं। समाज में अपनी प्रतिष्ठा दिखाने के लिए हजारों रुपए के कोरियोग्राफर घर बुलाए जाते हैं। वे घर वालों को नाचना सीखाते हैं। मानो विवाह नहीं ,कोई प्रदर्शनी हो, जिसमें सब अव्वल आना चाहते हैं। इसमें चाहे वह दूल्हे के चाचा- चाची हों या मामा-मामी या फिर दादा-दादी।
राजपूत लडक़ों को कहते हैं बन्ना
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ। राजेश शर्मा ने बताया कि राजस्थान और हरियाणा में राजपूत लडक़ों को बन्ना कहा जाता है। इनके विवाह के समय इनको लाड़ लड़ाते जो गीत घर परिवार की महिलाएं गाती थीं, वही गीत बन्ना बन्नी के गीतों से हिंदी बेल्ट में मसहूर हो गए। अब न तो हरियाला बन्ना है, अब बन्नी का लहंगा भी लाख तारों वाला नहीं रहा। अब फिल्मी डीजे ने शादी वाले परिवारों के रात के खाने के बाद होने वाले मनोरंजन को लील लिया है। गांव में भी अब ये बन्ना-बन्नी गीत बहुत कम रह गया है। नहीं तो ढोलक की थाप पर जब ये गीत गूँजते थे तो इनमें सरस हास्य के साथ हमारी पारंपरिक विरासत भी गूंजती थी।
डॉ। लवलेश दत्त ने बताया कि आजकल विवाह का समय चल रहा है। विवाह यानी ढेर सारे रीति-रिवाज और गाना बजाना। गाने-बजाने का अर्थ तो आजकल डीजे या बड़े-बड़े म्युजिक सिस्टम लगाने से ही समझा जाता है। विवाह के अवसर पर गाने बजाने का अर्थ लोकगीतों से होता है, जिसमें मुख्य रूप से बन्ने-बन्नी गाये जाते हैं। आज की पीढ़ी भले ही इसे दकियानूसी और बैकवर्ड माने पर नवविवाहित जोड़े को गाने बजाने के माध्यम से नैतिक मूल्य प्रदान करने का कार्य इन बन्ने - बन्नी में मिलता है।
शहरों में जब विवाह के अवसर पर पारंपरिक लोकगीतों करी परंपरा लगभग खत्म ही होता जा रहा है। आजकल डीजे पर फिल्मी गीतों का ज्यादा चलन हो गया है। पहले विवाह के हर अवसर पर अलग-अलग गीत होते थे। महिलाएं काफी दिन पहले ही ढोलक की थाप पर परिवार के गीत गाने लगती है।
-सिया सचदेव