बरेली (ब्यूरो)। 70-80 के दशक में पैदा हुए लोग वो आखिरी जनरेशन हैं, जिन्हें लोरी सुनकर नींद आती थी। अब बच्चे मोबाइल देखते हुए लुढक़ कर सो जाते हैं। न तो अब मांओं को लोरियां याद हैं और न बच्चे उनके बारे में जानते हैं। लोरी का इतिहास बहुत-बहुत पुराना है। बेबीलोनिया की मां ने भी चार हजार साल पहले अपने बच्चे के लिए लोरी गाई थी। इससे पता चलता है कि पूरी दुनिया की मांएं अपने बच्चों को लोरी गाकर सुलाती थीं। अलग-अलग देशों में लोरी का स्वरूप अलग-अलग है। एक मजेदार फैक्ट यह भी है कि भारत के अलग-अलग प्रांतों में जो लोरियां हैं, उनमें से अधिकांश में चंदा मामा का जिक्र जरूर मिलता है। स्वीडन की लोरियां ऐसी होती हैं, जिनमें मासूमों को सुलाने के साथ ही उन्हें शब्द सिखाने की कोशिश की जाती है। चिल्ड्रंस डे पर लोरी की मीठी बातों के सफर पर चलते हैं कुमार रहमान के साथ

लोरी बनाती थी कल्पनाशील
लोरी मन को शांत करती थी और कल्पनाशील बनाती थी। बच्चा इन्हें सुनते हुए कल्पना के सागर में गोते लगाते हुए ही नींद के विभिन्न स्तरों में क्रमश: डूबता चला जाता था। रिसर्च बताती हैं कि लोरी से बच्चे रिद्म और संगीत को सहज रूप में समझने लगते हैं। लोरी से बच्चे नए शब्दों को सीखते थे। लोरी से बच्चे कुदरत को महसूस करते थे। इतना ही नहीं लोरी बिना अब बच्चे का मां से नींद में जाने से पहले का कनेक्शन भी खत्म हो रहा है। लोरी उसकी लाइफ के लिए सहज है और मोबाइल असहज। बरसों बरस से इस लोरी का फाया मां अपने बच्चों की आंखों पर रख कर उन्हें मीठी नींद में सुलाती आई हैं।

लल्ला-लल्ला लोरी
दूध की कटोरी
दूध में बताशा
मुन्ना करे तमाशा

बेबीलोनिया की मां की लोरी
लोरी की रिवायत सिर्फ भारत में ही नहीं थी। इतिहास बताता है कि चार हजार साल पहले बेबीलोनिया की किसी मां ने पहली बार अपने बच्चे को सुलाने के लिए लोरी गाई थी। ईसा से दो हजार साल पहले का मिट्टी का एक छोटा सा टुकड़ा मिला है। हथेली में समा जाने वाला मिट्टी का ये नन्हा सा लोरी का पहला लिखित सबूत है। इस पर लोरी के शब्द उकेरे गए हैं। ये शिलालेख बताता है कि लोरी गुनगुनाने का इतिहास कितना पुराना है! इस शिलालेख पर गुदे शब्दों का मतलब निकाला गया है कि जब एक बच्चा रोता है तो ईश्वर विचलित हो जाते हैं। फिर उस का परिणाम अच्छा नहीं होता। इस शिलालेख को लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम में रखा गया है।

मदालसा को मानते हैं लोरी की जननी
पौराणिक काल में भी लोरी गाकर बच्चों को सुलाने का जिक्र मिलता है। प्रसिद्ध गंधर्वराज विश्वावसु की पुत्री मदालसा ने अपने बच्चे अलर्क को सुलाने के लिए लोरी गाई थी। वह लोरी सुनाती हैं और बालक अलर्क धीरे-धीरे नींद की वादियों में उतरता चला जाता है। मदालसा को लोरी की जननी भी कहा जाता है।

भगवान राम भी सुनते थे लोरी
भगवान राम जब बालक रूप में थे तो माता कौशल्या उन्हें लोरी गाकर सुलाती थीं। तुलसीदास गीतावली में लिखते हैं,
पौढिय़े लालन पालने हौं झुलावौं
कद पद सुखं चक कमल लसत लखि
लौचन भंवर बुलावौ

कान्हा को भी पसंद थी लोरी
द्वापर युग में माता यशोदा अपने नंद गोपाल भगवान कृष्ण को लोरी सुनाती थीं। सूरदास ने लिखा है,
यशोदा हरि पालने में झुलावे
हलरावै दुलरावे मल्हरावै, जोई जोई कुछ गावै
मेरे लाल को आऊ निदरिया, काहौ न आये निदरिया

क्या कहती है रिसर्च
लोरी के बारे में कुछ दिलचलस्प स्टडी भी सामने आई है। अमरीका में म्यामी के फ्र ॉस्ट स्कूल ऑफ म्यूजिक में लोरी पर रिसर्च की गई है। इस रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि बच्चों को लोरी सुनाने से उनकी सेहत और मानिसक विकास बेहतर होता है। इसके साथ ही मां को भी इससे काफी फायदा मिलता है। लोरी से उनका न सिर्फ तनाव कम होता है बल्कि उनमें पॉजिटिव एनर्जी भी आती है। चेन्नई में हुई एक स्टडी से पता चलता है कि लोरी का फायदा बड़ों को भी होता है। लोरी उन्हें सुकून पहुंचाती है। लोरी या इस जैसा रिलैक्सिंग म्यूजिक सुनने से उनमें स्ट्रेस हॉर्मोन्स कम होते हैं। इससे उन्हें अच्छी और गहरी नींद आती है।

लोरी ले जाती है नींद की दुनिया में
बच्चों पर कई शोधपरक किताबें लिख चुके राइटर गोड्डार्ड ब्लेथ (त्रशस्रस्रड्डह्म्स्र) बडी कहते हैं कि लोरी का स्वरूप भले अलग-अलग हो, लेकिन यह दुनिया भर के बच्चों को नींद की दुनिया में ले जाती हैं। कहीं-कहीं लोरियों के शब्दों का कोई अर्थ ही नहीं निकलता है। वह कहते हैं कि लोरी की सबसे खास बात उसका रिद्म और गायन है। यह रिद्म और गायन ही बच्चे के लिए अहम है। एक छोटा बच्चा शुरू में शब्दों के अर्थ नहीं जानता, लेकिन लय और धुन की समझ उसे होती है। ब्लेथ कहते हैं कि गर्भ के चौबीसवें सप्ताह में ही बच्चा मां की आवाज़ सुनने लगता है। इसका मतलब है कि पैदा होने के बाद बच्चे को सुनकर चीजों को ग्रहण करना धीरे-धीरे आने लगता है।


लोरियों से बच्चों को पीसफुल नींद आती थी। वह धीरे-धीरे गहरी नींद में उतरते चले जाते थे। बच्चों को खतरनाक सपने नहीं आते थे। मोबाइल से बच्चों को अच्छी नींद नहीं आती है। वह ख्वाब में डरते हैं। बार-बार चौंक उठते हैं। उन्हें डरावनी आवाजें आती हैं। कई बार बच्चे डरकर बिस्तर को गीला भी कर देते हैं। धीरे-धीरे बच्चे चिड़चिड़े होते जाते हैं।

खुश अदा
क्लिनिकल साइकोलाजिस्ट

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मैं अपने बेटे को ऐसे ही गोद में लिटाकर सुला देती हूं। क्योंकि मुझे लोरी नहीं आती है। हां कभी-कभी अगर बेटा नहीं सोता है। तो गाना गाकर सुला देती हूं। यह तो पहले के जमाने में महिलाएं अपने बच्चे को लोरी सुनाकर सुलाती होगी लेकिन अब तो शायद ही कोई रोली सुनाकर सुलाता हो।
पायल गुप्ता,

लोरी सुनाना अच्छी बात है। जब लोरी सुनाकर बच्चे को सुलाते है तो उसका ध्यान लोरी में होता है और उसको अच्छी नींद और जल्दी आ जाती है। क्योकि वह गुनगुनाने से खुश होने लगता है। लेकिन मुझे लोरी नहीं आती है। हम अपने बच्चे को ऐसे ही गोद में लिटाकर सुला लेती हूं।
कविता,


पहले मेरी मां मुझे लोरी सुनाकर सुलाती थी। ऐसा मेरी मां ने मुझे बताया। लेकिन मैं अपने बच्चे को ऐसे ही बेड पर लिटाकर सुला देतीं हूं। क्योकि मुझे लोरी आती भी नहीं है और आज के टाइम में तो कोई ही सुनाता होगा। टाइम नहीं मिल पाता है। बच्चा को जब सुलाना होता है। तो बेड पर लिटाकर थपकी देकर सुला देती हूं।
सुरभि सक्सेना,