बरेली (ब्यूरो)। रिश्तों की अहमियत को समझने और उनको निभाने के लिए पेशेंस जरूरी है, पर अब इसकी कमी के चलते सामाजिक ढांचा भी चरमरा रहा है। सयुंक्त परिवार भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही है। शताब्दियों पुरानी यह विशेषता रिश्तों की डोर मजबूत होने से ही बनी रही। रिश्तों की यह डोर परिवार के सदस्यों के पेशेंस से ही मजबूत रही, पर अब यह डोर कमजोर पड़ रही है। इससे संयुक्त परविार बिखर रहे हैं। घर में होने वाली मामूली सी कहासुनी भी परिवार की अखंडता पर भारी पड़ रही है। घर-परिवार में होने वाली ऐसी ही मामूली सी कहासुनी को लेकर न्यू कपल्स पुलिस लाइन में परिवार परामर्श केंद्र तक भी पहुंच रहे हैं।
1140 से ज्यादा मामले दर्ज
घरों में होने वाली ऐसी मामूली कहासुनी से नाराज कपल्स परिवार के से अलग रहने की मंशा पाल लेते हैं। कभी तो यह मामले इतने गंभीर हो जाते हैं कि परविार टूटने के कगार पर भी पहुंच जाते हैं। ऐसे मामले पुलिस थाने से लेकर कोर्ट तक पहुंचते हैं। परिवार परामर्श केंद्र में इस साल 1140 केस ऐसे ही पहुंचे। इनमें से सिर्फ 350 केसेस में ही समझौता हो पाया। इसके अलावा बाकी केस या तो अभी चल रहे हैैं या फिर कोर्ट पहुंच गए हैैं।
सिमटती जा रही खुशियां
जहां लोग पहले संयुक्त परिवार में रहना ज्यादा पसंद करते थे, वहीं अब न्यू कपल्स शादी से पहले ही अपनी अलग दुनिया बसाने की सोचने लगते हैं। घर में ऐसी मंशा वाले कपल्स को अपना एक प्राइवेट स्पेस चाहिए। इससे लोगों की खुशियां धीरे-धीरे अपने में ही सिमटती जा रही हैैं। लोग सिर्फ सेल्फ हैप्पीनेस पर ही फोकस कर रहे हैैं। उन्हें परिवार की संयुक्त खुशी से ज्यादा वास्ता नहीं है।
छोटी-छोटी बात पर बड़ी नाराजगी
लोगों में पेशेंस लेवल धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। लोग छोटी-छोटी बातों का तिल का ताड़ बना दे रहे हैैं। लोगों को यह ही लग रहा है कि उनकी प्रॉब्लम सिर्फ थाने में शिकायत के जरिए ही सॉल्व हो सकती है। जैसी की घरवाले खर्च नहीं दे रहे हैैं, घर में मारपीट करते हैैं, सास-ससुर परेशान करते हैं, जैसे मामलों की शिकातय ही पुलिस में ज्यादा होती है। परिवार परामर्श केंद्र में भी ऐसे ही मामलों की भरमार है।
लेडीज की ओर से ज्यादा केस दर्ज
एसआई आयशा ने बताया कि ज्यादातर मामले महिलाओं की ओर से ही दर्ज कराए जाते हैैं। इसमें विवाहिता का कहना होता है कि उनके पति उन्हें तवज्जो नहीं देते हैैं। कई महिलाएं तो अपने पति से सिर्फ इस बात से नाराज हो जाती हैं कि वह वह अपने माता-पिता पर ज्यादा क्यूं खर्च करते हैं। उनका कहना होता है कि वह अलग रहना चाहती है।
फ्रीडम के लिए अपनों से दूरी
एसआई आयशा ने कहा कि उनके पास घर से नाराजगी वाले एक दिन में 15 से 20 केस आ जाते है। इनमें कई केसेस तो ऐसे हैैं, जिनमें महिलाओं को फ्रीडम चाहिए। वह चाहती हैं कि उन्हें कोई रोके या फिर टोके नहीं। वह फ्री होकर रहना चाहती हैैं। कई बार केंद्र में ऐसे भी मामले आते हैं, जिनमें काउंसलिंग के दौरान ही विवाद हो जाता है। इसके बाद तो उन्हें संभालना भी मुश्किल हो जाता है।
ऐसे मामले अधिक
-घर खर्च नहीं देता है
-घरवाले मार-पीट करते हैं
-घर से भगा दिया
-हमें अलग रहना है
हमारे पास परिवार से नाराजगी वाले जो मामले आते हैं, उनमें काउंसलिंग की जाती है। उन्हें समझाया जाता है कि किस तरह से वे एक होकर जीवनयापन कर सकते हैैं। हमारी पूरी कोशिश रहती है की कपल्स को समझाया जाए। उनके बीच समझौता करा कर उन्हें तीन महीने तक हर 15 दिन के भीतर बुलाया जाता है। इस दौरान यह देखा जाता है कि कपल्स हर स्तर से खुश हैैं की नहीं।
आयशा, एसआई, प्रभारी परिवार परामर्श केंद्र