बरेली (ब्यूरो)। वूमेन आर ऑलवेज ऑन ड्यूटी, यह कहावत तब और सही साबित होती है, जब वूमेन नौकरीपेशा हो। ऐसी वूमेन अपने लाइफ में दोहरी जिम्मेदारी निभाती हैं। उनके लिए ड्यूटी के साथ घर की जिम्मेदारी और उसके साथ ही रोजमर्रा के कई काम निपटाना आसान नहीं होता है। ऐसे में भी अगर किसी एक को तवज्जो न दो तो चीजें डिसबैलेंस हो जाती हैैं। ऐसा ही कुछ हाल पुलिस में तैनात लेडीज स्टाफ का है। इनमें ऑफिसर्स भी है और कांस्टेबल्स भी। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने जब डिपार्टमेंट की लेडीज स्टाफ से बात की तो उन्होंने अपनी-अपनी परेशानी शेयर की।
नहीं बची कोई सेल्फलाइफ
जीवन का संबंध खुशियों से है पर, नौकरीपेशा महिलाओं की डेली लाइफ इससे डिफरेंट है। महिला पुलिसकर्मी कहती हैं कि उन्हें कभी-कभी ऐसा लगता है कि लाइफ में कोई भी हैप्पीनेस बची ही नहीं है। रोज का सिर्फ एक ही रूटीन है, जिसे फॉलो ही करना है। घर से ऑफिस और ऑफिस से घर। इसके बाद भी ड्यूटी की टेंशन। ऐसे में खुद के लिए टाइम ही नहीं बचता है की खुद के बारे में कुछ सोचें। कई बार तो ऐसा भी लगता है कि हम लोग बंध गए है। शादी के बाद तो स्थितियां और भी ज्यादा टिपिकल हो जाती हैं।
नहीं है कोई फिक्स्ड टाइम
लाइफ में टाइम का ही सबसे बड़ा रोल होता है। कभी खुुुद के लिए टाइम नहीं मिलता, तो कभी अपनों के लिए। कई ऐसे फेस्टिवल या इवेंट होते हैं, जिसके लिए चाह कर भी लीव नहीं मिलती है। कभी-कभी यह आठ घंटे की ड्यूटी कब ओवर टाइम हो जाता है पता ही नहीं चलता है।
टाइम ने बनाया हैबिचुअल
महिला पुलिसकर्मी कहती हैं कि वक्त सब सिखा देता है। डिपार्टमेंट की ड्यूटी लाइफ ने हम लोगों भी एडजस्ट करना सिखा दिया। पहले दुख होता था कि घर वालों को टाइम नहीं दे पा रहे हैैं, बच्चों को समय पर खाना नहीं दे पा रहे हैैं, लेकिन धीरे-धीरे घर वालों और बच्चों ने भी एडजस्ट करना सीख लिया है।
शब्दों में नहीं कर सकते बयां
पुलिस कर्मियों का कहना तो बहुत कुछ चाहते हैैं, लेकिन अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं कर सकते। कभी-कभी चीजें फ्रस्टेट कर देती है। लाइफ में कई चीजें होती हैैं जिन्हें सभी से शेयर भी नहीं कर सकते हैैं। कई बार ऐसी भी सिचुएशन आ जाती है, जब लगता है कि बस अब हो गया।
एडजस्टमेंट बनी लाइफ
लाइफ में कई फेज होते हैैं। हर फेज में वूमेन को खरा उतरना होता है। फिर चाहे जॉब हो या अदर कोई भी सिचुएशन। लाइफ खुद को एडजेस्ट करने में ही निकल जाती है, लेकिन पहले से कुछ चीजें काफी संभल गई है। कुछ चीजों में काफी चेंज आ गया है। उन्होंने बताया कि कई बार इतना एडजेस्टमेंट करना पड़ता है कि अपने बच्चों को भी थाने में ही लेकर आना पड़ता है। क्योंकि उन्हें घर में अकेला भी नहीं छोड़ सकते हैैं। वहीं कभी कोई लड़ाई-झगड़ा करने वाला केस आता है, तो बच्चों को अलग बैठा देते है।
कई चीजें टाइम के साथ एडजेस्ट हो जाती हैं। वहीं जॉब तो करनी ही है। पहले लगता था क्या करें और क्या नहीं, पर अब सब हो जाता है। सरकार की ओर से कई समस्याओं का निदान कर दिया गया हैै।
छवि सिंह, इंस्पेक्टर, महिला थाना
मैं और हसबैैंड, दोनों ही पुलिस सर्विस में हैं। कभी-कभी कुछ चीजों को बयां भी नहीं कर पाते हैैं। मेरा बच्चा अभी सात महीने का हैै। कई बार उसकी फिक्र लगी रहती है। मेरी बरेली में पोस्टेड हूं और हसबैैंड दूसरी जगह।
अनुप्रभा, कांस्टेबल
चीजें धीरे-धीरे आसान हो जाती है। लाइफ एक ही सर्किल में घूम रही होती है। ऑफिस से घर और घर से ऑफिस। आठ बजे की ड्यूटी के लिए सुबह पांच बजे जागो, तब कहीं कुछ हो पाता है।
शालिनी, कांस्टेबल
मुझे पुलिस में काम करते हुए 20 साल हो गए हैं। समय तो गुजर रहा है, पर कई बार चीजें अपने अनुसार नहीं होती हैैं। अब स्थितियां पहले जैसी नहीं हैं, कई चीजें बदल गई हैं।
रीता शर्मा, कांस्टेबल
एडजेस्टमेंट ही लाइफ है। अपनी पर्सनल लाइफ और ड्यूटी के बीच एडजस्टमेंट करना सीख लिया है। इससे लाइफ थोड़ी आसान हो गई है। वक्त के साथ भी कई चीजें बदल जाती हैैं।
रूबीना, कांस्टेबल