बरेली (ब्यूरो)। थैलेसीमिया यानी एक ऐसी जेनेटिक डिजीज, जिसमें पीडि़त के लिए जिंदगी जीना तथा परिजनों के लिए उसका इलाज कराना तक मुश्किल हो जाता है। यह बीमारी कितनी कॉमन होती जा रही है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सौ में चार लोग इस बीमारी के वाहक हो रहे हैं। इसकी रोकथाम के लिए जागरूकता सबसे कारगर उपाय है। वेडनेसडे को आईएमए की ओर से जिला अस्पताल में शिविर का आयोजन कराया गया। इसमें पीजीआई चाइल्ड हॉस्प्टिल नोएडा के डॉक्टर्स ने 80 बच्चों का चेकअप किया। इस मौके पर उन्होंने लोगों को थैलेसीमिया बीमारी के बारे में जानकारी दी और इसकी जांच कराने की सलाह दी। जांच से ही इस बीमारी का पता चल सकता है। इस बीमारी के पीडि़त को आजीवन अपना ब्लड बदलवाना पड़ता है।

उपचार के दूसरे विकल्प
थैलेसीमिया विषय पर आईएमए की ओर से आयोजित सेमीनार में पीजीआई चाइल्ड हॉस्पिटल नोएडा की डॉक्टर नीता राधाकृष्णन और डॉ। अनुजा सिंह शामिल हुए। इसमें आईएमए के अध्यक्ष डॉ। राजीव गोयल ने कहा कि हमारा लक्ष्य न केवल थैलेसीमिया का प्रभावी ढंग से निदान और उपचार करना हैं। बल्कि पीडि़तों के बोन मेरो प्रत्यारोपण जैसे संभावित इलाजों को भी तलाशना है। उन्होंने कहा कि इस बीमारी के पीडि़तों को आईएमए की ओर से मुफ्त ब्लड उपलब्ध कराया जाता है। इस बीमारी के उपचार में नेशनल हेल्थ मिशन की ओर सरकार की ओर से भी पीडि़तों को मदद मुहय्या कराई जाती है्। सेमीनार में पीजीआई चाइल्ड हॉस्पिटल की डॉ। नीता राधाकृष्णन ने कहा कि कोई सामान्य सा दिखने वाला व्यक्ति भी थैलेसीमिया से ग्रसित हो सकता है। ऐसे ही व्यक्ति इस बीमारी के बड़े वाहक साबित होते हैं। उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाओं की जिस तरह एचआईवी और अन्य जांचें होती हैं, उसी तरह थैलेसीमिया की भी जांच कराई जानी चाहिए।

जांच के बाद हो शादी
डॉ। नीता राधाकृष्णन ने बताया कि हर परिवार को अपने बच्चों की शादी से पहले थैलेसीमिया की जांच करानी चाहिए। क्योंकि, यह बीमारी एक आनुवांशिक बीमारी है। इसलिए यदि बेटा या बेटी में से कोई भी थैलेसीमिया पीडि़त हुआ तो शादी के बाद उनके बच्चों को यह बीमारी पैदा होने के साथ ही मिल जाएगी। ऐसे में जरूरी है कि अब शादी से पहले कुंडली मिलाने के साथ थैलेसीमिया जांच रिपोर्ट भी मिलाई जाए।

233 हुए जिले में मरीज
थैलेसीमिया की जांच के लिए जिला अस्पताल में आयोजित शिविर में एक्सपर्ट डॉक्टर्स ने 80 बच्चों की जांच की। इस शिविर में एडीएसआइसी डॉ। अलका शर्मा और डिप्टी सीएमओ डा। लईक अहमद बतौर अतिथि शामिल हुईं। पीजीआई चाइल्ड हॉस्प्टिल की डॉ। नीता राधाकृष्णन और डॉ। अनुजा सिंह ने बच्चों का चेकअप किया। जांच में दो नए बच्चों में थैलेसीमिया की पुष्टि हुई। अभी तक जिले में थैलेसीमिया के कुल मरीजों की संख्या 233 तक पहुंच चुकी हैं। थैलेसीमिया सोसाइटी चलाने वाली डॉ। सरदाना बताती हैं कि, उन्होंने इस सोसाइटी की शुरुआत चार मरीजों से की थी, जिनकी संख्या अब 233 पहुंच चुकी है।

बरतें सावधानी
-विवाह से पहले महिला-पुरुष की ब्लड की जांच जरूर कराएं
-गर्भावस्था के दौरान इसकी जांच कराएं
-रोगी की हीमोग्लोबिन 11 या 12 बनाए रखने की कोशिश करें
-समय पर दवायें लें और इलाज पूरा लें।

दो तरह की होती है थैलीसीमिया
मेजर थैलेसेमिया
यह बीमारी उन बच्चों में होने की संभावना अधिक होती है, जिनके माता-पिता दोनों के जींस में थैलीसीमिया होता है। जिसे थैलीसीमिया मेजर कहा जाता है।

माइनर थैलेसेमिया
थैलीसीमिया माइनर उन बच्चों को होता है, जिन्हें प्रभावित जीन माता-पिता दोनों में से किसी एक से प्राप्त होता है। जहां तक बीमारी की जांच की बात है तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर रक्त जांच के समय लाल रक्त कणों की संख्या में कमी और उनके आकार में बदलाव की जांच से इस बीमारी को पकड़ा जा सकता है।

ये हैं लक्षण
थैलीसीमिया पीडि़त बच्चे का चेहरा सूखता हे। लगातार बीमार रहना,ख् वजन न बढऩा और इसी तरह के कई लक्षण बच्चों में थैलीसीमिया रोग होने पर दिखाई देते हैं।