बरेली (ब्यूरो)। बीमारियों से डरकर तो कई लोग हिम्मत हार जाते हैैं, लेकिन उसी बीमारी को अपनी हिम्मत बनाकर पूरी मजबूती के साथ लड़ा जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है। इसी बात को प्रूव करते हुए काजल शर्मा ने काशी एनबैरोटेक प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी शुरू की। वह अपनों और अपने से जुड़े लोगों के लिए कुछ कर दिखाना चाहती हैैं। वैसे भी शास्त्रों को नारी को शक्ति की संज्ञा दी गई है। भारतीय परंपरा में स्त्रियों को देवी माना जाता है और जब यह नारी वास्तव में ऐसा कुछ कर दिखाती है, जिससे समाज को गर्व हो तो उसके सामने स्वत: ही सिर झुक जाता है। काजल ने कुछ ऐसा ही तो किया है। एक नहीं दो-दो गंभीर बीमारियों से जूझते हुए उन्होंने उन्हें मात दी और आज वह खुद तो सेल्फ डिपेंडेंट हुईं ही अन्य लोगों को भी रोजगार देने का माध्यम बन रही हैं।
पहले ब्रेन ट्यूमर फिर कैंसर
काजल सालों से कैंसर से जंग लड़ रही हैं। पहले उन्हें ब्रेन ट्यूमर हुआ। लंबे समय तक वह उससे जूझती रहीं। सन 2018 में उसका ऑपरेशन हुआ। उस बीमारी से उबरी ही थीं कि अचानक कैंसर का शिकार हो गईं। उन्होंने बताया कि अपने साहस के बल पर वह उससे भी खूब जंग लड़ीं। उन्होंने बताया कि गंभीर बीमारी को भी उन्होंने कभी अपने आप पर हावी नहीं होने दिया। काजल ने बताया कि वह जब तक जीवित हैं लोगों की हर स्तर से मदद करना चाहती हैं ताकि अपनी फैमिली और कंपनी की महिलाओं के लिए कुछ कर पाएं। उन्होंने बताया कि उनके पति की भी मृत्यु हो गई। इसकी वजह से वह अब सिंगल पेरेंट के रूप में बच्चों की देखभाल कर रही हैं। उनके घर में कमाने वाला भी कोई नहीं है। जब उनके पति की मृत्यु हुई वह टाइम उनके लिए काफी स्ट्रगल से भरा था। ऐसा लग रहा था कि अब लाइफ में कोई उम्मीद बची ही नहीं। ऐसे उन्होंने छोटे से काम के साथ आगे बढऩा शुरू किया।
स्टार्टअप ने बदली लाइफ
एनवायरमेंट में हो रहे बदलाव को देखते हुए और पर्यावरण को बचाने की चाह ने काजल के मन में एक आइडिया आया। इसके बाद उन्होंने गाय के गोबर के प्रोडक्ट बनाने का स्टार्टअप तैयार किया। इसके पीछे उनका परपज था कि न ही रोड पर गोबर बिखरा दिखेगा और न ही ज्यादा पेड़ों को काटकर एनवायरमेंट की बरबादी होगी।
दे रहीं रोजगार
काजल शर्मा ने शीलू त्रिपाठी के साथ मिलकर अपना स्टार्टअप शुरू किया। लगभग 250 समूहों के साथ मिलकर उन्होंने काम शुरू किया। आज वह 2,500 लोगों को रोजगार दे रही हैैं। इनमें सबसे अधिक महिलाएं हैं। इससे वे आत्मनिर्भर बनकर अपना भविष्य संवार रही हैैं।
गोकाष्ठ का निर्माण
पेड़ों और गायों को बचाने के लिए उन्होंने नई पहल की। आजकल दाह संस्कार के लिए इलेक्ट्रिक मशीनों का प्रयोग किया जाने लगा है। इससे कहीं न कहीं शास्त्रीय परंपराओं से खिलवाड़ रहा है। ऐसे में उन्होंने इसके लिए गाय के गोबर से बनी काष्ठ का निर्माण करने की पहल की है। उनका यह प्रोडक्ट लोग आज अंतिम संंस्कार के समय खूब प्रयोग कर रहे हैैं। गोकाष्ठ की कीमत सिर्फ 14 रुपए प्रति किलोग्राम है, जबकि लडक़ी इसकी जगह काफी महंगी होती है।
पूजा-पाठ में भी प्रयोग
आज कल लोग पूजा-पाठ की सामग्री में भी मिलावट करने से नहीं बाज आते। ऐसे में गाय के गोबर से बने दीपक, धूपबत्ती का भी निर्माण वह कर रही हैं। इससे पूजा-पाठ में कोई अशुद्धि नहीं होती है और एनवायरमेंट के साथ कोई खेल भी नहीं होता है। दीया सिर्फ पांच रुपए का है, धूपबत्ती 12 रुपए की। इसे इस्तेमाल करने के बाद पेड़-पौधों के लिए इस गोबर से बनी चीजों को खाद की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता हैै।