बरेली (ब्यूरो)। शहर में ऑटो के सिटी परमिट को लेकर बड़ा खेल चल रहा है। खुलेआम यह परमिट बेचे और खरीदे जा रहे है। इस पूरे खेल में आरटीओ ऑफिस के कर्मचारी, ऑटो एजेंसी के कर्मचारी और फाइनेंस कंपनी वालों की अहम भूमिका है। इसमें ऑटो खरीदने वालों को लाखों का चूना लग रहा है। मजबूरी में चालक को ऑटो की लगभग आधी कीमत पर सिर्फ परमिट खरीदना पड़ रहा है।
15 हजार अवैध ऑटो
शहर में करीब 18 हजार से ज्यादा ऑटो दौड़ रहे है, जबकि आरटीओ में 3250 सिटी परमिट दर्ज हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहर में कितनी बड़ी संख्या में अवैध रूप से ऑटो चल रहे है। चर्चा है कि यह अवैध ऑटो ट्रैफिक पुलिस की शह पर ही शहर की सडक़ों पर फर्राटा भर रहे है। जो बिना परमिट के सवारियों को ढो रहे है। सिटी परमिट न होने वाले ऑटो की फिटनेस भी नहीं होती है, उसका आरटीओ ऑफिस में सिर्फ कबाड़ के रूप में डिटेल दर्ज होती है।
ये है खेल
बता दें कि फाईनेंस कंपनी के कर्मचारी और एजेंसी के कर्मचारी ऐसे ऑटो रिक्शा चालकों की डिटेल अपने पास में रखते हैं, जो चालक अपना सिटी परमिट का ऑटो बेच रहा होता है। यह कर्मचारी पहले से ही परमिट बेचने वालों को कुछ पैसा देकर परमिट खरीद लेते है। फाइंनेंस कंपनी और ऑटो एजेंसी के कर्मचारियों की आरटीओ ऑफिस में भी साठगांठ रहती है। ऐसे में ऑटो एजेंसी में ऑटो खरीदने जाने वाले को ऑटो की कीमत के साथ ही सिटी परमिट भी दिलाने की जिम्मेदारी ले लेते है। यही हाल फाईनेंस कंपनियों का है। ऑटो फाईनेंस की पूरी जानकारी लेने पर दो तरह की जानकारी दी जाती है। इसमें सिर्फ ऑटो के पैसे और सिटी परमिट के पैसे तक की जानकारी देते है।
परमिट ट्रांसफर का नियम
वाहन परमिट एक से दूसरे व्यक्ति को ट्रांसफर करने का नियम है। परमिट धारक अपना परमिट दूसरे के नाम ट्रांसफर कर सकता है। लेकिन इसके लिए परमिट धारक को परमिट ट्रांसफर करने से पहले अपने वाहन का चेचिस नंबर, वाहन नंबर आरटीओ में देना होगा। इसके साथ ही वाहन स्वामी को अपने वाहन को कबाड़ में बचने का पत्र भी देना होता है। जो कबाड़ खरीदने वाले देते हैं। परमिट धारक अपना वाहन नष्ट करने का भी शपथ पत्र देता है। इसके साथ ही परमिट धारक का परमिट दूसरे के नाम पर ट्रांसफर किया जाता है। इसके लिए बोर्ड बैठता है। इसमें परमिट ट्रांसफर करने का प्रस्ताव रखा जाता है। इस दौरान दोनों पक्षों को मौजूदगी जरूरी होती है।
इतने रुपए तक बेचा जाता है
बता दें कि परमिट ट्रांसफर के खेल में बड़े स्तर पर आरटीओ के कर्मचारियों की मिली भगत रहती है। वह सारे नियम और कानूनों को दर किनार कर परमिट धारक का परमिट दूसरे चालक के नाम करा देते है। यहीं वजह है परमिट डेढ़ लाख रुपए तक का बेचा जा रहा है।
इतने साल पहले लगी थी रोक
शहर में ऑटो के सिटी परमिट जुलाई 2013 से बंद है। शहर में ऑटो की संख्या अधिक होने पर तत्कालीन डीएम अभिषेक प्रकाश के निर्देश पर ऑटो के सिटी परमिट पर रोक है। इसके बाद से अब तक ऑटो के सिटी परमिट जारी नहीं हो रहे है। बावजूद इसके शहर भर की अलग-अलग एजेंसियों से नए ऑटो निकल रहे है। इसको लेकर बड़ा खेल चल रहा है।
सिटी परमिट 2013 से ही बंद है। परमिट धारक अपना परमिट दूसरे के नाम कर सकता है। इसके लिए उसे परमिट ट्रांसफर की पूरी प्रक्रिया से गुजरना होता है। अंत में बोड इस पर निर्णय लेता है।
प्रकाश नरायण श्रीवास्तव, परमिट बाबू, आरटीओ ऑफिस