'पीके खड़ा बाजार में' मुहिम के पीछे आई नेक्स्ट का उद्देश्य किसी भी धर्म या उससे जुड़ी आस्था पर सवाल खड़ा करना कतई नहीं है। हमारा मकसद बस धर्म की आड़ में पब्लिक को गुमराह करने वालों की सच्चाई उजागर करना है। खुद को गॉड के एजेंट्स के तौर पर प्रचारित करने वाले, जिन्होंने लोगों के विश्वास को कारोबारी रूप दे दिया है, ऐसे लोगों से आपको सावधान करना है। हम सब कहीं न कहीं इस सच्चाई से वाकिफ भी हैं, तभी तो पीके को बरेलिंयस का खूब समर्थन मिल रहा है। तो आइए अब भी इस अभियान से जुडि़ए और बेबाकी से रखिए अपनी राय। और हां, खुद से सवाल पूछना जारी रखिए।
नीबू और मिर्च से दूर होती जिंदगी की 'खटास'
सीन एक
एक नींबू और सात मिर्ची घर-दुकान और वाहन में टांगिएलाइफ में बरक्कत होगी। सुख-शांति का घर में वास होगा। यही नहीं आमदनी में भी दिन-दूना, रात चौगुना की बढ़ोत्तरी होगी। नींबू और मिर्ची के प्रति ये अंधविश्वास ही है कि बरेली में इसका लाखों रुपये का व्यवसाय है। मान्यता है कि हर मंडे को नीबू-मिर्चे की लड़ी टांगनी चाहिए और सैटरडे को इसे फेंक देना चाहिए। हैरत की बात है कि नींबू-मिर्च ही नहीं इसे यूज करने में भी गजब का अंधविश्वास है। कहते हैं कि सप्ताह भर में सूखे नींबू-मिर्च की लड़ी को रोड पर फेंकना चाहिए। ताकि, वाहनों के पहिए के नीचे नींबू के साथ ही बुरी नजर भी कुचलकर खत्म हो जाए। नींबू मिर्ची की प्रति लड़ी भ् रुपए में बिकती है। इस हिसाब से पूरे शहर में हर महीने करीब भ् लाख रुपए का बिजनेस सिर्फ नींबू मिर्ची की लड़ी का होता है।
पीके का सवाल
क्या नींबू मिर्ची से ही घर में सुख-शांति रह सकती है या फिर प्रतिष्ठान दिन दोगुना, रात चौगुना तरक्की कर सकता है। यदि नींबू टांगने से बुरी नजर नहीं लगती है तो फिर कोई गरीब नहीं होता। सभी छोटे दुकानदार भी धन्नासेठ होते। सभी की गिनती बडे़ प्रतिष्ठानों में होती। किसी के घर में पारिवारिक कलह नहीं होती। ख्0 रुपए महीना खर्च कर सभी खुशहाल जीवन व्यतीत करते।
सीन दो
आस्था की आड़ में कारोबार
पीके सिटी के सिविल लाइंस में अक्षय विहार के पास से गुजर रहा था कि उसकी नजर सड़क किनारे बनी एक मजार पर पड़ी। नाले के ऊपर बनी इस मजार के नजदीक पहुंचने पर पीके के देखा कि एक ही कैंपस में मस्जिद और मजार दोनों हैं। नजर दौड़ाने पर पीके का सर चकराया, उसने देखा के इसी पाक जगह की आड़ में कारोबार भी चमक रहा है। पीके ने देखा कि इस पाक जगह पर अतिक्रमण कर एक में बाइक सर्विस तो दूसरी दुकान में इलेक्ट्रानिक आयटम्स की रिपेयरिंग की दुकान सजी है।
पीके का सवाल
जहां खुदा की इबादत की जाती हो, क्या उसके आस-पास गंदगी होनी चाहिए। जिस महान विभूति के नाम पर ये मजार बनाई गई, निश्चित ही उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों और समाज की भलाई में खपा दिया होगा। लेकिन उनको मानने वालों को क्या इसकी आड़ में अपना धंधा चमकाने की अनुमति देना उचित है। क्या आस्था का सहारा लेकर अतिक्रमण कर कारोबार करने की छूट दी जा सकती है।