शहर में बंदरों का आतंक, जनता परेशान, निगम बेपरवाह
भाजपा पार्षदों ने नगर आयुक्त से की बंदरों पर रोकथाम की अपील
शहर में 10 हजार से ज्यादा बंदर, रोकथाम के इंतजाम कारगर नहीं
BAREILLY:
बिजली, पानी और सड़क-सफाई। दुनिया के किसी भी शहर के लिए यह वो बुनियादी जरूरतें हैं, जिनकी दरकार हर सरकार से की जाती है। बरेली शहर भी इससे अछूता नहीं। लेकिन इन बुनियादी समस्याओं के अलावा भी शहर के लोग एक बड़ी परेशानी से दो-चार होने को मजबूर हैं। बरेली में बंदरों की बढ़ रही तादाद इंसानों के लिए तकलीफदेह होती जा रही। शहर के लगभग हर वार्ड व इलाके में बंदरों की मौजूदगी है। घरों से लेकर दुकानों तक में लोग बंदरों से परेशान हैं। हाल यह है कि बुनियादी जरूरतों को लेकर अक्सर नगर निगम में आवाज उठाने वाले पार्षदों ने नगर आयुक्त से शहर में बंदरों पर रोकथाम लगाए जाने की मांग उठाई है।
निजात नहीं बंदरों से
बरेली में पिछले कई साल से बंदरों की बढ़ रही तादाद परेशानी का सबब बन रही। बंदरों की बढ़ती संख्या आए दिन रिहायशी इलाकों में घरों की छत पर, कमरों में और दुकानों तक में अपनी पहुंच बना चुकी हैं। इसके अलावा बुजुगरें, महिलाओं और छोटे बच्चों को बंदरों से खतरा बना रहता है। बंदरों को शहर से बाहर करने की निगम की कई कवायदों के बावजूद जनता को राहत नही मिली।
नहीं सोते छतों पर
शहर में बंदरों के उत्पात का सबसे ज्यादा खामियाजा सुभाषनगर, राजेन्द्रनगर, मॉडल टाउन, पटेलनगर, संजय नगर, प्रभात नगर, जोगी नवादा, सिविल लाइंस, कोहारापीड़, कटराचांद खां और कैंट इलाकों में है। इन इलाकों में बंदरों का उत्पात इतना ज्यादा है कि लोगों के घरों के दरवाजे खुले रह जाएं तो बंदर अंदर रखा सामान खराब करने के अलावा फ्रिज से खाना निकाल लेना, कपड़े फाड़ देना और छोटे बच्चों पर हमला तक कर देते हैं। इससे बिजली जाने के बावजूद इन इलाकों में रात के समय लोग छतों पर डर के मारे सोते नहीं।
क्0 हजार से ज्यादा तादाद
नगर निगम के हर बार बंदरों की रोकथाम की कोशिशों के बावजूद इन पर लगाम नहीं लग सकी। निगम के स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक शहर में करीब क्0 हजार से ज्यादा बंदर हैं। धार्मिक आस्था जुड़ी होने के चलते निगम कुत्तों की तरह बंदरों का बंध्याकरण नहीं कराता। ऐसे में बंदरों की तादाद हर साल बढ़ रही है। निगम की ओर से बंदरों को शहर से बाहर करने की मुहिम से ज्यादा बंदर शहर के अंदर ही उत्पात मचा रहे।
हर बंदर पर फ्00 का खर्च
निगम की ओर से बंदरों की रोकथाम पर खुद कोई कार्रवाई नहीं की जाती। निगम इसके लिए टेंडर शुरू कर एजेंसी को हायर करता है। इसके लिए एजेंसी से रेट भी फिक्स है। निगम की ओर से हर बंदर को पकड़े जाने और शहर से बाहर जंगलों में छोड़े जाने के एवज में एजेंसी को प्रति बंदर फ्00 रुपए का भुगतान किया जाता है। लोगों की ओर से डिमांड आने पर निगम बंदरों को पकड़े जाने की कवायद शुरू कराता है। जिसमें अक्सर क्000 बंदरों को पकड़े जाने की कवायद की जाती है।
तो कहां से अा रहे बंदर
निगम का स्वास्थ्य विभाग भी हर साल दो बार बंदरों के खिलाफ अभियान चलाता है। जिसमें एजेंसी को क्000 बंदर हर बार शहर से दूर करने के लिए हायर किया जाता है। तीन महीने पहले ही निगम की ओर से एजेंसी ने शहर के क्000 बंदरों को शाहजहांपुर के जंगल में छोड़ा था। लेकिन बार बार के अभियान के बावजूद शहर से बंदरों की तादाद कम नहीं होती हे। इससे एजेंसी की वर्किंग पर भी सवालिया निशान उठ रहे हैं। पार्षदों का आरोप है कि एजेंसी मोटा मुनाफा कमाने के बावजूद पकड़े गए बंदरों को तय जगहों पर नहीं छोड़ती। जिससे समस्या जस की तस बनी है।
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शहर में बंदरों का बड़ा आतंक है। घरों में ही नहीं दुकानों में भी बंदरों का उत्पात रहता है। जरा सी चूक होने पर कई बार दुकानदारों को अपने सामान का नुकसान उठाना पड़ता है।
- राजेश जसोरिया, व्यापारी
बंदरों से सामान का नुकसान के अलावा बच्चों को भी खतरा रहता है। फ्रिज से खाना निकाल लेना, सामान बर्बाद कर देना तो रोजाना होता है। डर के मारे लाईट जाने पर भी हम छतों पर नहीं सोते। - जीतेन्द्र कुमार, सर्विसपर्सन
बंदरों का आतंक कैंट में भी बहुत है। हमारे हॉस्टल में आए दिन बंदर घुस आते हैं और कपड़े-सामान बर्बाद कर देते है। कई बार हॉस्टल में रहने वालों पर बंदर हमलावर हो जाते हैं। - विजय, स्टूडेंट
बंदर पकड़ने वाली एजेंसी अगर सही से काम कर रही है, तो हर साल इतनी बड़ी तादाद में बंदर शहर में कैसे हैं। क्या इससे पहले शहर में इंसानों से ज्यादा बंदर थे। इस पर जिम्मेदारी से काम होना चाहिए। - विकास शर्मा, पार्षद नेता
बंदरों के खिलाफ तीन महीने पहले ही अभियान चलाया गया। जिसमें क्000 बंदरों को जंगल में छोड़ा गया। डिमांड आने पर फिर से कवायद शुरू की जाती है। जल्द ही फिर से अभियान शुरू किया जाएगा। - डॉ। एसपीएस सिंधु, नगर स्वास्थ्य अधिकारी