जनता चुप्पी साध कर बैठी है मैदान
वोट मिलेगा उसी को जो होगा इंसान
चुनिए उसको जो मिले सहज भर के रोज,
वोट तुम्हारे पास है करिए उसकी खोज
वोट दीजिए छान कर जिसकी अच्छी छाप,
पांच साल रोकर कटे क्यों पछताएं आप
बेनामी संपत्तियां मंत्री रहे खरीद
दिन में दीवाली मने रात मनाएं ईद
चोरों की बारात में डाकू बैंड बजाएं
जनता आलू सी सड़े हम दुख किसे सुनाएं
बड़े बड़ों की खड़ी है अब तो उल्टी खाट,
हार गए तो टाटा है जीत गए तो ठाट
नेतागिरि हो गई अब तो है व्यापार,
पांच साल में घर भरा लाखों गए बकार
जातिवाद के भंवर में फंसी हुई सरकार, वोट जरूरी आपको देना है इस बार
रामेंद्र मोहन त्रिपाठी
इलेक्शन का हंगामा
हर कैंडिडेट एक-दूसरे का मामा
जुबानी तौर पर एक दूसरे की ऐसी-तैसी
हकीकत में सारी पार्टियां दूसरे की मौसी
होली की रंगीनी का असर
रोज बदले टोपी रोज बदले कलर
कभी हरे कभी नीले कभी नारंगी
कपड़ा तो एक पर झंडे रंग-बिरंगी
इसी अवसर पर
विधान सभा के पथ पर
इधर से उधर और उधर से इधर
और फिर इधर से उधर
फिर उधर से इधर जा रहे
गिरगिट नरेश से हमने पूछा-
महोदय बता सकते हैं
अपने और नेता का आपसी संबंध
तुलनात्मक रूप से समझा सकते हैं
गिरगिट बोला श्रीमान!
किसी गिरगिट की नेता से तुलना करना महापाप है
क्योंकि
रंग बदलने के मामले में
नेता गिरगिट का बाप है
सर्वेश अस्थाना
जरा देख लो क्या से क्या हो गया हूं
इलेक्शन में मैं भी खड़ा हो गया हूं
करूंगा न मायूस मैं गमजदों को
खिलाऊंगा खाना मैं फाकाकशों को
खुशी दूंगा मैं बेकसों बेबसों को
दिलाऊंगा मैं नौकरी दोस्तों को
गरीबों का मैं आसरा हो गया हूं
इलेक्शन में मैं भी खड़ा हो गया हूं
किसी को मैं लूटूं ये आदत नहीं है
किसी से भी अब मुझको नफरत नहीं है
गलत लोगों की सोहबत नहीं है
बताओ कहां मेरी इज्जत नहीं है
गुनहगार था पारसा हो गया हूं
इलेक्शन में मैं भी खड़ा हो गया हूं
तमन्ना में वोटों की आया हुआ हूं
फकत वोट मैं आपसे चाहता हूं
खुदा की कसम हर घड़ी आपका हूं
गलत कह दिया है किसी ने बुरा हूं
कभी था बुरा अब भला हो गया हूं
इलेक्शन में मैं भी खड़ा हो गया हूं
मेरी जीत है आपकी एक नजर पर
बुलंदी की जानिब है किस्मत सफर पर
हरेक लीडर आता है हर रोज घर पर
मिनिस्टर का साया भी है मेरे सर पर
दुश्मनों के हक में बला हो गया हूं
इलेक्शन में मैं भी खड़ा हो गया हूं
मुझे कामयाबी का सेहरा अता हो
मुझे सुखुरुयी का तोहफा अता हो
मैं कतरा सही मुझको दरिया अता हो
मोहब्बत के दामन का साया अता हो
मैं अब तो गुलाम आपका हो गया हूं
इलेक्शन में मैं भी खड़ा हो गया हूं
जिधर तुम रहोगे उधर मैं रहूंगा
तुम्हारी खातिर जियूंगा मरूंगा
तुम्हारे खिलाफ अब न कुछ सुन सकूंगा
खुदा की कसम जो कहोगे करूंगा
मैं अब आदमी काम का हो गया हूं
इलेक्शन में मैं भी खड़ा हो गया हूं
डॉ। एजाज पापुलर 'मेरठी'
चुनाव महाकुम्भ है,
सबसे बड़ा पर्व है,
आप को भी गर्व है,
कि अपना वोट दीजिये।
किसी के बहकावे में और
किसी के भुलावे में,
किसी के डराने से,
न आना कानी कीजिये।
दिल से दिमाग से,
सही सही निर्णय हो,
समाज का भी भला हो,
कि ऐसा निर्णय लीजिये।
मत का प्रयोग करें,
मदद सहयोग करें,
अच्छी सरकार हेतु,
प्रेम सर पीजिये।
किसी का माहौल नहीं,
किसी का प्रचार नहीं,
किसी का प्रभाव नहीं,
दिखता चुनाव में।
कहीं कोई शोर नहीं,
दिखता भी जोर नहीं,
किसी भी नाम का,
प्रभाव नहीं गांव में.
सभी अपने रंग में हैं,
सभी जन उमंग में हैं,
सब ही लगै हैं,
मेल जोल हाव भाव में।
कौन सी सरकार बने,
किसकी सरकार बने,
जनता कैसे पार होगी,
बैठ किसी नाव में।
सांड़ बनारसी
चुनावी मौसम
आते ही शिकार करने को
जनता का
आते हैं जो लीडर-बहेलिये
रोटी-कपड़ा-मकान
देने की तो बात छोड़ो
इनने न जाने
कितनों के प्राण ले लिए
इतना संभल कर
घर से निकल कर
आप करते हैं
मतदान जिनके लिए
बात बन जाए
तो ठीक बात है परन्तु
बात न बने तो फिर
पांच साल झेलिए
डॉ। राहुल अवस्थी
हाथ जोड़ते हैं कभी, कभी पकड़ते पाँव
गिरता है चुनाव में नेताओं का भाव
कितना गंदा हो गया राजनीति का खेल
अपनों से है दुश्मनी, दुश्मन से है मेल
झूठे वादे ढेर से, मीठी-मीठी बात
इससे ज्यादा कुछ नहीं नेता की औकात
नेताओं की सोच को क्या समझेंगे आप?
रंग बदलने में है ये, गिरगिट के भी बाप
लिए कटोरा हाथ में मांग रहा जो वोट
वो खुल के चुनाव में लुटा रहा है नोट
सोच समझ कर इस दफा करिएगा मतदान
वोट आपका कीमती इतना रखना ध्यान
जो जीतेगा शान से भरेगा अपनी जेब
उतना काबिल नेता वो, जिसमें जितना ऐब
राजनीति की जंग में तीर है न तलवार
झूठे वादों का यहां चलता है हथियार
रौनक कानपुरी
वक्त पहचानता है खूब मुझे,
मैं कई इंकलाब लाया हूं
लोग लाएं हैं आग, बम, नारे,
मैं गजल की किताब लाया हूं
तुम जो अच्छा लगे वो चुन लेना,
मैं बहुत सारे ख्वाब लाया हूं
इन्हीं हाथों से ताज ओ तख्त ओ दस्तारें बदल डाली,
हम अपनी पर उतर आए तो सरकारें बदल डालीं
गमों की धूप में मुस्कुराकर चलना पड़ता है,
ये दुनिया है यहां चेहरा सजाकर चलना पड़ता है,
सियासत साजिशों का एक ऐसा खेल जिसमें,
कई चालों को भी खुद से छुपाकर चलना पड़ता है
।
मसाइल इतने पेचीदा नहीं है
सियासत दां ही संजीदा नहीं हैं,
लबो से नोंच लो उनके तब्बसुम,
जो सबके दुख से रंजिदा नहीं है
।
कारोबार चलने में देर कितनी देर लगती है,
अब फिजां बदलने में कितनी देर लगती है,
सिर्फ दो सियासतदां घूम जाए बस्ती में,
फिर घरों के जलने में देर कितनी लगती है
अशोक साहिल
सबका सुनेंगे काम इन्हें वोट दीजिए,
छोटे बड़े तमाम इन्हें वोट दीजिए,
मुड़कर कभी न देखेंगे ये पांच साल तक,
रोएगी आवाम इन्हें वोट दीजिए,
पेट्रोल हो की चीनी हो या चाहे सब्जियां,
सबका बढ़ेगा दाम इन्हें वोट दीजिए,
मक्कारियों का, छूट का, दंगा-फसाद का
है सारा इंतजाम इन्हें वोट दीजिए
।
आईएएस, आईपीएस हाथ जोड़े हैं खड़े
देख लीजे जोर कितना लीडरे जाहिल में है
वो इलेक्शन में उठा, जीता, मिनिस्टर हो गया
केस उसका आज भी लेटा हुआ फाइल में है।
नंदल हितैषी
मां-बाप चुप खड़े हैं जमाने बदल गए,
बच्चे बड़े हुए तो सिरहाने बदल गए,
दिल्ली में बस गए हैं वो चंबल को छोड़कर,
किरदार सब वहीं हैं ठिकाने बदल गए
दिल्ली का तख्त-ओ-ताज भी एक पल में बेच दें,
संसद भवन को जाके ये चंबल में बेच दें,
मौका अगर मिले तो हमारे ये रहनुमा,
भारत को एक शराब की बोतल में बेच दें
मां-बाप चुप खड़े हैं जमाने बदल गए,
बच्चे बड़े हुए तो सिरहाने बदल गए,
दिल्ली में बस गए हैं वो चंबल को छोड़कर,
किरदार सब वहीं हैं ठिकाने बदल गए
दिल्ली का तख्त-ओ-ताज भी एक पल में बेच दें,
संसद भवन को जाके ये चंबल में बेच दें,
मौका अगर मिले तो हमारे ये रहनुमा,
भारत को एक शराब की बोतल में बेच दें
खालिद जाहिद
प्रधानमंत्री को उन्हें यूपी में प्रतिबंधित कर देना चाहिए। खुर्शीद ने जो कहा है, वो राजनीतिक मकसद से कहा है। वैसे तो उन्हें बर्खास्त करना चाहिए, लेकिन कम से कम इतना तो कर सकते हैं। वह नौ फीसदी आरक्षण की बात कर रहे हैं, इसमें केवल लोकसभा ही कुछ कर सकती है।
- शरद यादव, जनता दल (यू)
यह कोई उल्लंघन नहीं है। जो उन्होंने कहा है वो हमारे चुनाव घोषणा पत्र का हिस्सा है और अगर उन्होंने कोई बात घोषणा पत्र से कही है तो चुनावों में वायदे करना हर राजनीतिक पार्टी का अधिकार है।
-दिग्विजय सिंह महासचिव कांग्र्रेस
जिहादी आतंकवादियों के लिए सोनिया गांधी के आंसू अब मुसलमानों को पिघला नहीं पाएंगे।
- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
अजब नहीं है जो तुक्का भी तीर हो जाए
फटे जो दूध तो फिर वो पनीर हो जाए
मवालियों को न देखा करो हिकारत से
न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए
-डॉ। एजाज पापुलर 'मेरठी'