नई प्रजाति तुरन्त लिस्ट में
डॉ। आलोक खरे ने बताया कि नेशनल बायोडायवर्सिटी डिपार्टमेंट की पहल किसी को भी अगर नया प्लांट या जीव-जंतु मिलता है तो फौरन लिस्ट में शामिल किया जाए। इसके लिए गांव से शुरुआत की जा रही है। लिस्ट में उसका कॉमन नेम, बायोलॉजिकल नेम, प्लेस, फाउंडर का नाम और क्वालिटी मेंशन किया जाएगा। इसके तहत किसी को गांव में जाकर रिसर्च करनी होगी तो उन्हें प्रधान से परमिशन लेनी होगी। वहीं नए प्लांट या जीव जंतुओं के बारे में वैद्य से भी जानकारी ली जाएगी। इसको सही दिशा में ले जाने के लिए कई वैज्ञानिक और प्रोफेसर की जरूरत पड़ेगी। जहां जितनी ज्यादा बायोडायवर्सिटी होगी और उनकी रिपोर्ट तय करना और विशेषताओं पर शोध करना उतना ही टाइम टेकिंग होगा। इसमें कई वैज्ञानिक और प्रोफेसर को शामिल किया जाएगा।
क्यों पड़ी जरूरत?
कई बार ऐसी बातें सामने आ चुकी हैं कि किसी प्लांट या प्रोडक्ट की खोज इंडिया में हुई लेकिन उसका पेटेंट किसी दूसरे कंट्री ने अपने नाम से करा लिया। बासमती चावल, नीम, हल्दी जैसे कई ऐसे प्लांट हैं जिसकी खोज और इंपॉर्टेंस इंडिया में पता चली लेकिन पेटेंट किसी और कंट्री ने करा लिया। इंडिया में केरल, हिमाचल प्रदेश समेत नॉर्थ ईस्ट के कई स्टेट्स को बायोडायवर्सिटी का हॉट स्पॉट माना जाता है। इसलिए बायोडायवर्सिटी डिपार्टमेंट ने ऐसी चीजों की लिस्टिंग करना शुरू कर दिया है। बहुत जल्द यूपी में भी यह शुरू हो जाएगा।
Law क्या कहता है?
इन पर हो चुका है विवाद
- 1995 में हल्दी को लेकर
- 1996 में नीम को लेकर
- 1997 में बासमती शब्द पर
- करीब 100 से ज्यादा भारतीय मूल के प्लांट का दूसरे कंट्री अपने नाम से पेटेंट कराने की तैयारी में हैं।
Common people को होगा फायदा
नेशनल बायोडायवर्सिटी डिपार्टमेंट के इस पहल से आम लोगों को भी काफी फायदा होगा। पेटेंट अगर अपने पास है तो उससे तैयार होने वाला प्रोडक्ट पब्लिक को सस्ता पड़ेगा। वहीं अगर पेटेंट किसी और कंट्री के पास होगा तो उस प्रोडक्ट के लिए लोगों को ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। फॉर एग्जाम्पल अगर अमेरिका के पेटेंट वाली किसी चीज का प्रयोग कर इंडिया में एक दवा बनाई जाती है तो इसके लिए हमें अमेरिका को निश्चित अमाउंट देना होगा। प्रोडक्ट की कॉस्ट अपने आप बढ़ जाएगी।
बरेली में होती हैं research
बीसीबी में बॉटनी से पीएचडी करने वाले राजेश कुमार ने हाल ही में अपनी रिसर्च पूरी की है। छह साल की रिसर्च के बाद उन्होंने कई एंडेमिक, एक्जॉटिक और रेयर प्लांट स्पेशीज का पता लगाया था। इस रीजन से उन्होंने 13 प्लांट्स को फस्र्ट टाइम रिपोर्ट किया। डॉ। आलोक खरे का कहना है कि पहले भी इस तरह के डेवलपमेंट यहां के स्कॉलर्स करते रहे हैं। ऐसे में पॉसिबिलिटी बनी रहती है कि कभी यहां से भी नई खोज हो जाए।
Report by:Gupteshwar Kumar