- 90 फीसदी निजी हॉस्पिटल्स में नहीं इलाज व मेडिकल फैसिलिटी की रेट लिस्ट
- गैर जरूरी मौकों पर भी हो रहा वेंटिलेटर लगाने का खेल, मोटी कमाई का जरिया
BAREILLY: मरीजों की देखभाल और उनके बेहतर इलाज की सेवाभाव वाला पेशा अब मोटी कमाई का धंधा बनता जा रहा है। मरीजों की जान के बजाए उनकी जेब पर टिकी निगाहें अब कारगर इलाज नहीं मुनाफे की खोज में लगी हैं। कड़वा पर सच है कि मेडिकल प्रोफेशन में यह अनचाहे और गंभीर बदलाव न सिर्फ आ चुके हैं बल्कि गहराई से अपनी पैठ भी बना चुके हैं। मुनाफे की इस बीमारी ने मेडिकल हब से अपनी बेहतरीन इमेज वाले बरेली शहर को भी निगलना शुरू कर दिया है। भले ही आज भी बरेली के ज्यादातर निजी नर्सिग होम्स व हॉस्पिटल्स के लिए पेशेंट्स और उनका इलाज ही फर्ज हो पर कइयों का मकसद अब मरीजों से मोटी उगाही बन गया है। वेंटिलेशन से वसूली इसी की एक कड़ी है।
रेटलिस्ट से परहेज इन्हें
बरेली के 90 परसेंट से ज्यादा निजी हॉस्पिटल्स व नर्सिग होम्स में अपने यहां मुहैया इलाज व जांच और उनके रेट नहीं डिस्प्ले किए गए हैं। करीब किसी भी हॉस्पिटल में रेटलिस्ट न लगी होने से पेशेंट्स के लिए इलाज में आने वाले खर्च का अनुमान नहीं लगा पाते, जिससे कई बार इलाज के तौर पर ली जाने वाली रकम से ट्रीटमेंट के असल खर्च का अंदाजा नहीं लगता और इसी से पेशेंट्स की जेब में सेंध लगाई जाती है। बार-बार के हंगामे और पेश्ेांट्स की दिक्कतों के बावजूद आईएमए की ओर से कभी इस ओर पहल नहीं की गई और न ही रेटलिस्ट लगवाने के निर्देश दिए गए हैं।
गैरजरूरी मौकों पर वेंटीलेटर
बरेली के मेडिकल एरिया से जुड़े जानकारों ने वेंटीलेटर के यूज पर होने वाले हंगामे और इससे कमाई के तरीकों पर खुलासे किए। जानकारों ने बताया कि कई बार कुछ हॉस्पिटल्स गैर जरूरी केस में भी वेंटीलेटर लगाते हैं। वेंटीलेटर दरअसल सांस की दिक्कत के लिए लगाया जाता है, जो इलाज के दौरान पेशेंट की टूटती सांसों को सहारा देने के लिए जरूरी है, लेकिन कई बार ऐसे सीरियस केस जिनमें सांस चल रही हो उसमें भी वेंटीलेटर लगाया जाता है, जिससे इलाज में हेल्प न मिले। पर पेशेंट के खाते में खर्च बढ़ जाता है। वहीं कई बार कंडीशन स्टेबल होने के बावजूद वेंटीलेटर लगाना जारी रहता है, जिससे कमाई और मुनाफे में इजाफा हो सके।
बड़ा सेटअप मोटा मुनाफा
बरेली के निजी हॉस्पिटल व नर्सिग होम्स में कटेगरी के हिसाब से वेंटीेलेटर पर मरीज को रखने की फीस वसूली जाती है। जानकारों के मुताबिक हॉस्पिटल का जितना बड़ा सेटअप होगा आईसीयू व वेंटीलेटर के चार्जेस उतने ज्यादा होंगे। छोटे सेटअप वाले हॉस्पिटल्स का वेंटीलेटर चार्ज भ्000 से 8000 रुपए पर डे तक होता है। वहीं बड़े सेटअप वाले हॉस्पिटल क्0,000 से ख्0,000 रुपए पर डे के हिसाब से कीमत वसूलते हैं। वेंटीलेटर के साथ मॉनीटर, सीरिंजपंप, ऑक्सीजन के इक्विपमेंट भी साथ लगे होते है, जिनके खर्च अलग से वेंटीेलेटर के साथ जोड़े जाते हैं।
नहीं पता चलती वेंटीलेटर की असलियत
बरेली के कई निजी हॉस्पिटल्स में बीते कई साल में पेशेंट की मौत हो जाने के बावजूद वेंटीलेटर पर रख इलाज के नाम पर कमाई करने के आरोप लगे हैं। जानकार भी इन आरोपों को पूरी तरह से नहीं नकारते। बरेली के एक बड़े मेडिकल एक्सपर्ट का कहना है कि कई हॉस्पिटल्स वेंटीलेटर पर रखे पेंशेंट को परिजनों से मिलने नहीं देते, जिससे पेंशेंट्स व डॉक्टर के बीच शक की दीवार बनती है। सोर्सेज ने बताया कि इसका फायदा कुछ दागी हॉस्पिटल्स पेशेंट की मौत के बाद भी उसे वेंटीेलेटर पर रख इलाज जारी होने के नाम पर कमाई करने से पीछे नहीं।
यह सच है कि बरेली में 90 फीसदी प्राइवेट हॉस्पिटल्स में इलाज की रेटलिस्ट नहीं है। ज्यादातर जगह पेशेंट्स को वर्बली रेट बताए जाते हैं। आईएमए जनरल मीटिंग में मेंबर्स को रेटलिस्ट लगाने पर निर्देश देगी। वेंटीलेंटर से वसूली की कंप्लेन सही पाई गई तो कड़ा एक्शन लिया जाएगा। - डॉ। जीएस खंडूजा, प्रेसीडेंट, आईएमए
प्राइवेट हॉस्पिटल्स में इलाज की रेटलिस्ट न लगना दरअसल अहम का इश्यू है। वहीं आईएमए की ओर से भी इस पर निर्देश नहीं दिए गए। शेड्यूल एच कानून कड़ाई से लागू हो, वहीं इलाज में हॉस्पिटल्स ज्यादा ट्रांसपेरेंसी रखे। मेडिकल पेशे को कमाई और कमीशन का धंधा न बनाएं।
-डॉ। जेके भाटिया, वाइस प्रेसीडेंट, आईएमए
वेंटीलेटर पर इलाज कई बार पेशेंट और मरीज के बीच भरोसा न होने की वजह है। हॉस्पिटल्स को इलाज के दौरान वेंटीलेटर से हटाने के बाद परिजनों को पेशेंट की हालत दिखानी चाहिए। जिससे ऐसे गंभीर आरोप न उठे। पेशेंट्स को रसीद लेने का हक है। उसे उम्मीद दें पर झूठे वादे नहीं।
-डॉ। सुदीप सरन, पीआरओ आईएमए