-दर्जनों बने और अधबने असलहे बरामद
-खिरनी निवासी एक आरोपी हुआ फरार
BAHERI : डंडिया नगला के जंगल में चल रही असलाह फैक्ट्री का वेडनसडे को भंडाफोड़ हुआ। बहेड़ी थाना पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर छापेमारी की तो एक आरोपी हत्थे चढ़ गया जबकि दूसरा फरार हो गया। छापेमारी के दौरान आरोपियों ने फायरिंग की भी कोशिश की, लेकिन पुलिस फोर्स अधिक होने के चलते समर्पण कर दिया। इस दौरान मौके से दर्जनों बने व अधबने असलहे और अन्य उपकरण बरामद हुआ। फरार आरोपी की तलाश के लिए भी टीम का गठन किया गया है।
काफी वक्त से थी पुलिस की नजर
लंबे समय से डंडिया नगला के जंगल में असलाह बनाने की फैक्ट्री की सूचना मिल रही थी। कई बार पुलिस ने छापा भी मारा लेकिन सूचना लीक होने के चलते आरोपी फरार हो गए। बुधवार को भी पुलिस को जंगल में बनी झोपड़ी में असलाह तैयार होने की सूचना मिली। इसके बाद एसएसआइ माधो सिंह बिष्ट के साथ दर्जनों पुलिसकर्मियों ने छापा मारा। पुलिस की अचानक हुई कार्रवाई से आरोपियों को भागने का मौका नहीं मिल सका। इस दौरान पुलिस के हत्थे चढ़ने से बचने के लिए मोर्चा लेने की कोशिश की लेकिन फोर्स अधिक होने के चलते भागने लगे। पुलिस ने दौड़ाकर उत्तराखंड के रुद्रपुर निवासी बलवीर सिंह को हिरासत में ले लिया, जबकि खिरनी निवासी जाकिर फरार हो गया। जांच में पता चला कि आरोपी बलवीर पूर्व में भी अवैध असलाह बनाने के जुर्म में जेल जा चुका है।
दर्जनों असलहों के साथ सामान बरामद
आरोपी को हिरासत में लेने के बाद झोपड़ी से दर्जनों अधबने व कुछ बने हुए असलहे बरामद किए गए। पुलिस को मौके से खराद मशीन सहित कई अन्य सामान भी मिले। पकड़े गए आरोपी ने बताया कि आसपास के जिलों के साथ ही उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में असलाहों की सप्लाई की जाती थी।
कुछ हजारों में होती थी डील
आरोपियों की ओर से तैयार किए गए असलाहों की कीमत महज एक हजार रुपये से पांच हजार रुपये के बीच होती थी। सप्लाई देने के लिए हमेशा पुराने ग्राहकों को ही तवज्जो दिया जाता था। पुलिस के हत्थे चढ़े आरोपी ने बताया कि पुराने ग्राहक के परिचय से आने वाले नए ग्राहकों को ही असलाह दिया जाता था।
बदल देते थ्ो ठिकाना
असलाह फैक्ट्री चलाने वाले आरोपी ने बताया कि कुछ दिनों के अंतराल पर वे अपना ठिकाना बदल देते थे। इसी कारण हमेशा अस्थाई झोपड़ी बनाकर असलाह तैयार करते थे। आरोपी बलवीर ने बताया कि ऑर्डर मिलने के बाद असलाह तैयार किया जाता था। इसके बाद गोरखधंधे को बंद कर दिया जाता था।