बरेली (ब्यूरो)। एआई को लेकर पूरी दुनिया में चर्चा है। इसके अच्छे-बुरे पहलुओं पर बात हो रही है। यूथ में इसका क्रेज तेजी से बढ़ रहा। स्टूडेंट्स किताबों से ज्यादा एआई पर डिपेंडेंट हो रहे हैैं। यहां तक कि इसका इस्तेमाल अब पीएचडी की रिसर्च के लिए भी होने लगा है। रिसर्चर सीधे एआई से टॉपिक पर मैटीरियल उठा रहे हैैं। पहले जहां किसी सब्जेक्ट पर शोध के लिए तीन-चार साल लग जाते थे, वहीं अब यह काम चुटकियों में हो रहा है। यह बात दीगर है कि उन्हें थीसिस निश्चित अवधि के बाद ही जमा करनी होती है। इस तरह के मामलो में एथिक्स से लेकर क्वालिटी जैसे सवाल खड़े होते हैैं। एक्सपर्सट्स का कहना है कि एआई का पॉजिटिव के साथ-साथ निगेटिव अफेक्ट हमारी एजुकेशन क्वालिटी पर पड़ रहा हैै। उनका मानना है कि एआई की नॉलेज सतही है। वह कंप्रेटिव स्टडी में माहिर नहीं है।

क्वालिटी पर पड़ा है असर
शोध करने के लिए कई-कई किताबों का गहन अध्ययन करना होता है। कंप्रेटिव स्टडी करनी होती है। वहीं कई एआई टूल्स के आने के बाद मेहनत के साथ ही समय भी काफी कम लगने लगा है। कहते हैैं न &लर्निंग बाई डूइंग नॉरिश योर स्किल&य। जहां लोग टॉपिक पर खूब मेहनत करते थे, लेकिन अब एआई से उन्हें मसौदा आसानी से मिल जाता हैै।

बरसों का काम मिनटों में
शोध करने के लिए रिसर्चर को लाइब्रेरियों के चक्कर लगाने होते हैैं। एक्सपर्ट से सेशन लेने होते हैैं। कई बार लंबी यात्राएं भी करनी होती हैैं, ताकि शोध के लिए ज्यादा से ज्यादा डिटेल्स जुटाई जा सकें। इसके उलट यह ज्यादा आसान हो गया है कि एआई बॉट्स पर सवाल डालिए और मिनटों में उससे जुड़ा मैटीरियल अवलेबल हो जाता है। छोटे से लेकर बड़े प्रोजेक्ट के लिए लोग इसका यूज कर रहे हैैं। एआई क्वालिटी रिसर्चिस के लिए बड़ा खतरा साबित होगा। धीरे-धीरे रिसर्चर एआई पर डिपेंडेंट होते जाएंगे। एआई का इंटरफेस पहले थोड़ा मुश्किल था। पहले लोग इससे इतना फैंडली नहीं थे, लेकिन इसका यूज अब लगातार बढ़ता जा रहा हैै। लोग पढ़ाई से ज्यादा एआई पर निर्भर हो रहे हैैं।

मेहनती स्टूडेंट्स को होगा नुकसान
शॉर्टकट मारने वालों के लिए एआई फायदेमंद है। मेहनती स्टूडेंट्स के लिए एआई नुकसानदेह साबित होगा। उन्होंने कड़ी मेहनत करके बरसों रिसर्र्च की है। वहीं अनएथिकल रूप से रिसर्च करने वाले आसानी से आगे बढ़ जाएंगे। एआई का इस्तेमाल करके स्टूडेंट्स रिसर्च तो पूरी कर लेगेंं, लेकिन निश्चित ही क्वालिटी में वह कमजोर होंगे।

स्वयं करनी होगी अपनी जांच
एजुकेशन मैक्स अ मैन परफेक्ट। रिसर्च को खुद पर इनट्रॉसपेक्शन करना होगा। मतलब अपने आप को खुद जांचना होगा कि आप क्या कर रहे हैैं और क्या नहीं। रिसर्च का मतलब हैै जानना। यह एक नोबल थॉट है। जैसे कि न्यूटन ने जाना कि ग्रैविटी कैसे आई। यह रिसर्च ही तो है। जेम्स वाट नेे जाना की स्टीम हैज पॉवर, यह एक रिसर्च ही हैै। एआई के आने के बाद क्वालिटी गिर रही है। आर्टीफीशियल का मतलब है कि वह जो अनरियल हो। आर्टीफीशियल कभी भी रियल नहीं हो सकता। इसका असर हमें रिसर्च पर भी देखने को मिलता हैै। स्टूडेंट्स जल्दी के चक्कर में एआई का भरपूर इस्तेमाल करते हैैं।
प्रो। नीरजा अस्थाना, डिफेंस स्टडीज

दिमाग कमजोर कर देगा एआई
कहते हंै कि हमारे जिस अंग का इस्तेमाल न करें, वह कमजोर हो जाता हैं। यकीनन एआई दिमाग को कमजोर करेगा। एआई एक ऐसा टूल है जिससे लोग चोरी भी कर लेंगे तो पकड़े जाने के चांस कम होंगे। क्योंकि इसमें प्लैगरिज्म चैक करने का कोई तरीका नहीं हैै। उदहारण के लिए कोई ऐसा टीचर अपॉइंट कर लिया जाए। जो इस जॉब के लिए परफेक्ट हो, लेकिन उसके पास कोई क्वालिटी नॉलेज न हो तो कितना गलत होगा। एआई नॉर्मल यूज के लिए तो ठीक है पर भविष्य के लिए घातक है।
प्रो। यशपाल सिंह, एजुकेशन डिपार्टमेंट

रिसर्चर्स के लिए यूजफुल
एआई रिसर्चर्स के लिए यूजफूल है। जहां डेटा पर काम हो रहा है, उस फील्ड के लिए यह एक वरदान हैै। रिसर्च की पुराने टॉपिक पर कोई रिसर्च कर रहा है तो एआई मददगार साबित होगा। लेकिन अगर किसी नये टॉपिक पर रिसर्च के लिए एआई का इस्तेमाल करेंगे तो यह बहुत ही गलत होगा। यह लोगों पर डिपेंड है कि वह इसे कैसे इस्तेमाल कर रहे हैैं।
प्रो। एसएस बेदी, सीएसआईटी डिपार्टमेंट

एआई में मौलिकता नहीं
एआई जनित रचनात्मक कार्यों में मौलिकता और प्रमाणिकता में कमी आती है। निश्चित रूप से शोध की मौलिकता भी एआई से प्रभावित होती है और मौलिकता में कमी आती है। मीना यादव, हिंदी, एचओडी