Unlimited cylinder
इंडेन, भारत और एचपी की ओर से सब्सिडी के मैक्सिमम 9 सिलेंडरों की संख्या तो फिक्स रखी है लेकिन नॉन सब्सिडी सिलेंडर की संख्या पर कोई रोक-टोक नही है। इस बात का फायदा एजेंसियां उठाती हैं। कंज्यूमर्स के नाम पर इन एजेंसियों की ओर से मनमाने डोमेस्टिक सिलेंडर मंगाए जाते हैं और सिटी में चल रहे फूड बिजनेस से जुड़े प्रतिष्ठानों पर सप्लाई कर दी जाती है।
Non subsidy में खेल
यह खेल नॉन सब्सिडी वाले सिलेंडर के साथ ही होता है। सूत्रों की मानें तो एजेंसी की ओर से सब्सिडी वाले सिलेंडर का ही रिकॉर्ड मेंटेन किया जाता है। तीनों कंपनियों की बात करें तो टोटल 21 एजेंसियों पर करीब 2,76,000 कंज्यूमर रजिस्टर्ड है। मगर नॉन सब्सिडी वाले सिलेंडर के साथ ऐसा कुछ नहीं होता है। एजेंसियां नॉन सब्सिडी वाले सिलेंडर के रिकॉर्ड में घालमेल आसानी कर सकती हैं।
हर किसी का फायदा
एलपीजी कंपनियों की ओर से एक नॉन सब्सिडी सिलेंडर का दाम 963.50 रुपए फिक्स कर दिया गया है। मगर एजेंसियां इस सिलेंडर को 50 से 100 रुपए ज्यादा लेकर दुकानों को सप्लाई कर देती हैं। यह प्रॉफिट कंपनियों को न जाकर एजेंसियों को मिल जाता है। दूसरी तरफ दुकानदार भी कॉमर्शियल सिलेंडर लेने से बच जाते हैं। डिलीवरमैन इस पूरे खेल में बिचौलिए का रोल प्ले करते हैं। अपने-अपने एरियाज की दुकानों पर सिलेंडर पहुंचाने पर डिलीवरीमैन को कमीशन भी दिया जाता है।
मिल जाता है 28 केजी
दुकान मालिकों का झुकाव कॉमर्शियल सिलेंडर के बजाय डोमेस्टिक सिलेंडर पर होने का मेन रीजन दोनों की कीमत का अंतर। एक कॉमर्शियल सिलेंडर, जो कि 19 किलो का होता है, के लिए ओनर को जहां 1700 रुपए खर्च करने पड़ते हैं, वहीं इतने ही रुपए खर्च कर दो नॉन सब्सिडी वाले डोमेस्टिक सिलेंडर आसानी से मिल जाते हैं। इन दोनों सिलेंडर में टोटल 28 किलो गैस रहती है। कई बार दुकान ओनर को सब्सिडी वाले सिलेंडर भी मिल जाते हैं। ऐसी कंडीशन में 54 किलो तक गैस भी इतने दाम खर्च कर मिल जाती है।
लगते हैं कई दिन
अगर नियमों पर गौर किया जाए तो गैस की बुकिंग होने के 48 घंटे के अंदर गैस की डिलीवरी कंज्यूमर्स को कर दी जानी चाहिए। मगर एजेंसियों की ओर से अक्सर ऐसा नहीं किया जाता है। गैस की डिलीवरी करने में 15-20 दिन या इससे कहीं ज्यादा समय लगाया जाता है। यह सब खेल सिर्फ कंज्यूमर्स के कोटे का सिलेंडर प्रतिष्ठान ओनर को प्रोवाइड कराने के लिए की जाती है। कुछ इसी अंदाज में किसी और के कोटे का सिलेंडर किसी ओर को प्रोवाइड कराने का काम एजेंसियां करती हैं।
पहले नहीं हो पाता था खेल
सितम्बर 2012 के पहले इस तरह का खेल बहुत कम ही हो पाता था। कारण एलपीजी कंपनियां प्रति कंज्यूमर के हिसाब से फिक्स सिलेंडर की सप्लाई एजेंसी को करती थीं। इसकी वजह से एजेंसियां मनमानी कर एक्स्ट्रा सिलेंडर नहीं मंगा पाती थीं, लेकिन 2012 के बाद एजेंसियां अपनी जरूरत के अकॉर्डिंग कंपनी से सिलेंडर मंगा सकती हैं।
'प्रतिष्ठानों में डोमेस्टिक यूज होना गलत है। अगर एजेंसी सभी सिलेंडर का रिकॉर्ड ठीक ढंग से मेंटेन करें तो इस तरह की प्रॉब्लम नहीं होगी। कुछ लोगों की वजह से ही प्रतिष्ठानों तक डोमेस्टिक सिलेंडर पहुंच रहे हैं.'
राजेश गुप्ता,
प्रोपराइटर, एजेंसी, भारत पेट्रोलियम
'प्रशासन इस तरह की एक्टिविटी पर रोक लगा सकता है। आम पब्लिक को प्रॉब्लम तो होती ही है। इसके अलावा सेफ्टी के लिहाज से भी प्रतिष्ठान में डोमेस्टिक सिलेंडर यूज करना बिल्कुल सही नहीं है.'
रवि, मैनेजर, एजेंसी, एचपी