गांव और शहर में तालमेल की कशमकश
कौवा चले हंस की चाल तो अपनी चाल भी भूल गया। प्ले में इसी मुहावरे को चरितार्थ किया गया है। प्ले के माध्यम से राइटर ने एक सीरियस टॉपिक पर प्रकाश डाला है। जो किसी न किसी के लाइफ में घटित जरूर होता है। नाटक में गांव से एक युवक शहर की ओर रुख करता है और वहीं पर रम जाता है। अपना चोला और व्यक्तित्व तक चेंज कर देता है। हाव-भाव और चाल-ढाल सब शहरी बाबुओं की तरह कर लेता है लेकिन जब वह दोबारा गांव की ओर रुख करता है तो उसे कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। वह अपने पूर्व की लाइफ से तालमेल नहीं बिठा पाता। राइटर ने पात्र के इस द्वंद्व के गंभीर विषय को हास्य की पुट से बड़े ही सहज ढंग से मंच पर उतारने की सार्थक कोशिश की है। प्ले के पात्र नवीन सिंह ठाकुर, प्रमोद कुमार, सुनील उपाध्याय और पुंज प्रकाश ने अपनी सधी हुई एक्टिंग से सबको प्रभावित किया।
मुखौटों से दिखाया जिंदगी का रंग
हर शख्स में स्टूपिडिटी होती है लेकिन कोई भी इसे स्वीकार नहीं करता। इंटरनेशल थिएटर फेस्ट में संडे को आईएमए में मंचित इनफाइनाइट स्टूपिडिटी में राइटर ने लाइफ के इसी रिअलिटी को परिलक्षित करने की भरसक कोशिश की है। प्ले के जरिए सभी को यही संदेश देने की कोशिश की गई कि किसी को भी सपना देखना छोडऩा नहीं चाहिए। हताश होकर लाइफ को मिजरेबल बनाने की आवश्यकता नहीं है। पॉजिटिव थिंकिंग रखना चाहिए और लाइफ में कुछ न कुछ करते रहना चाहिए। यही भावना एक शख्स को जीने की राह दिखाता है, जो थक गया वह वहीं पर रुक जाता है।
ह्यूमन इमोशंस ऑन क्लाउंस
यह एक म्यूकल प्ले था। राइटर ने ह्यूमन के विभिन्न इमोशंस को क्लाउन्स के जरिए मंच पर प्रदर्शित किया। इसके लिए उन्होंने 10 क्लाउंस का सहारा लिया। जो कंट्री के विभिन्न भागों से थे। राइटर ने प्ले के मंचन के लिए क्लाउंस को इसलिए चुना क्योंकि वे अपने बहुरूप में सभी इमोशंस को समेटे हुए होते हैं। क्लाउंस की स्टूपिडिटी जहां ह्यूमन लाइफ पर कटाक्ष कर रही थी वहीं इसने ऑडियंस को काफी गुदगुदाया भी। सभी क्लाउंस अपने म्यूजिकल परफॉर्मेंस से लाइफ के विभिन्न पहलुओं को भली भांति परिलक्षित किया। राइटर ने भले ही 10 क्लाउंस कैरेक्टर का सहारा लिया हो, लेकिन उनके द्वारा मंचित सभी दृश्य किसी एक शख्स की पूरी लाइफ की गाथा का बखान किया।