हिमांशु अग्निहोत्री (बरेली)। जिला अस्पताल स्थित मनकक्ष की किरण हेल्पलाइन पर देशभर से मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कॉल आती हैैं। इसमें कुछ समय पहले बिहार से एक बच्चे की ऐसी कॉल आई, जिसमें वह कह रहा था कि उसे आंखों के सामने पबजी गेम दिख रहा है। वह कई घंटों तक लगातार गेम खेलता रहता था। इसका असर उसके मन पर इतनी गहराई से हुआ कि उसे हर जगह गेम ही दिखने लगा। इससे एक लेवल आगे के गेमिंग एडिक्शन केसेस जिला अस्पताल के मनकक्ष में पहुंच रहा है। जहां उनका ट्रीटमेंट किया जा रहा है।

बिगड़ रही है मेंटल हेल्थ
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ। खुशअदा ने बताया कि उनके पास बिहार से एक बच्चे की कॉल आई थी। बच्चे ने बताया कि वह अधिक गेम खेलता था। अब उसे हर तरफ गेम ही दिखाई दे रहा है। इस पर बच्चे को उसके नजदीकी साइकेट्रिक सेंटर पर रेफर कर दिया गया। वह बताती हैं कि इस तरह के बहुत कम केसेस आते हैैं। ऐसे बच्चों की काउंसलिंग की जाती है। साथ ही मेडिसिन की हेल्प भी ली जाती है। डॉ। खुशअदा बताती हैं कि इस कॉल की खास बात यह थी कि जिसे यह समस्या हुई वह खुलकर सामने आया और उसने किरण हेल्पलाइन का सहारा लिया। इस प्रकार उसे ट्रीटमेंट मिल सका। किरण हेल्पलाइन के माघ्यम से उनके पास प्रतिदिन करीब 15 कॉल्स आती हैैं। इसमें भी पांच से छह कॉल इंटरनेट एडिक्शन की होती हैैं।

इल्यूजन भी होता है
मनोचिकित्सक डॉ। आशीष कुमार बताते हैैं कि अगर कोई भी व्यक्ति लंबे समय तक एक ही चीज को देखता रहे। उसे वह कुछ देर के लिए सामने दिखती रहती है। गेम खेलने वालों को यह समस्या इसलिए अधिक होती है, क्योंकि वह बिना पलक झपके घंटों फोन की स्क्रीन से चिपके रहते हैैं। उनके पास भी इस तरह के कई केसेस आते हैैं, जिन्हें प्रॉपर काउंसलिग देकर ट्रीटमेंट किया जाता है।

केस वन
क्यारा ब्लॉक निवासी 13 साल का एक किशोर खूब गमे खेलता था। वह दिन में पांच से छह घंटे फोन पर ही बिताता था। उसने ऐसे गेम भी खेले जिनकी स्टेज बिना रुपए के अनलॉक ही नहीं होती थी। घर वालों ने किशोर को डांट दिया। ऐसे में वह अनस्टेबल हो गया था। फैमिली वालों ने डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में आकर दिखाया। काउंसलिंग की गई और मेडिसिन भी दी गई। 15 दिनों बाद वह ठीक हो सका।

केस टू
मिनी बाइपास स्थित कॉलोनी में रहने वाली 18 वर्ष की लडक़ी को टेंशन होती थी। वह काफी परेशान रहती थी, इसके बाद घरवालों ने फोन पकड़ा दिया। वह फोन की एडिक्ट हो गई, समस्या सीवियर होने पर घरवाले ट्रीटमेंट के लिए उसे लेकर आए। काफी दिनों तक ट्रीटमेंट किया गया। तब जाकर वह ठीक हो सकी।

केस थ्री
24 वर्र्षीय नव विवाहिता ससुराल आने के बाद से फोन एडिक्ट हो गई। वह अधिकांश समय फोन में ही व्यतीत करने लगी। कई बार घरवालों ने समझाया पर वह नहीं मानी। इसके कुछ समय बाद उसकी स्थिति काफी बिगडऩे लगी। फैमिली वाले अस्पताल लेकर आए। जहां काफी दिनों तक ट्रीटमेंट दिया गया। तब जाकर वह ठीक हो सकी।

कैसे पहचानें फोन एडिक्शन
स्टार्टिंग में बच्चों का पढ़ाई से मन हटने लगता है। स्कूल से आने के बाद भी फोन में लग जाते हैैं। खाना खाते समय और डेली रूटीन वर्क भी बिना फोन के नहीं कर पाते हैैं। फोन हटाने या लेने पर वे गुस्सा हो जाते हैैं। तोडफ़ोड़ करने लगते हैैं। एग्जाम माक्र्स प्रभावित होते हैैं।

ये प्रॉब्लम्स कर रहे फेस
नींद न आना
रूटीन वर्क को न करना
चिड़चिड़ापन
अनिद्रा
एंग्जाइटी
तोडफ़ोड़ करना
गेम के कारण आंखों में और सरदर्द होना

छुड़ाने के तरीके
फोन में टिपिकल लॉक लगाएं
पैरेंट्स बच्चों के साथ अधिक समय बिताएं
छोटे बच्चों को मोबाइल देने से बचें
स्टडी के लिए फोन दें, जिसमें एक्सट्रा एप न हों
समय बिताने के लिए टहलें, एक्सरसाइज करें
फोन की लत को पेंटिंग के माध्यम से छुड़ाया जा सकता है।
एक्सपट्र्स की सलाह लें

सोशल मीडिया से बच्चों की दूरी बनाने में पैरेंट्स का अहम योगदान हो सकता है। वे बच्चों के साथ समय व्यतीत करें। उनके साथ खेलें। बच्चों को भी पैरेंट्स की बात सुननी चाहिए, वे फिजिकली एक्टिविटी बढ़ाएं। गेम फोन में न खेलकर फील्ड में खेलें।
डॉ। खुशअदा, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट

बच्चे फोन एडिक्ट न हों। इसके लिए फोन में टिपिकल लॉक लगाएं। पजल या लंबे डिजिट्स का यूज भी किया जा सकता है। गेमिंग एडिक्शन के सीवियर केसेस में सेशन भी चलाए जाते हैैं। इनमें बच्चों को ट्रीट करने के लिए काउंसलिंग और मेडिसिन का सहारा लिया जाता है।
डॉ। आशीष कुमार, मनोचिकित्सक

मांं- बाप की कर दी हत्या
सैटरडे को झांसी में 26 वर्षीय पबजी एडिक्ट युवक ने अपने मां-बाप की तवा मारकर हत्या कर दी। वह हत्या के बाद नहाया और कपड़े बदलकर कमरे में आराम से बैठ गया। सूचना पर जब पुलिस मौके पर पहुंची तो आरोपी चारपाई पर बैठा हुआ था। पुलिस को सामने देखकर वह हंसने लगा। उसकी बहन ने बताया कि भाई पबजी का एडिक्ट था। उसकी मेंटल कंडीशन ठीक नहीं थी। पैरेंट्स उसे गेम खेलने नहीं देते थे। इस पर अक्सर लड़ाई भी होती थी। आशंका है कि इस विवाद में ही उसने खून कर दिया। इसको लेकर मनोचिकित्सक डॉ। आशीष का कहना है कि अगर मरीज को प्रॉपर ट्रीटमेंट दिया जाता तो ऐसी घटना से बचा जा सकता था।