प्रयागराज ब्यूरो । किशोरावस्था से लेकर युवावस्था तक का सफर काफी नाजुक होता है। लेकिन, यह बात यंगस्टर्स को समझ नही आ रही है। वह वास्तविकता से दूर अलग फैंटेसी की दुनिया में जी रहे हैं। हाई प्रोफाइल लाइफ स्टाइल की चाहत ने उनके परिजनों को परेशान करके रख दिया है। इसके पीछे सोशल मीडिया और इंटरनेट का अहम रोल है। तमाम रील्स और रातों रात सक्सेज हासिल करने के नए नए टोटकों ने उनकी कल्पनाओं को नई उड़ान दे दी है।
एग्जाम्पल नंबर वन- अल्लापुर का रहने वाला व्योम मिश्रा (परिवर्तित नाम) ग्र्रेजुएशन का छात्र है। वह दिनभर आईएएस जैसे कपड़े पहनकर टिपटाप रहता है और वैसा ही व्यवहार भी करता है। ग्रेजुएशन की क्लासेज ज्वाइन नही करता है लेकिन सपना यूपीएससी क्वालिफाई कर आईएएस बनने का है। वह अपने पिता से दिल्ली की एक आईएएस कोचिंग ज्वाइन कराने की जिद कर रहा है। जबकि परिजनों का कहना है कि पहले ग्रेजुएशन तो अच्छे नंबर से पास कर लें और पढ़ाई पर ध्यान लगाए, लेकिन वह नही मान रहा है। सर्च करने पर पता चला कि वह अपने मोबाइल फोन से ऐसे ग्रुपों में जुड़ा है जिसमें आईएएस की तैयारी करने के टिप्स दिए जाते हैं।

एग्जाम्पल नंबर दो- अशोक नगर का रहने वाला आदित्य वर्मा (परिवर्तित नाम) बीएचयू से पीएचडी कर रहा है। पूर्व में सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था लेकिन असफल रहा। हाल ही में उसने किसी नेटवर्क मार्केटिंग का ग्रुप ज्वाइन किया है और उससे प्रभावित होकर अपने पिता से 8 करोड़ रुपए इनवेस्ट करने की मांग कर रहा है। उसका कहना है कि वह इन पैसों से बड़ी चेन बनाएगा और फिर हर माह पचास लाख रुपए कमाकर दिखाएगा। इतना ही नही, उसका हावभाव भी किसी बड़े बिजनेसमैन जैसा हो गया है। इससे पूरा परिवार हतप्रभ है। फिलहाल परिजन बेटे को लेकर डाक्टर के चक्कर काट रहे हैं।

एग्जाम्पल नंबर तीन- सोरांव के रहने वाले विवेक सिंह (परिवर्तित नाम) को बालीवुड एक्टर बनने का शौक है। इसके लिए वह दो बार मुुंबई भी भाग चुके है लेकिन फिर घर वापस आ गए। बावजूद इसके उनके सिर से हीरो बनने का भूत नही उतरा है। बालीवुड के फेमस हीरोज की लाइफ स्टाइल को फालो करते हैं। इससे उनका जहां तहां मजाक बनाया जाता है। उनकी इस फैंटेसी से तंग आकर परिजनों ने उनको डॉक्टर को दिखाया। अब उनकी हर सप्ताह काउंसिलिंग चल रही है और परिजनों से घर का वातावरण चेंज करने की अपील की गई है।

यू ट््यूबर और रील बनाने वाले भी नही हैं कम
इतना ही नही, वर्तमान में सोशल मीडिया के दीवानेपन के चलते यू ट्यूबर बनने और रील बनान वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। इससे भी पैरेंट्स परेशान हैं। कई टीन एजर्स और यंगस्टर्स अपने इस शौक के चलते आर्थिक और शारीरिक नुकसान भी उठा चुके हैं। काल्विन अस्पताल के मनोरोग चिकित्सा केंद्र के आंकड़ों पर जाएं तो हर माह 15 से 20 इस तरह के मरीज दस्तक दे रहे हैं। इनकी हरकतों से परिजन समेत तमाम लोग परेशान होते हैं।

सीजोफ्रेनिया के मरीजों की बढ़ी संख्या
लोगों को काल्पनिक जीवन में ले जाने वाली बीमारी सीजोफ्रेनिया के मरीजों की संख्या में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है। खासकर यंगस्टर्स मेें इस बीमारी का दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। युवा अपनी काल्पनिक दुनिया से बाहर ही नही आना चाहते हैं। हालत यह है कि वह वास्तविक दुनिया के बारे में जानना ही नही चाहते है। अगर उनको इसके बारे में बताया जाए तो वह खुद को नुकसान पहुंचाने की धमकी देने लगते हैं। ऐसे मरीजों की संख्या में भी दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है।

बचाव के तरीके
डॉक्टर्स का कहना है कि साइकायट्रिक डिसार्डर से बचने के लिए कुछ चीजों पर ध्यान देना बेहद जरूरी है। शुरुआत में ही इन चीजों पर लगाम लगा लिया जाए तो युवा ऐसी बीमारी से बच सकते हैं-

- जब तक जरूरी न हो टीएन एजर्स को मोबाइल फोन उपलब्ध मत कराएं।
- उनके मोबाइल फोन ऐप्स की मानीटरिंग खुद से की जाए।
- यह ध्यान दिया जाए कि वह किस तरह के ग्रुप या र्सिर्कल से जुड़े हैं।
- कम से कम छह घंटे उन्हें सोने के लिए उपलब्ध कराएं।
- किसी दूसरे बच्चे की सक्सेज की तुलना अपने बच्चे से कतई मत करें।
- वह कल्पनाओं में रहता है तो डॉक्टर से मिलकर उसकी काउंसिलिंग जरूर कराएं।
- खानपान में हरी सब्जियां, प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ खाने को दें।

सोशल मीडिया और इंटरनेट का संसार इतना बड़ा हो गया है कि टीन एजर्स और युवा उससे बाहर नही निकल पा रहे हैं। कोई यूट्यूबर, कोई रील्स बनाना चाहता है तो कोई रातों रात अमीर बनना चाहता है। सबकी अपनी फेंटेसी हैं। जिसका खामियाजा परिजन भुगतते हैं। जब देर होती है तो हमारे पास मरीज आता है। तब उसकी काउंसिलिंग होती है। कुछ केसेज बन जाते हैं तो कुछ में काफी दे लगती है। परिजनों की ओर से बच्चों को रील और रियल जीवन के बीच का अंतर समझाना ही होगा।
डॉ। राकेश पासवान, मनोचिकित्सक