डेढ़ दर्जन से अधिक ने बनवा रखा था मकान, कुछ दाखिल-खारिज भी करा चुके थे
बेचने वाले, अलग-अलग लोगों को दे रहे हैं अलग-अलग जवाब
दर्जनों लोगों के मेहनत की कमाई मलबे में तब्दील हो गई। इनमें रिटायर्ड कर्मचारी से लेकर व्यापारी तक शामिल हैं। प्लाटिंग करने वाले लोग विश्वास में लेकर जमीन का सौदा कर दिए, यहां तक की लाखों रुपये खरीदारों से ले भी लिए। सेटिंग से कुछ के नाम बैनामा और दाखिल खारिज भी करवा दिया गया। शेष से नवरात्र में बैनामा करने का वादा था। कुछ लोग बैंक से कर्ज लेकर मकान तक बनवा लिए थे। रविवार को पीडीए ने उन सभी के मकानों को जमीन नजूल की बताते हुए ढहा दिया। लोग परेशान इस बात से हैं कि अब उनके द्वारा दिए गए रुपयों का क्या होगा? बेचने वाले उन्हें कहीं जमीन देंगे या फिर रुपये। इस बात को लेकर हर किसी के जेहन में सवाल उठ रहे हैं।
नजूल की थी जमीन तो बेचा कैसे?
प्रयागराज विकास प्राधिकरण द्वारा लूकरगंज में सोमवार को भी ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई। करीब पांच सौ वर्ग गज के ज्यादातर हिस्सों पर बने मकान ढहा दिए गए। रविवार को विरोध कर रहे लोगों को बताया गया कि जमीन लीज पर दी गयी थी। लीज की समय सीमा समाप्त हो चुकी है। लीज का रिनीवल न होने से यह जमीन नजूल की हो चुकी है। पीडीए की बात मान लें तो मतलब यह कि प्लाटिंग करने वाले लोग नजूल की जमीन बेच दिए, जो उनकी थी ही नहीं। जमीन नजूल की थी तो रजिस्ट्री कैसे हुई? दाखिल खारिज कैसे हो गया? यह भी सवालों के घेरे में आ गया है। इससे पीडीए के ऑफिसर्स से लेकर तहसील तक के अधिकारी कर्मचारी सवालों के घेरे में हैं। प्लाटिंग पर जमीन खरीदने वालों की आंख से आंसू बह रहे हैं। उनके सपने ही नहीं वर्षो की गाढ़ी कमाई पर भी बुलडोजर चल चुका है।
पब्लिक का दर्द छलका
सैंपल केस एक
मंजू ओझा मूल से प्रतापगढ़ की हैं। पति मध्य प्रदेश गन फैक्ट्री में सर्विस करते थे। रिटायर होने के बाद वे प्रयागराज आ गए। प्रयागराज में उन्हें छत के लिए जमीन की तलाश थी। लूकरगंज में जिस जगह वह किराए पर रहते हैं उसी के सामने कुछ लोग जमीन लिए थे। रिटायर्ड होने पर पति को रुपये मिले थे। कुछ लोगों के कहने पर उन्होंने उसी जगह 100 वर्ग जमीन 35 लाख रुपये में खरीद ली। कुछ रुपये नवरात्र में रजिस्ट्री बाद देने की बात हुई थी। रुपये लेकर उन्हें स्टैंप पर अथारिटी लेटर बनाकर दे दिया गया। पति के पेंशन पर तीन लाख बैंक से लोन लेकर मकान बनवा लीं। रजिस्ट्री बाद नवरात्र में वह गृह प्रवेश की तैयारी में थी। इसके पहले जमीन नजूल की बताकर पीडीए द्वारा मकान ढहा दिया गया। उन्होंने बताया कि प्लाट देने वालों ने कहा था कि कोई दिक्कत नहीं है।
सैंपल केस दो
अरविंद कुमार पेशे से व्यापारी हैं। वह कहते हैं कि खाली कराए गए प्लाट में 150 वर्ग गज जमीन खरीदे थे। कुल 50 लाख रुपये पर डील हुई थी। यह जमीन वे साल भर पहले लिए थे। उन्हें भी नवरात्रि में रजिस्ट्री करवाना था। कहते हैं कि इसमें जमीन बेचने वालों की गलती नहीं है। दरअसल पूर्व सांसद अतीक के कब्जे की जमीन बताकर पीडीए द्वारा मकान तोड़े गए। उनका सवाल यह हैं कि जब जमीन नजूल की थी तो कुछ लोगों की रजिस्ट्री व दाखिल खारिज कैसे हो गई। यहां तक की नगर निगम में भी उनके नाम चढ़े हुए हैं। उस वक्त ही पीडीए या तहसील प्रशासन नजूल की जमीन बताकर रजिस्ट्री करने से मकान क्यों नहीं किया? नगर निगम ने भी उनसे कोई आपत्ति नहीं की।
सैंपल केस तीन
पुलिस विभाग में तैनात संजय सिंह पत्नी के नाम जमीन खरीदा था। करीब 27 लाख में इनसे जमीन बेचने वालों ने सौदा किया था। बताते हैं कि खरीदी गई जमीन पर कुछ कमरे बने हुए थे। बाकी बैंक से लोन लेकर वह पूरा मकान बनवा लिए थे। परिवार के साथ वे यहां रहने भी लगे थे। इनकी जमीन का रजिस्ट्री से लेकर दाखिल खारिज तक हुआ। नगर निगम में जमीन का वह असेसमेंट भी करवा लिए थे। रजिस्ट्री से लेकर नगर निगम तक उन्हें किसी भी जगह कोई दिक्कत नही हुई। कहीं पर भी किसी ने यह नहीं बताया कि जमीन नजूल या सरकारी अथवा लीज की है।
तहसील के कर्मचारी भी हैं दोषी?
नजूल की जमीन का सौदा करते वक्त आम तौर पर सिर्फ स्टाम्प पर लिखा पढ़ी हो जाती है।
नगर निगम में मकान दिखाकर मकान नंबर एलॉट करा लिया जाता है। इसी के आधार पर बिजली का कनेक्शन मिल जाता है। इसी से प्लाटिंग करने वाले झांसा देते हैं।
लोगों का कहना है कि नजूल की जमीन थी तो रजिस्ट्री कैसे हो गयी। तहसील के कर्मचारियों ने कागज चेक क्यों नहीं किया
दाखिल खारिज के लिए आपत्ति मांगी गयी तब पीडीए, नगर निगम या तहसील के कर्मचारी सोए क्यों रहे
प्लाटिंग करने वालों ने जमीन की हकीकत न सिर्फ छिपायी बल्कि तथ्यों में भी हेराफेरी की
रजिस्ट्री के कागजात पर चौहद्दी से लेकर प्लाट की स्टेटस मेंशन की जाती है। इसे रजिस्टर पर चढ़ाया जाता है। आनलाइन मेंशन किया जाता है। तब भी किसी को कुछ पता क्यों नहीं चला
जमीन एक कंपनी को लीज पर दी गयी थी। लीज की अवधि 2018 में समाप्त हो गयी। इसके बाद जमीन नजूल की हो गयी। इस पर अवैध कब्जा था, उसे पीडीए ने हटवाया है।
आलोक पांडेय
जोनल अधिकारी, पीडीए