इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वादकारियों से काम कराने की फीस लेकर आए दिन हड़ताल करने वाले वकीलों के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की है। कहा है कि यह न केवल कोर्ट के समय अपितु टैक्स पेयर और वादकारियों के वित्तीय संस्थानों की बर्बादी है। इससे सामाजिक उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने मंडलायुक्त प्रयागराज को 2014 की लंबित अपील निश्चित अवधि में तय करने का आदेश जारी करने से इन्कार करते हुए याचिका खारिज कर दी है। साथ ही कहा कि बड़ा सवाल है कि हड़ताल से फायदा किसे होगा?
न्यायमूíत वीके बिड़ला ने प्रफुल्ल कुमार की याचिका खारिज करते हुए कहा है कि कुछ तारीखों को छोड़कर 2014 से अधिकांश समय अधिवक्ताओं की हड़ताल रही और उसके बाद कोविड-19 के कारण अदालतें प्रभावित हुईं। वकीलों की हड़ताल को लेकर कोर्ट तल्ख रही और कहा कि एक रबर स्टैंप बना लिया गया है कि अधिवक्ता हड़ताल पर हैं, वही फाइल पर लगा दिया जाता है। वकील नियमित हड़ताल कर रहे हैं। इधर वकील हड़ताल पर हैं तो दूसरी तरफ हाई कोर्ट में लंबित केस को निश्चित अवधि में तय कराने की मांग में बड़ी संख्या में याचिकाएं दाखिल की जा रही हैं। अधिकांश की आर्डर शीट में वकीलों की हड़ताल का जिक्र है।
कोर्ट ने इसे राज्य के लिए दुखद करार दिया, खास तौर पर राजस्व अदालतों के लिए। अदालत का कहना था कि एक तरफ वकील वादकारियों से फीस लेकर हड़ताल कर रहे हैं, दूसरी तरफ हाई कोर्ट में केस की निश्चित अवधि में सुनवाई के लिए याचिका दायर कर रहे हैं। कोर्ट ने मामले में राहत देने से इन्कार करते हुए कहा कि आदेश दिया गया तो अधिकारियों को हड़ताल की वजह से आदेश का पालन नहीं होने पर अवमानना का भय होगा। ऐसी स्थिति मुकदमेबाजी को बढ़ाएगी और कोर्ट पर दबाव पड़ेगा। कोर्ट ने कहा कि बड़ा सवाल है कि इससे फायदा किसे होगा? वकील काम की फीस तो ले रहे हैं, किंतु काम नहीं कर हड़ताल कर रहे और मुकदमेबाजी को बढ़ा रहे हैं। यह स्थिति वादकारी और समाज के हित में नहीं है। कोर्ट ने महानिबंधक को आदेश की प्रति सभी बार एसोसिएशनों, सभी जिला न्यायाधीशों, मंडलायुक्तों, राजस्व परिषद को 15 दिन के भीतर भेजने का आदेश दिया है ताकि संवेदनशीलता के साथ जागरूकता पैदा हो सके।