इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट की ओर से हुआ वेबिनार

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुनीत कुमार ने रखी अपनी राय

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PRAYAGRAJ: संविधान के प्रथम संशोधन अधिनियम पर मंथन के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट की ओर से बुधवार को वेबिनार का आयोजन किया गया। जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुनीत कुमार ने अपने विचार रखे। वेबिनार की शुरुआत करते हुए लॉ डिपार्टमेंट के एचओडी और डीन प्रो। जेएस सिंह ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 में लागू हुआ था। संविधान लागू होने के ठीक 16 महीने बाद 10 मई 1951 को भारतीय संसद में संविधान का प्रथम संशोधन अधिनियम संसद में प्रस्तुत हुआ। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं। जवाहर लाल नेहरू ने इस संसद के समक्ष विचार के लिए रखा। 18 जून 1951 को वो संसद से पास हुआ और राष्ट्रपति के हस्तक्षर के बार इसे लागू कर दिया गया।

देश के इतिहास में विवादास्पद बना संशोधन

वेबिनार में अपने विचार रखते हुए वक्ताओं ने कहा कि यहां पर यह ध्यान देने योग्य है कि संसद अंतरिम थी। लोकसभा और राज्य सभा जैसे दो सदन नहीं थे। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ। राजेन्द्र प्रसाद अंतरिम राष्ट्रपति थे। यह संविधान संशोधन भारत के इतिहास में एक विवादास्पद संशोधन है कि क्या अंतरिम संसद और अंतरिम राष्ट्रपति इस तरह का संविधान संशोधन कर सकते थे। यह संविधान संशोधन सुप्रीम कोर्ट और कुछ हाईकोर्ट के निर्णयों के परिपेक्ष में लागू किया गया था। 26 मई 1950 इस कड़ी में एक महत्वपूर्ण दिन था। सुप्रीम कोर्ट ने दो महत्वपूर्ण निर्णय दिया था। पहला निर्णय रमेश थापर बनाम मद्रास राज्य और दूसरा निर्णय बृज भूषण बनाम दिल्ली राज्य था। इन दोनों निर्णयों में संविधान के प्रावधानों की महत्वपूर्ण व्याख्या थी। इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण निर्णय था श्रीमती चम्पकम दोरई राजन बनाम मद्रास राज्य। यह निर्णय 9 अप्रैल 1951 को आया था। इसी परिपेक्ष में इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक महत्वपूर्ण निर्णय था। मोतीलाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य। वेबिनार के दौरान इस सभी मुद्दों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिर सुनीत कुमार विस्तार से प्रकाश डाला। इस दौरान अन्य वक्ताओं के साथ ही लॉ स्टूडेंट्स भी वेबिनार में जुड़े रहे।