प्रयागराज ब्यूरो । कवित्री सुचिता मिश्रा ने पढ़ा 'बहुत याद आता है गांव, वो चिडिय़ा की चूं-चूं वो कोयल की कूं-कंू, कौवों का वो कॉव -कॉव, बहुत याद आता है गॉवÓ ने खूब वाह-वाही लूटी। ओज कवि अमित आभास ने पुस्तक मेले के मंच से पढ़ा 'प्रीत की वो कहानी नहीं चाहिये, हीर लैला दीवानी नहीं चाहिये, राष्ट्र की आबरू जो बचाए नहीं, हमें ऐसी जवानी नहीं चाहियेÓ लोगों ने जमकर तालियॉ बजायी। कवयित्री नीलम त्रिपाठी ने कुछ यॅू फरमाया कि 'प्रीत ऐसी घनेरी हमारी रही, नित नयन में बसी छवि तुम्हारी रही, तुम गये क्या नदी नीर बिन हो गयी, जल बिना मीन की गति हमारी रहीÓ तो लोगों ने खूब दाद दिये।
कवि सम्मेलन के संयोजक व कवि संतोष शुक्ल 'समर्थÓ ने फरमाया कि 'किसके कांधे पे रोते नयन छोड दें, किस भरोसे पे टूटा यह मन छोड़ दें, तुमने जिद अपनी छोड़ी नहीं आज तक, हम भला कैसे अपनी लगन छोड़ दें, तो पुस्तक प्रेमियों की तालियों की गडग़ड़ाट से वहां बना सांस्कृतिक मंच भी झूम उठा। कवि व पत्रकार सिद्वार्थ अर्जुन ने पढ़ा कि 'चर्चा करिये विष बेलों की, अजी बुद्व की बात न करिये, कौरव के संरक्षक होकर, धर्मयुद्व की बात न करिये, को भी खूब सराहा गया। हास्य कवि धनंजय शाश्वत ने पढ़ा कि 'मुर्गा नोचे बिना जिनका बीतता न दिन, गौरैया बचाओ अभियान पर जोर दे रहे। गीतकार कमलेश पाण्डेय 'कमलÓ ने पढ़ा कि 'तुम ये कह दो तुम्हें प्यार था ही नहीं, फिर तुम्हारी गली में नहीं ऑऊगाÓ पढ़ा तो खूब तालियॉ बजी। कवि सम्मेलन के संयोजक संतोष शुक्ल 'समर्थÓ रहे। संचालन अशोक बेसर्म ने किया।
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