इंडियन टीम का कैप्टन बनना हर प्लेयर का सपना होता है। दानिश का भी यही सपना था। एचआईएल में उसके बेहतरीन प्रदर्शन से उसे यह मौका मिला है। एचआईएल के कारण ही दानिश इलाहाबाद से बाहर अपना मैच खेल रहा है। दानिश एचआईएल में दिल्ली की टीम दिल्ली वेब राइटर के साथ जुड़ा है। थर्सडे को दानिश की टीम का मैच यूपी विजार्ड से था। ऐसे में ज्यादातर चाहने वाले दानिश से डायरेक्ट कांटैक्ट नहीं कर सके तो उन्होंने घर वालों को बधाई दी। हॉकी से जुड़े प्लेयर्स, जूनियर प्लेयर्स और साथियों को इस बात की जानकारी थी कि फोन पर केवल सुबह और रात में ही बात हो सकती है। उन्होंने अर्ली मार्निंग से ही फोन पर बधाई देना शुरू कर दिया था.
इलाहाबाद का नाम किया रौशन
दानिश इलाहाबाद के कटघर मोहल्ले का रहने वाला है। दानिश मुतर्जा की फैमिली वर्षों से हॉकी से जुड़ी रही है। उसके नाना भी हॉकी के फेमस प्लेयर थे। उन्होंने हॉकी के भगवान कहे जाने वाले मेजर ध्यान चन्द्र के साथ हॉकी खेली थी। यही नहीं दानिश के मामा भी हॉकी से जुड़े थे। दानिश के दोनों बड़े भाई भी हॉकी से जुड़े रहे। भाई हमजा भी इंडियन टीम का हिस्सा रह चुका है.
पिता बोले, बड़ी उपलब्धि है
दानिश के इंडियन टीम का कैप्टन बनने पर पिता गुलाम मुतर्जा ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह एक बड़ी उपलब्धि है। दानिश ने वेडनसडे नाइट फोन पर इस बड़ी उपलब्धि की जानकार दी। उन्होंने दानिश को समझाया कि कैप्टन बनने से जिम्मेदारी बढ़ गई है। कोई भी मैच हम केवल टीम भावना से खेल कर ही जीत सकते हैं। कोई भी सीनियर या जूनियर प्लेयर अकेले कुछ नहीं कर सकता। जरूरी है कि टीम को एक साथ लेकर चलें। उधर, दानिश ने कहा कि उसने जो कुछ भी अपने सीनियर्स से सीखा है उसी को फालो करेगा। अजलान शाह टूनार्टमेंट 7 मार्च से मेलशिया में शुरू हो रहा है.
2009 में जुड़े थे भारतीय हॉकी टीम से
अटाला स्थित हमीदिया इस्लामिया कॉलेज ग्राउंड पर हाकी खेलने का गुर सीखने वाले दानिश को बचपन से ही इसका शौक था। नाना और मामा से मिली विरासत को आगे बढ़ाने का सपना देखने वाले दानिश ने अपना सब कुछ सिर्फ हाकी को समर्पित कर दिया। उनकी लगतार मेहनत का ही नतीजा था कि उन्हें भारतीय हॉकी टीम में 2009 में स्थान मिला। इसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और टीम में बने रहे। सिर्फ चार सालों में उन्होंने अपनी पोजीशन इतनी मजबूत कर ली कि चयनकर्ताओं ने उन्हीं के कंधों पर देश के टीम की कमान डाल दी.
piyush.kumar@inext.co.in
Friends ने फोन पर दी बधाई
इंडियन टीम का कैप्टन बनना हर प्लेयर का सपना होता है। दानिश का भी यही सपना था। एचआईएल में उसके बेहतरीन प्रदर्शन से उसे यह मौका मिला है। एचआईएल के कारण ही दानिश इलाहाबाद से बाहर अपना मैच खेल रहा है। दानिश एचआईएल में दिल्ली की टीम दिल्ली वेब राइटर के साथ जुड़ा है। थर्सडे को दानिश की टीम का मैच यूपी विजार्ड से था। ऐसे में ज्यादातर चाहने वाले दानिश से डायरेक्ट कांटैक्ट नहीं कर सके तो उन्होंने घर वालों को बधाई दी। हॉकी से जुड़े प्लेयर्स, जूनियर प्लेयर्स और साथियों को इस बात की जानकारी थी कि फोन पर केवल सुबह और रात में ही बात हो सकती है। उन्होंने अर्ली मार्निंग से ही फोन पर बधाई देना शुरू कर दिया था.
इलाहाबाद का नाम किया रौशन
दानिश इलाहाबाद के कटघर मोहल्ले का रहने वाला है। दानिश मुतर्जा की फैमिली वर्षों से हॉकी से जुड़ी रही है। उसके नाना भी हॉकी के फेमस प्लेयर थे। उन्होंने हॉकी के भगवान कहे जाने वाले मेजर ध्यान चन्द्र के साथ हॉकी खेली थी। यही नहीं दानिश के मामा भी हॉकी से जुड़े थे। दानिश के दोनों बड़े भाई भी हॉकी से जुड़े रहे। भाई हमजा भी इंडियन टीम का हिस्सा रह चुका है.
दानिश के इंडियन टीम का कैप्टन बनने पर पिता गुलाम मुतर्जा ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह एक बड़ी उपलब्धि है। दानिश ने वेडनसडे नाइट फोन पर इस बड़ी उपलब्धि की जानकार दी। उन्होंने दानिश को समझाया कि कैप्टन बनने से जिम्मेदारी बढ़ गई है। कोई भी मैच हम केवल टीम भावना से खेल कर ही जीत सकते हैं। कोई भी सीनियर या जूनियर प्लेयर अकेले कुछ नहीं कर सकता। जरूरी है कि टीम को एक साथ लेकर चलें। उधर, दानिश ने कहा कि उसने जो कुछ भी अपने सीनियर्स से सीखा है उसी को फालो करेगा। अजलान शाह टूनार्टमेंट 7 मार्च से मेलशिया में शुरू हो रहा है.
2009 में जुड़े थे भारतीय हॉकी टीम से
अटाला स्थित हमीदिया इस्लामिया कॉलेज ग्राउंड पर हाकी खेलने का गुर सीखने वाले दानिश को बचपन से ही इसका शौक था। नाना और मामा से मिली विरासत को आगे बढ़ाने का सपना देखने वाले दानिश ने अपना सब कुछ सिर्फ हाकी को समर्पित कर दिया। उनकी लगतार मेहनत का ही नतीजा था कि उन्हें भारतीय हॉकी टीम में 2009 में स्थान मिला। इसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और टीम में बने रहे। सिर्फ चार सालों में उन्होंने अपनी पोजीशन इतनी मजबूत कर ली कि चयनकर्ताओं ने उन्हीं के कंधों पर देश के टीम की कमान डाल दी।
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