प्रयागराज ब्यूरो । गंगा प्रदूषण के दावे और एनजीटी को नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा द्वारा दी गई रिपोर्ट में भी अंतर
81
नालों का गंगा यमुना में गिरता है पानी
37
नालों को एसटीपी से टैप करने का है दावा
44
नालों का सीधे अब भी गिर रहा है पानी
10
एसटीपी के पूर्ण संचालन का है दावा
340
एमएलडी सीवर वाटर ट्रीट की है क्षमता
475
एमएलडी सीवर वाटर उत्सर्जन का दावा
135
एमएलडी पानी बगैर ट्रीट नदियों में जा रहा
500
एमएलडी उत्सर्जन रिपार्ट दी एनजीटी को
160
एमएलडी पानी रिपोर्ट के अनुसार जा रहा नदियों में

गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त व स्वच्छ बनाने में आंकड़ों का
'खेलÓ यहां लोकल स्तर पर लंबे समय से चल रहा है। सच्चाई यह है कि गंगा प्रदूषण के लोग आंकड़ों में हेराफेरी कर रहे हैं। इस खेल को समझने के लिए नेशनल
मिशन फॉर क्लीन गंगा की तरफ से एनजीटी को दी गई रिपोर्ट और लोकल स्तर पर पूछे जाने पर बाए गए सीवर वाटर उत्सर्जन के आंकड़ों में बड़ा अंतर दिखाई देता है। अब सवाल यह उठता है कि किस आंकड़े पर भरोसा किया जाय? फोन पर पूछने पर बताया गया डाटा सही है या फिर एनजीटी को दी गई रिपोर्ट के आंकड़े। खैर, दोनों ही स्थितियां नदियों की स्वच्छता व सेहत के लिहाज से ठीक नहीं हैं। मतलब यह कि गंगा और यमुना की सफाई को लेकर किसी को सही जानकारी विभाग द्वारा दी ही नहीं जा रही है। शायद यही कारण है जिसके चलते एनजीटी को डीएम पर बीस हजार रुपये हर्जाना लगाना पड़ा। यह बात गंभीर इसलिए भी है क्योंकि अगले वर्ष 2025 में लगने वाले महाकुंभ में इन्हीं नदियों में लाखों करोड़ों भक्त आस्था की डुबकी लगाने के लिए विदेश तक से आएंगे।

ऐसे ही नहीं खफा हुआ एनजीटी
वर्ष 2025 में यहां संगम की रेत पर सबसे बड़े धार्मिक मेला महाकुंभ का आयोजन होगा। इसकी तैयारी जोरों पर चल रही है। गंगा प्रदूषण की द्वारा बताए गए आंकड़ों पर गौर करें तो 81 नाले ऐसे हैं जो गंगा और यमुना से मिलते हैं। इन नालों से उत्सर्जित गंदा पानी सीधे दोनों नदियों में गिर रहा था। कहना है कि इन नालों से उत्सर्जित 475 एमएलडी पानी नदियों में गिर रहा था। इससे नदियां प्रदूषित हो रही थीं। नदियों को प्रदूषण मुक्त व जल को स्वच्छ बनाने के लिए 10 एसटीपी का निर्माण कराया गया है। इस एसटीपी से नदियों में गिर रहे 37 नालों को टैप करके 340 एमएलडी पानी को ट्रीट करके नदियों में छोड़ा जा रहा है। यदि गंगा प्रदूषण के इस दावे को सच मान लिया जाय तो करीब 44 नालों उत्सर्जित लगभग 135 एमएलडी पानी नदियों में सीधे बगैर ट्रीट किए छोड़ा जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ एनजीटी की कार्रवाई के बाद जो आंकड़े सामने आए हैं वह थोड़े अलग हैं। बताए जा रहे रिपोर्ट के आंकड़ों पर गौर करें तो नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा द्वारा एनजीटी को दी गई रिपोर्ट में 500 एमएलडी सीवर उत्सर्जन बताया गया है। जबकि सीवर से उत्सर्जित ट्रीट वाटर की मात्रा 340 एमएलडी ही बताई गई। ऐसे में इन आंकड़ों पर जाएं तो 160 एमएलडी सीवर उत्सर्जित वाटर गंगा में जा रहा है। सवाल यह उठता है कि ऐसे में गंगा प्रदूषण के किन आंकड़ों को सच माना जाय। बहरहाल, दोनों ही स्थिति में यह कहना गलत नहीं होगा कि गंगा और यमुना का जल प्रदूषण मुक्त नहीं है। नालों का पानी कल भी नदियों में जा रहा था और आज भी करोड़ों रुपये की लागत से एसटीपी का निर्माण होने के बाद भी जा ही रहा है। ऐसे में गंभीर चिंता का विषय यह है कि आखिर महाकुंभ में श्रद्धालु इस पानी में स्नान कैसे करेंगे।


क्षमता 340 तो 379 एमएलडी ट्रीट कैसे?
गंगा प्रदूषण का दावा है कि सभी दस एसटीपी की क्षमता 340 एमएलडी सीवर उत्सवर्जन जल को ट्रीट करने का है। बावजूद इसके 379 एमएलडी सीवर वाटर ट्रीट करने का दावा किया जा रहा है। मतलब यह कि क्षमता से 39 एमएलडी अधिक सीवर उत्सर्जित वाटर को ट्रीट किया जा रहा है। प्रश्न यह उठता है कि जिस टैंक की क्षमता कम है उसमें उससे ज्यादा पानी कैसे भरा जा सकता है। ऐसी स्थिति में दो ही बातें हो सकती हैं या तो ट्रीट करने का दावा गलत है, या फिर बगैर ट्रीट किए ही 39 एमएलडी सीवर का पानी छोड़ दिया जा रहा है।