प्रयागराज (ब्यूरो)। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि एक सरकारी कर्मचारी को 30 वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद सीसीएस रूल्स के अंतर्गत स्वैच्च्छक सेवानिवृत्ति लेने का अधिकार प्राप्त है, बशर्ते वह निलंबित न हुआ हो। कोर्ट ने बस्ती जिले में डाकघर अधीक्षक डा। शिवपूजन आर। ङ्क्षसह के स्वैच्च्छक सेवानिवृत्ति के अधिकार को बरकरार रखते हुए कैट के आदेश को सही ठहराया है। चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस विकास बुधवार बेंच ने कैट के फैसले के खिलाफ भारत संघ की याचिका खारिज कर दी है।
सेवा पूरी करना था मुद्दा
प्राथमिक कानूनी मुद्दा यह था कि क्या डा। शिवपूजन को 30 वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन नियम), 1972 के नियम 48 के तहत स्वच्च्छिक सेवानिवृत्ति का अधिकार प्राप्त था, और क्या भारत संघ अथवा केंद्र सरकार द्वारा उनके अनुरोध को अस्वीकार करना उचित था। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने डा। ङ्क्षसह के स्वच्च्छिक सेवानिवृत्ति अनुरोध को अस्वीकार करने के केंद्र सरकार के 31 मार्च, 2014 और छह मई, 2014 के आदेशों को रद कर दिया गया था। उसे चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा, नियम 48 सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारी को दो शर्तों के अधीन स्वच्च्छिक सेवानिवृत्ति का दावा करने का अधिकार देता है। पहला 30 साल की सेवा संतोषजनक ढंग से पूरी करना और दूसरा यह कि कर्मचारी का निलंबन के अधीन न होना।
दो प्रावधानों में स्पष्ट अंतर
कहा कि नियोक्ता का विवेकाधिकार नियम 48 ए (जो 20 वर्ष की सेवा से संबंधित है) के तहत उसे विवेकाधिकार है, लेकिन नियम 48 के तहत सेवानिवृत्ति के प्रभावी होने के लिए नियोक्ता की स्वीकृति जरूरी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि, दोनों प्रावधानों के बीच एक स्पष्ट अंतर है। कोर्ट ने पाया कि डा। ङ्क्षसह के खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही स्च्ैच्छिक सेवानिवृत्ति की उनकी प्रभावी तिथि के बाद की गई थी, जो उनके सेवानिवृत्ति अनुरोध के लिए अप्रासंगिक है। कोर्ट ने कहा, विभागीय आरोप पत्र स्च्ैच्छिक सेवानिवृत्ति की प्रभावी तिथि के बहुत बाद 10 अक्टूबर 2013 को जारी किया गया है जो अप्रासंगिक है।