प्रयागराज (ब्यूरो)। वक्त बदल चुका है। स्पेशली कोरोना काल के बाद की परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं। कोरोना काल में बच्चों को मोबाइल की लत लगी। तब क्लास अटेंड करने का जरिया भी गैजेट्स ही थे। अब सिचुएशन नार्मल हो चुकी है तो न स्कूल बच्चों को मोबाइल एलाऊ कर रहे हैं और न ही पैरेंट। आज के दौर में चैट जीपीटी से लेकर सोशल मीडिया पर बच्चे एक्टिव हैं। इससे बच्चों का मेंटल स्टेटस अलग लेवल पर पहुंच चुका है। फिजिकल एक्टिविटीज में इनवाल्वमेंट पैरेंट्स का एक्स्ट्रा केयर के चलते कमजोर है। बच्चों को पैरेंट्स अकेले छोडऩा नहीं चाहते जबकि बच्चे 'आजादÓ जिंदगी में भरोसा करते हैं। अपने टैलेंट के दम पर मुकाम बनाना चाहते हैं। इन स्थितियों ने घर घर में अंडर स्टैंडिंग का चैलेंज क्रिएट कर दिया है। नेशनल पैरेंटिंग डे के मौके पर दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने पैरेंट्स के बीच सर्वे कराया और बातचीत की तो तमाम इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स सामने आये।
बच्चों की सुनना है जरूरी
सिंगल दो बच्चों को हैंडिल कर रहे रवि सिनहा कहते हैं कि हम सब कुछ अपने दौर के हिसाब से कम्पेयर करने की कोशिश करते हैं। अपने बच्चे को अपने दौर जैसा ही देखने की कोशिश करते हैं। गलती की शुरुआत यहीं से हो जाती है। हमारे दौर में न तो इकोनॉमिक कंडीशन ऐसी थी और न ही फेसेलिटीज। गैजेट्स और इंटरनेट की इंट्री भी हमारी लाइफ में काफी देर से हुई। आज के दौर में बच्चे गैजेट्स से बहुत कुछ सीखकर अपने टैलेंट के दम पर आगे बढ़ रहे हैं। इस स्थिति में हमें अपने बच्चों की सुनना ही होगा। इससे इतर उन पर प्रेशर बनाने की कोशिश करेंगे तो खुद इरीटेट हो जाएंगे।
फैमिली सर्किल में है साल्यूशन
प्रोफेशनल कोमल केसरवानी कहती हैं कि मैं सिंगल मदर हूं। बच्ची के साथ बेहद फ्रेंडली हूं। मुझे लगता है कि चैलेंजेज को हैंडिंग करना तब ज्यादा आसान है जब आप फैमिली सर्किल में होते हैं। मेरी बेटी मेरे से तो क्लोज है ही लेकिन वह किसी मुश्किल में सबसे पहले अपने मामा को याद करती है। उनके साथ वह ज्यादा फ्रेंडली है। दोस्त की तरह अपनी बातें शेयर करती है। इतना ही कनेक्ट वह अपने नाना नानी और मामी से भी करती है। मुझे दिक्कत तभी होती है जब मुझे प्रोफेशनल टूर करना होता है और वह साथ जाने को बोलती है। अब वह भी समझने लगी है कि इसकी दिक्कते क्या हैं। मेरी ज्यादा से ज्यादा कोशिश है कि बच्चे की बातों को फॉलो करूं। मेरी उससे अपेक्षा भी सिर्फ स्टडी की है और अच्छे माक्र्स की है। इसका यह मतलब कतई नहीं है कि वह क्लास में टॉप करे। इससे हम दोनो के बीच की केमेस्ट्री अच्छी है।
ये सवाल पूछे गये थे
बच्चा किस चीज की डिमांड सबसे ज्यादा करता है खाने में?
चॉकलेट/मिठाई
पिज्जा/बर्गर
फल/सब्जियाँ
चिप्स/नमकीन
अन्य (कृपया बताएं)
टिफिन में वह क्या ले जाना सबसे ज्यादा पसंद करता है
पराठा
सैंडविच
मैगी/नूडल्स
फ्र ट्स
अन्य (कृपया बताएं)
उसका सोशल सर्किल किस तरह का है?
ज्यादातर दोस्त स्कूल के
ज्यादातर दोस्त पड़ोस के
ज्यादातर दोस्त सोशल मीडिया पर
अन्य (कृपया बताएं)
फ्र ंडस घर पर भी आते हैं या फिर सोशल मीडिया पर ही कनेक्ट होते हैं
दोनों स्थानों पर कनेक्ट होते हैं
सर्फ घर पर आते हैं
सिर्फ सोशल मीडिया पर कनेक्ट होते हैं
अन्य (कृपया बताएं)
गैजेटस पर कितना टाइम स्पेंड करते हैं बच्चे
1 घंटे से कम
1-2 घंटे
2-3 घंटे
3 घंटे से ज्यादा
किसी तरह का कांटेंट देख रहे हैं वे आनलाइन इसे आप वॉच करते हैं?
एजुकेशनल वीडियो/कंटेंट
कार्टून्स/एनिमेशन
गेम्स/ओटीटी
सोशल मीडिया (इंस्टाग्राम, फेसबुक, आदि)
अन्य (कृपया बताएं)
किस बात पर वे सबसे ज्यादा जिद करते हैं?
खिलौनों के लिए
बाहर जाने के लिए
टीवी या मोबाइल देखने के लिए
खाने के लिए
अन्य (कृपया बताएं)
आउटिंग पर जाने पर उनकी प्रायोरिटीज क्या होती हैं
मनोरंजन पार्क
मूवी थियेटर
रेस्टोरेंट
शॉपिंग मॉल
अन्य (कृपया बताएं)
पेरेंट और बच्चों की सोच में बड़ा गैप है। आज का पेरेंट अपने बचपन की तरह बच्चों को हैंडल करने का प्रयास कर रहा है। जबकि समय बहुत बदल चुका है। जनरेशन गैप और टेक्नोलॉजिकल चेंज के कारण बच्चे, पैरंट्स की बातों को प्रेशर के रूप में ले रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि बच्चे झूठ बोलना शुरू कर दे रहे हैं या सही बात पैरंट्स को नहीं बता रहे हैं। यहीं से भविष्य के खतरे के संकेत मिल जाते हैं। बच्चा बड़ा हो छोटा अब पेरेंट्स को फ्रेंड की तरह विहैब करना होगा और उन्हें ऐसा माहौल देना होगा कि वह अपनी हर बात शेयर करे।
रवि सिनहा
अनाप शनाप खाने की डिमांड करना, मोबाईल में ज्यादा टाईम देना, स्कूल ट्यूशन एवं अन्य एक्टिविटीस में आने जाने में टाईम मैनेजमेंट की दिक्कत बच्चे झेल रहे हैं। पढ़ाई का लोड भी बच्चे ज्यादा लेते हैं। स्कूल का भारी बैग, अच्छे ट्यूटर या कोचिंग का चयन करना भी बहुत मुश्किल होता है। इन सब के बीच पैरेंट्स को अपना काम और ध्यान देने में भी दिक्कत आती है।
अनिल श्रीवास्तव
मैं एक वर्किंग वुमन हूं तो बचा हुआ टाइम मैं उसके साथ स्पेंड करने को प्रायॉरिटी रखती हूं। अभी वह किसी चीज की जिद नहीं करती। उसकी नाना, नानी और मामा-मामी भी फ्र ंडली रहते हैं तो वह उनसे ज्यादा कनेक्ट रहती है। फैमिली सर्किल में ही काफी बच्चे हैं तो वह उनसे भी बात करती रहती है। मुझे लगता है कि ऐसा एटमॉफियर हर बच्चे के सराउंड उपलब्ध हो तो पैरेंटिंग ज्यादा चैलेंजिंग नहीं है।
कोमल केसरवानी
वर्तमान समय में पैरेंटिंग कई चुनौतियों का सामना कर रही है। डिजिटल युग में बच्चों को स्क्रीन टाइम और वास्तविक जीवन के अनुभवों के बीच संतुलन सिखाना महत्वपूर्ण है। सामाजिक मीडिया के प्रभाव, शैक्षणिक दबाव और बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी प्रमुख चिंताएं हैं। माता-पिता को संवाद, सहानुभूति और मार्गदर्शन के माध्यम से बच्चों की सहायता करनी चाहिए। परिवार के साथ समय बिताना और सकारात्मक मूल्य सिखाना बच्चों के समग्र विकास के लिए आवश्यक है।
मोना गुप्ता
आज के समय में पैरेंटिंग का मतलब सिर्फ बच्चों की देखभाल नहीं रह गया है। उनके मानसिक और भावनात्मक विकास पर भी ध्यान देना जरूरी है। डिजिटल युग में बच्चों को सही दिशा में मार्गदर्शन करना चुनौतीपूर्ण है। माता-पिता को बच्चों के साथ संवाद बढ़ाना होगा। उन्हें स्वतंत्रता और जिम्मेदारी का बैलेंस बनाना सिखाना चैलेंज है। प्यार और अनुशासन के साथ बच्चों को सिक्योर और पॉजिटिव एटमास्फियर की जरूरत है।
शुभ्रा रस्तोगी
एक पैरेंट होना ही बड़ा चैलेंज है। अगर आप बच्चे को अच्दी शिक्षा, अनुशासन और संस्कार देते हैं, उन्हें दोस्तों से बातें करने की फ्रीडम देते हैं, खुद को एक दोस्त के रूप में प्रजेंट करते हैं तो वह भी आपको समझने की कोशिश करते हैं। इस स्थिति में वह अपनी गलतियां भी समझेंगे और आपसे शेयर करेंगे। इससे पैरेंटिंग का चैलेंज हैंडिल किया जा सकता है।
मोहिता गुप्ता