बगैर किट व कवर्ड के बॉडी को एंबुलेंस का शीशा खोलकर घाट ले जा रहे चालक
खुद के साथ दूसरों की भी जान डाल रहे हैं खतरे में,रास्ते भर पब्लिक के लिए भी फैला रहे संक्रमण का डर
PRAYAGRAJ: कोरोना से दम तोड़ने वालों की बॉडी घाट तक ले जा रहे एम्बुलेंस चालक असुरक्षित हैं। वह न तो किट पहन रहे और न ही बॉडी कवर करके भेजी जा रही। एम्बुलेंस के शीशे खोल कर तमाम चालक बॉडी लेकर फाफामऊ घाट तक पहुंच रहे हैं। ऐसी स्थिति में संक्रमण का खतरा चालक मोल ले रहे हैं। जिम्मेदार भी इन चालकों की सुरक्षा को लेकर कोई कदम नहीं उठा रहे। एम्बुलेंस के शीशे खुले होने से रास्ते में पास से गुजरने वालों में भी संक्रमण का खतरा कम नहीं है। फिर भी जबरदस्त लापरवाही बरती जा रही है।
जिम्मेदार नहीं दे रहे हैं ध्यान
क्या अधिकारी, क्या कर्मचारी, यहां तक की पब्लिक को भी कोरोना के संक्रमण से अच्छी वाकिफ है। इन सब के बावजूद पब्लिक ही नहीं कर्मचारी भी लापरवाही बरत रहे हैं। कोरोना की जद में आए तमाम लोगों की रोज मौतें हो रही हैं। इनके शव को लेकर तमाम एम्बुलेंस चालक रोज फाफामऊ घाट पहुंच रहे हैं। एम्बुलेंस के चालकों द्वारा खुद की सुरक्षा पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा। वह बगैर किट पहने सिर्फ एक मास्क लगाकर बॉडी घाट तक पहुंचा रहे हैं। कोरोना पीडि़तों की खुली हुई बॉडी एम्बुलेंस में होने से चालकों में संक्रमण का खतरा बना रहता है। क्योंकि यह बॉडी चालक की सीट के ठीक पीछे ही एम्बुलेंस में रखी होती है। इतना ही नहीं चालक एम्बुलेंस में बॉडी रखकर बाकायदे शीशे खोल कर बॉडी घाट पर पहुंचा रहे हैं। शीशा खुला होने से खतरा इस बात का है कि एम्बुलेंस के खुले हुए शीशे के पास से गुजरने वाले लोग भी संक्रमित हो सकते हैं। यही वजह है कि सरकार ने सोशल डिस्टेंस की दूरी का मानक तय कर रखा है। सब कुछ जानते हुए भी एम्बुलेंस चालकों द्वारा यह लापरवाही कोरोना के संक्रमण के बड़े खतरे की आशंका को बल दे रही है।
परिवार की भी इन्हें नहीं है चिंता
एंबुलेंस चालक शवों को घाट तक पहुंचाने के बाद शाम तक घर भी आते हैं।
इनकी वजह से खतरे की सबसे ज्यादा आशंका इनके परिवार पर बढ़ जाती है। चालक अपने परिवार वालों की भी फिक्र नहीं कर रहे हैं। यदि घर में संक्रमण लेकर पहुंचे चालकों के शरीर से यह वायरस परिवार के बच्चों व बुजुर्गो में पहुंचा तो क्या होगा ? चालक तनिक भी नहीं सोच रहे हैं।
क्या हैं सतर्कता के नियम कानून
स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोग कहते हैं बॉडी को कवर करने के लिए पूरी किट आती है
जिसमें मृतक की बॉडी को रखकर चेन बंद कर दिया जाता है, चेन के बंद करते ही पूरी बॉडी कवर्ड हो जाती है
पीपीई किट उनके लिए है जो कोरोना ड्यूटी कर रहे हैं फिर वह हॉस्पिटल के वार्ड हों या एंबुलेंस के चालक
जिस एम्बुलेंस से कोरोना की बॉडी या मरीज आए और ले जाए जाते हैं उसके शीशे बंद होने चाहिए
बॉडी को घाट पर या मरीज को हॉस्पिटल पहुंचाने के बाद एम्बुलेंस का सेनेटाइजेशन भी किया जाना चाहिए
घंटों घाट पर पड़ी रही कई बॉडी
फाफामऊ घाट पर सोमवार को कोरोना से मरने वालों की करीब दर्जन भर बॉडी सुबह कई घंटे यूं ही रखी रही। इसकी वजह लोग बताते हैं कि जो शख्स लकड़ी देता था वह सार्टेज बता कर लकड़ी ही नहीं दे रहा था। दूसरे टॉल की लकड़ी से बॉडी जला रहे लोग अंतिम संस्कार करने को राजी नहीं थे। बताते हैं कि घंटों बाद बात अफसरों तक पहुंची तो वह उस लकड़ी विक्रेता को फटकार लगाते हुए लकड़ी दिलवाए। इसके बाद सभी की बॉडी का अंतिम संस्कार शुरू हुआ।
बॉडी जलाने वालों से खा रहे कमीशन
फाफामऊ कोरोना घाट पर चार पांच लड़के हैं जो बॉडी जलाने का काम कर रहे हैं। सोमवार को इनमें से एक युवक का वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में उसके जरिए लकड़ी देने वाले शख्स के कमीशन खोरी की पोल खोल रहा। वीडियो में युवक कह रहा कि बॉडी को घाट पर जलाने का काम वही करता। उसके नाम से लकड़ी देने वाला एक शख्स जलाने के नाम पर एक हजार रुपये मृतकों के परिजनों से वसूलता है। मगर वह तीन सौ रुपये जबरदस्ती काटकर महज 700 रुपये उन युवकों को देता है जो बॉडी को जला रहे हैं।