प्रयागराज ब्यूरो । राजू पाल हत्याकांड के बाद उमेश पाल इकलौते ऐसे सदस्य थे जो न माफिया अतीक के लम्बे चौड़े लाव लश्कर से डरे और न ही लगातार मिलने वाली धमकियों से। उन्होंने 2016 में ही आशंका जता दी थी कि उनकी हत्या कर दिया जाना तय है। उन्होंने कोर्ट में यह बातें कोट करते हुए गुहार लगाई थी कि मुकदमे का फैसला जल्द किया जाय।

मोहल्लावासी होने से हुई यारी

तत्कालीन विधायक राजू पाल हत्याकांड के बाद उमेश पाल का नाम भी बड़ा हो गया था। दोनो सुलेम सराय एरिया के ही रहने वाले थे। उस दौर में अतीक एंड कंपनी की तूती बोलती थी। अतीक अहमद फूलपुर सीट से सांसद का चुनाव लड़े और जीत गये तो शहर पश्चिमी विधानसभा सीट खाली हो गयी। इससे पहले राजू पाल का परिचय अतीक अहमद से था। इसके बाद भी उन्होंने अतीक के खिलाफ ताल ठोंक दिया था। अतीक को सीधे चुनौती देने का उनका अंदाज लोगों को भा गया। इसी के बूते उन्होंने अतीक के भाई अशरफ को चुनाव में मात दे दी और विधायक बन गये। चुनाव में उमेश ने राजू पाल का खुलकर और हर कदम पर साथ दिया था। इससे दोनों का याराना और मजबूत हो गया था।

शादी के नौ दिन बाद ही मार दिये गये थे राजू पाल

राजू पाल के सितारे बुलंद हुए तो उमेश पाल ने दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने का फैसला लिया। चुनाव जीतने के बाद उमेश पाल ने अपनी मामा की लड़की पूजा पाल से शादी का प्रस्ताव राजू पाल के सामने रखा तो वे मना नहीं कर सके। शादी भी धूमधाम से हुई। संयोग ही था कि यह रिश्ता ज्यादा दिन तक टिका नहीं। शादी के ठीक नौ दिन बाद राजू पाल को मौत के घाट उतार दिया गया। ममेरी बहन को विधवा के रूप में देखना उमेश पाल को शायद हमेशा राजू पाल की याद दिलाता रहा। शायद यही कारण था कि उमेश पाल ने तमाम झंझावातों को झेलने के बाद भी राजू पाल केस की पैरवी नहीं छोड़ी। वह हमेशा पूजा पाल के साथ नजर आये। अलग बात है कि यही दोस्ती और रिश्तेदारी को सच्चे दिल से निभाना उनके लिए काल बन गया और शुक्रवार की शाम उन्हें लगभग उसी अंदाज में मौत के घाट उतार दिया गया जिस अंदाज में राजू पाल की हत्या की गयी थी।

परिवार के लोग सन्नाटे में

इस घटना से उमेश पाल का पूरा परिवार सन्नाटे में है। उनकी पत्नी सदमे के चलते कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थीं। परिवार के दूसरे सदस्य भी शाक्ड थे। उमेश के दोस्तों की टोली भी इस घटना से हतप्रभ थी। उमेश अपने समाज के लोगों में भी काफी लोकप्रिय थे। उमेश को गोली मारे जाने की सूचना फैली तो सैकड़ों लोग उनके घर पर जमा हो गये। एसआरएन अस्पताल पहुंचने वाले भी सैकड़ों की संख्या में थे। अंतिम दम तक साथ देने वाले उमेश की मौत नहीं चाहते थे। शायद यही वजह थी कि जब उन्होंने खुद ही उमेश को स्ट्रेचर पर लिटाया और दौड़ते हुए लेकर कर अस्पताल के भीतर पहुंचे। इलाज शुरू होने में जरा सी देर हुई तो वे एसआरएन के स्टॉफ मेम्बर्स से उलझ गये। हाथा पायी तक कर ली।