प्रयागराज ब्यूरो । प्रयागराज- एक तो बारिश साल दर साल कम हो रही है, दूसरे भूगर्भ जल का जबरदस्त दोहन हो रहा है। इसका असर यह हुआ कि प्रयागराज शहर ओवर एक्सप्लाइटेड यानी अति दोहित श्रेणी में आ गया। ऐसे में भूगर्भ जल को बचाने और संचित करने के लिए सिस्टम क्या तरीके अपना रहा है। क्या है उनकी भविष्य की प्लानिंग। यह जानने के लिए हमने गुरुवार को भूगर्भ जल विभाग के हाइड्रोलाजिस्ट रविशंकर पटेल से बात की। उन्होंने कहा कि नियमों का पालन हो तो भविष्य में होने वाली पानी की कमी की समस्या को दूर किया जा सकता है। अपनी कैंपेन को लेकर हमने उनसे सवाल किए और उन्होंने जवाब भी दिए-

सवाल- कामर्शियल और डोमेस्टिक बोरिंग को लेकर क्या नियम है और इनका कितना पालन हो रहा है?

सवाल- सरकार ने भूगर्भ जल अधिनियम 2019 के तहत नियम बनाए हैं। जिसमें कहा गया है कि कामर्शियल और इंडस्ट्रियल बोरिंग अब नहीं होगी। जो पुरानी बोरिंग है, उसका रिनूवल भूगर्भ जल प्रबंधन परिषद के अध्यक्ष डीएम के आदेश पर किया जाएगा। इतना ही नहीं, डोमेस्टिक और एग्रीकल्चर परपज के लिए होने वाली बोरिंग के लिए भूगर्भ जल विभाग से एनओसी लेना होगा। हालांकि इसके लिए कोई कास्ट नहीं लगती है। अभी तक पुरानी बोरिंग में से तीस में फ्लो और फिजोमीटर लगवाए जा चुके हैं। जबकि 90 लोगों को नियमों का पालन करने के लिए नियमानुसार एक साल का समय दिया गया है। इसके बाद भी मीटर नही लगवाने और एनओसी नही लेने पर 7 से 10 लाख का जुर्माना लगवा दिया जाएगा।

सवाल- एसटीपी से निकलने वाले ट्रीट वाटर को अंडर ग्राउंड रिचार्ज किया जा सकता है? इसकी क्या विधि है?

जवाब- हमारे शहर में 9 एसटीपी लगी हैं और इनमें से रोजाना &00 से अधिक एमएलडी पानी निकलता है। इस पानी को गंगा में बहा दिया जाता है। जबकि झारखंड में एसटीपी से निकलने वाले पानी का पीने के बजाय प्लांटेशन और वाशरूम में यूज किया जाता है। लोग इस पानी से स्नान भी करते हैं। इससे भूगर्भ जल का इस्तेमाल कम होता है। हम भी चाहें तो एसटीपी से ट्रीट हुए पानी का इस्तेमाल कर सकते हैं या इसे रिचार्ज भी किया जा सकता है। अगर तालाब के जरिए इस पानी को रिचार्ज करेंगे तो इसमें शामिल क्लोरीन की मात्रा में अंडर ग्राउंड वाटर लेवल में जाने से पहले छन जाएगी। लेकिन सोख पिट के जरिए इसे रिचार्ज करेंगे तो भूगर्भ जल के केमिकल के जरिए दूषित होने के चांसेज रहेंगे। तालाब के जरिए वाटर रिचार्ज करने में समय अधिक लगेगा लेकिन यह सेफ होगा।

सवाल- जनपद में शहर और ब्लॉक का

भूगर्भ जल स्टेटस के मामले में क्या स्थान है? भविष्य में क्या स्थिति हो सकती है?

जवाब- स्थिति अ'छी नहीं है। शहर को अति दोहित श्रेणी में रखा गया है। हर साल पाताल का पानी नीचे खिसक रहा है। अगर लोगों ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग को फालो नहीं

किया या पानी के ओवर यूज पर लगाम नहीं लगाई तो कुछ साल बाद कई एरिया में पानी ही नहीं मिलेगा। ऐसे में सरकार को पानी की राशनिंग करनी पड़ सकती है। इसलिए अभी से लोगों को जागना होगा। इसी तरह सहसों और चाका ब्लॉक भी इसी श्रेणी में हैं। यहां की स्थिति क्रिटिकल है। बारिश के पानी को सहेजना समय की मांग है।

सवाल- तकनीकी रूप से कैसे पानी की बर्बादी को रोका जा सकता है? इसके लिए सरकार क्या कदम उठा रही है?

जवाब- सरकार का कहना है कि इंडस्ट्री, कामर्शियल और बल्क वाटर यूज करने वाले के यहां फ्लो मीटर और फिजोमीटर लगाया जाना जरूरी है। इससे यह निश्चित हा जाएगा कि कहा और कितना भूगर्भ जल शहर में यूज हो रहा है। इसके बाद फिर आगे की प्लानिंग की जा सकती है। इसके लिए लोगों को नोटिस भेजा जा रहा है। उनको फ्लो मीटर लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

सवाल- रेन वाटर हार्वेस्टिंग लगाने की दिशा में कितनी प्रगति हुई है?

जवाब- हमारा काम जनता को जागरुक करने का है। सरकारी सेक्टर में लघु सिचाई विभाग और मनरेगा को रेन वाटर हार्वेस्टिंग लगाने की जिम्मेदारी दी गई है। प्राइवेट सेक्टर में भवनों का नक्शा तभी पीडीए पास करता है जब उसमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग का जिक्र होता है। हम अपनी ओर से भूगर्भ जल बचाने के लिए प्रति लोगों को जागरुक कर रहे हैं।