प्रयागराज (ब्यूरो)।एक बाप की बूढ़ी आंखों ने अपने बेटे के हाथों कुनबे का कत्ल होते देखा। क्या गुजरी होगी बाप पर ये सोचकर लोगों के रोंगटे खड़े जा रहे थे। जिस कुनबे को पालने पोसने में एक बाप ने अपनी पूरी जवानी लगा दी, उसी बाप ने अपने बनाए घर में पत्नी और बेटी की लाश देखी। बड़ी बात तो ये कि कादिर अपनी पत्नी को आखिरी विदाई में जनाजे को कंधा भी न दे पाए। करेली गौस नगर में बुधवार को बवाल देखने वालों की भीड़ थी तो गुरुवार को मातमपुर्सी करने वालों की। पोस्टमार्टम के बाद मां और बहन की बॉडी गौसनगर पहुंची तो नात रिश्तेदारों की आंखें नम हो गईं। सबकी जुबान पर बस यही एक बात रही कि थोड़ी सी जिद में पूरा कुनबा बिखर गया। वरना कमी तो कोई नहीं थी।
पत्नी के नाम बनाया दो मकान
करछना के कपथुआ गांव के रहने वाले मो.कादिर लेखपाल बने तो बहुत दिनों तक परिवार को गांव में ही रखा। लंबा वक्त अकेले ही जहां पोस्टिंग रही रहकर ड्यूटी की। करीब पैंतीस साल पहले अकबरपुर के डी ब्लॉक में छोटा सा घर बनाया। इसके बाद परिवार को शहर ले आए। दो बेटी तबस्सुम, आफरिन और दो बेटे मो.आजम और मो.आरिफ। तीनों बच्चों को मो.कादिर ढंग से पढ़ा नहीं पाए मगर आरिफ का एडमीशन उन्होंने बीएचएस में कराया। बच्चे बड़े हुए तो उनकी शादी निपटाने लगे।
परिवार से नहीं मिल पाया सुकून
मो.कादिर ने तिनका तिनका जोड़कर अपनी गृहस्थी बसाई। ऊपर वाले का दिया सब कुछ था मगर तीन दोनों बेटियों और बेटे आरिफ की वजह से उन्हें कभी सुकून नहीं रहा। बड़ी बेटी तबस्सुम के शौहर ने उसे तलाक दे दिया तो यही हाल छोटी बेटी आफरिन का रहा। आफरिन को भी उसके शौहर ने तलाक दे दिया। बहुत प्रयास के बाद भी दोनों बेटियों ने शादी नहीं की। इस बीच कादिर ने गौसनगर में भी मकान बनवा लिया। बड़ी बेटी अकेले अकबरपुर में मकान में रहती थी। उसके एक पोर्सन में किराएदार रहता था। जबकि गौसनगर में कादिर अपने परिवार के साथ रहने लगे। दोनों मकान कादिर ने अपनी पत्नी अनीसा के नाम बनवाया।
बेटे की जिद से बिखर गया कुनबा
मो। आरिफ के सिर पर न जाने कौन सा शैतान सवार था कि जिसने उसे पाल पोस कर इतना बड़ा किया। वह उनका ही दुश्मन हो गया। मकान की चाहत में आरिफ ये भी भूल बैठा कि एक छोटी सी गलती उसके पूरे जीवन को बर्बाद कर सकती है। आरिफ नहीं चाहता था कि गौसनगर वाले मकान में उसके परिवार के अलावा कोई और रहे। जिसका नतीजा रहा कि शादी के बाद से वह अक्सर मां और भाई आजम से लड़ जाता था। और ये लड़ाई इस मुकाम पर पहुंच गई कि आरिफ ने अपनी मां और बहन का कत्ल कर दिया। पिता को लगभग मार ही डाला था मगर कादिर जिंदा बच गए। अस्पताल में कादिर मरणासन्न हाल में भर्ती हैं। बड़ी बेटी तबस्सुम उनकी देखरेख कर रही है।
मां बेटी की बॉडी काला डांडा में दफनाई
सुबह से ही कादिर के घर पर नात रिश्तेदारों की भीड़ जुटना शुरू हो गई थी। घर के अंदर आग से सब कुछ खाक हो चुका था। ऐसे में आने वाले लोगों ने पड़ोसियों के घर ठौर ले रखी थी। मां अनीसा और बेटी आफरिन का शव पोस्टमार्टम के बाद घर पहुंचा तो नात रिश्तेदारों के साथ पड़ोसियों की आंखें नम हो गईं। लोग यही चर्चा करते रहे कि ऐसी मौत किसी को न मिले। शाम को दोनों का शव करेली काला डांडा कब्रिस्तान में दफनाया गया।
मां को देखता रहा अरमान
इस घटना में अरमान का सब कुछ बिखर गया। दस साल का अरमान अपने पिता की छांव न पा सका। पिता ने करीब सात साल पहले मां आफरिन को तलाक दिया तो अरमान गोद में था। आफरिन बेटे अरमान को लेकर मायके पिता कादिर के पास आ गई। वह यही रहने लगी। गुरुवार को मां आफरिन का शव घर पहुंचा। कभी अरमान मां को छूता तो कभी दूर खड़ा हो जाता। जनाजे को फूलों से सजाया जाने लगा तो अरमान ने भी अपने हाथ से मां के शव पर फूल डाले। अब अरमान का सहारा उसके मामा आजम और मामी शबाना ही बचे हैं। मो.कादिर का इलाज एसआरएन अस्पताल में चल रहा है। उनकी बदनसीबी ये रही कि अपनी पत्नी की आखिरी विदाई के वक्त वह जनाजे को कंधा भी न दे पाए। अस्पताल में वह बेटी तबस्सुम से घर का हाल पूछते रहे। उन्हें बताया गया कि अनीसा और आफरिन का शव दफना दिया गया है तो कादिर रोने लगे।