प्रयागराज ब्यूरो । नियमानुसार चिल्ड्रेन वार्ड हमेशा गायनी विभाग के बगल होना चाहिए। जिससे पैदा होने के बाद अगर बच्चा असामान्य है तो उसे तत्काल इलाज मुहैया कराया जा सके। लेकिन, प्रयागराज में ऐसा नही है। यहां चिल्ड्रेन हॉस्पिटल, एसआरएन अस्पताल से चार किमी की दूरी पर है। जिसे तय करने में बीस मिनट का समय लग जाता है। यह दूरी अक्सर नौनिहालों के लिए जानलेवा भी बन जाती है। इससे निजात के लिए एसआरएन अस्पताल कैंपस में एक नई बिल्डिंग का काम चल रहा है, जो चार साल बाद भी पूरा नही हो सका है।
मुश्किल से बची बच्चों की जिंदगी
केस नंबर वन- मेजा रोड के रहने वाले मोनू का भांजा दस दिन पहले चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में भर्ती हुआ था। उनकी बहन की डिलीवरी एसआरएन अस्पताल में हुई थी और जन्म के बाद बच्चा कोई हरकत नही कर रहा था। उन्होंने बताया कि अचानक से लेकर यहां आना पड़ा। बड़ी मुश्किल से साधन मिला और तब तक बच्चा अधिक अचेत हो चुका था। उसे भर्ती कराने में एक घंटे से अधिक का समय लग गया।
केस नंबर दो- सिद्धू बांदा के अतर्रा के रहने वाले हैं। ताया कि उनका नवजात बेटा जन्म के बाद बीमार पड़ गया। उसकी हालत गंभीर होने पर डॉक्टरों ने प्रयागराज के एमएलएन मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। यहां आने के बाद पता चला कि चिल्ड्रेन अस्पताल जाना है। तब तक बच्चा अधिक सीरियस हो गया था। जैसे तैसे उसे भर्ती कराकर इलाज शुरू कराया जा सका।
केस नंबर तीन- नैनी के रहने वाले अनिल जायसवाल की भी कहानी ऐसी ही है। उनका पांच माह के बच्चे के सिर में सूजन आ जाने से वह गंभीर हो गया। आनन फानन में परिजन उसे एसआरएन अस्पताल ले गए। यहां आकर पता चला कि उसे पीडियाट्रिक वार्ड में भर्ती किया जाना है। इसके लिए उसे चिल्ड्रेन अस्पताल जाना होगा। जैसे तैसे परिजनों ने उसे भर्ती कराया। उनका कहना है कि सभी सुविधाएं एक जगह होनी चाहिए। नही तो भागदौड़ में बच्चे की जान भी जा सकती है।
2021 में तैयार हो जानी थी बिल्डिंग
इस समस्या से निजात के लिए लंबे समय से एसआरएन अस्पताल कैंपस में चिल्डे्रन अस्पताल शिफ्ट करने की बात चल रही थी। 2018 में इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिल गई और इसे 35 करोड़ की लागत से 2021 में तैयार हो जाना चाहिए था। लेकिन शासन प्रशासन की लापरवाही के चलते यह अभी तक नही बन पाया है। 300 बेड के इस बच्चों के अस्पताल के निर्माण की जिम्मेदारी यूपी सिडको को सौंपी गई थी। एलएलएन मेडिकल कॉलेज प्रशासन का कहना है कि इस मामले में शासन को पत्र लिखा गया था लेकिन कोई सुनवाई नही हुई। एजेंसी ने अस्पताल की बिल्डिंग तैयार करने में अभी एक साल का वक्त मांगा है। उम्मीद है कि चिल्ड्रेन अस्पताल की बिल्डिंग कुंभ से पहले यहा शिफ्ट हो जाएगी।

बिल्डिंग तैयार हो जाने पर यह होंगे फायदे
सीरियस नवजात बच्चों को चिल्ड्रेन ले जाने में गोल्डन टाइम खराब नही करना पड़ेगा।
तीस सौ बेड का होने की वजह से एक बेड पर दो-दो बच्चे नही लेटाने पड़ेंगे।
24 घंटे बच्चों को ओपीडी की सुविधा दी जाएगी।
फिलहाल चिल्ड्रेन अस्पताल में नौ आक्सीजन वेंटीलेटर हैं, नई बिल्डिंग में इनकी संख्या दोगुनी हो जाएगी।
माड्यूलर किचन और लांड्री की सुविधा भी दी जाएगी।
पूरा हॉस्पिटल सेंट्रलाइज्ड एसी से लैस होगा।
वर्तमान में सर्जरी के लिए बच्चों को एसआरएन लाना होता है, नई बिल्डिंग में माड्यूलर ओटी होगी जहां बच्चों का तत्काल आपरेशन हो जाएगा।
वर्तमान में एसआरएन से चिल्ड्रेन अस्पताल ले जाने में एंबुलेंस वालों को मोटी रकम देनी पड़ती है, इससे परिजनों को निजात मिल जाएगी।
माताओं के गायनी वार्ड एसआरएन में भर्ती होने पर चिल्ड्रेन अस्पताल में बच्चों की देखभाल करना मुश्किल होता है। यह समस्या भी खत्म हो जाएगी।
अभी चिल्ड्रेन अस्पताल में एक पैथोलाजी है, नई बिल्डिंग में इसकी संख्या बारह हो जाएगी।

रोजाना 60 फीसदी मामले न्यूबार्न बेबी के
चिल्ड्रेन अस्पताल के डॉक्टर्स बताते हैं कि रोजाना अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों में 60 फीसदी बच्चे न्यूबार्न बेबी होते हैं। इनमें अधिकतर केसेज एसआरएन अस्पताल से रेफर होते हैं। इन बच्चों को विद इन सेकंड्स उपचार की जरूरत होती है। अधिक देरी होने पर इनकी जान भी जा सकती है। जैसे तैसे परिजन इन बच्चों को यहां लेकर आते हैं। इनको आनन फानन में भर्ती कर इलाज शुरू किया जाता है। अगर कैंपस एक हो तो तत्काल और बेहतर इलाज हो सकता है।

हम लोगों को भी नई बिल्डिंग में शिफ्ट होने का इंतजार है। दूर होने से बच्चों के इलाज में दिक्कत होती है। बताया जा रहा है कि इसके पूरा होने में अभी एक साल का समय लग सकता है।
डॉ। मुकेश वीर सिंह, एचओडी, चिल्ड्रेन अस्पताल
कार्यदायी एजेंसी को कई बार चेतावनी दी जा चुकी है लेकिन काम पूरा नही हो पाया है। उनका कहना है कि कुंभ के पहले हम बिल्डिंग कम्प्लीट कर देंगे। शासन को भी पत्र लिखा जा चुका है।
प्रो। एसपी सिंह, प्रिंसिपल, एमएलएन मेडिकल कॉलेज प्रयागराज