प्रयागराज ब्यूरो । उम्र महज 18 साल। तेलियरगंज के रहने वाले प्रत्यूष (काल्पनिक नाम) को देखकर नहीं लगता कि वह एक प्रकार के मानसिक विकार का शिकार है। बोलने-बतियाने में सामान्य सा दिखने वाला यह युवा एक दिन अचानक घर छोड़कर मुंबई भाग जाता है। परिजनों को जब यह पता चलता है तो वह परेशान हो जाते हैं। किसी तरह से प्रत्यूष को वापस प्रयागराज लाया जाता है। यहां पर वह बताता है कि एक फेमस टीवी सीरियल की लीड हीरोइन से उसे प्यार हो गया है। यह एक्ट्रेस इशारों में अपने पास बुलाती भी है। उसके मिस कॉल भी प्रत्यूष के फोन पर आते हैं। इसीलिए वह बिना बताए एक्ट्रेस से मिलने चला गया था। कुछ दिन बाद प्रत्यूष ने दोबारा फिर ऐसा किया। इस बार परिजन उसे सीधे मनोचिकित्सक के पास ले गए। वहां पता चला कि यह युवा परसिस्टेंट डिल्यूजनल डिसार्डर नामक मनोविकार का शिकार है। जिसमें किसी को किसी भी फेमस पर्सनैलिटी से एकतरफा भ्रामक प्यार या लगाव हो जाता है। फिर वह दिन रात उसके बारे में ही सोचता रहता है।
इन दोनों की हरकतों से भी परिजन हुए परेशान
इसी तरह से झूंसी के रहने वाले नवीन (काल्पनिक नाम) भी इसी बीमारी से परेशान हैं। उसे भी एक फेमस टीवी सीरियल की एक्ट्रेस प्रेम हो गया है। जब तब वह एक्ट्रेस को लेकर बहकी बातें करने लगता है। उसका इलाज भी काल्विन अस्पताल के मनोरोग विभाग में चल रहा है। 17 साल की नेहा (काल्पनिक नाम) भी परसिस्टेंट डिल्यूजनल डिसार्डर की शिकार है। वह गुजरात के सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर के लगाव में आ गई है। वह दिनभर उनके बारे में बात करती है। इन्फ्लूएंसर से प्रभावित होकर नेहा ने सोशल मीडिया की कई देशभक्ति की प्रोफाइल भी बनाई है। वह अक्सर अपने आइडल से मिलने की कोशिश में रहती है। यह जानकारी होने पर परिजनों ने उस पर नजर रखनी शुरू कर दी है। उसका इलाज भी मनोरोग केंद्र में चल रहा है।

लाइफ में अधिक दखल से बिगड़ रहा माहौल
यह तीनों मामले तो केवल बानगी भर हैं। असलियत में तो मनोचिकित्सकों के पास ऐसे मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। जिसका कारण लाइफ में टेलीविजन शोज और सोशल मीडिया का अधिक दखल है। परिवार के लोग युवाओं या किशारों की लाइफ स्टाइल पर ध्यान नही देते हैं। इस दौरान उनके मन मस्तिष्क में अचानक से किसी हीरोइन या हीरो की छवि आइडल के रूप में बन जाती है। लगाव इतना बढ़ जाता है कि युवा उससे हर पल मिलने की कोशिश करते हैं। अगर मोबाइल पर किसी की मिस कॉल भी आए तो उन्हें लगता है कि जिसे वह चाहते वह कॉल कर रहा है। टेलीविजन पर हीरो या हीरोइन जो कुछ भी डायलाग बोलते हैं तो उन्हें लगता है कि यह उनके लिए ही बोला जा रहा है। कई युवा ऐसे भी हैं जो अपने आइडल से मिलने के लिए घर से बिन बताए भाग भी जाते हैं।


क्या है परसिस्टेंट डिल्यूजनल डिसार्डर
एक्सपर्ट बताते हैं कि यह प्रकार का भ्रम संबंधी विकार है। जिसमें मनोरोगी को यह विश्वास हो जाता है कि सामने वाला उससे प्यार करने लगा है। यह एक दुर्लभ स्थिति है। कई बार उच्च हैसियत वाले पर भी खुद से प्यार करने का भ्रम रोगी को होने लगता है। ऐसे ही एक मामले में पिछले दिनों सिविल लाइंस के एक स्कूल के छात्र को निलंबित कर दिया गया। कारण यह था कि उसे क्लास की एक लड़की को लेकर ऐसा भी भ्रम हो गया था। उसे लगता था लड़की उससे बेहद प्यार करने लगी है। जबकि ऐसा नही था। जब उसने लड़की का पीछा किया तो उसने स्कूल में कम्प्लेन कर दी। इस पर प्रिंसिपल ने उसके पैरेंट्स को बुलाकर चेतावनी दे डाली। इस मनोविकार का दूसरा प्रकार यह भी है कि मनोरोगी किसी दूसरे से इतनी नफरत करने लगता है कि उसकी जान भी ले सकता है।

कुछ कदम बचा सकते हैं लाइफ
एक्सपट्र्स का कहना है कि कुछ चीजें फालो करके बच्चों को इस मनोविकार से बचा सकते हैं-
- बच्चों को कम उम्र में मोबाइल बिल्कुल मत दें।
- उसकी पसंद और नापसंद का ध्यान रखें।
- अगर वह किसी के बारे में अधिक बात करता है तो इसे नजर अंदाज मत करें।
- बच्चों के साथ अधिक समय बिताएं, उन्हें सोशल मीडिया से दूर रखें।
- उनके गैजेट्स की मानीटरिंग करें कि कौन सा चैनल या शो अधिक देख रहे हैं।
- किसी प्रकार के मनोविकार के लक्षण नजर आएं तो तत्काल मनोचिकित्सक से बात करें।

इस तरह का मनोविकार फैलने का कारण परिजनों का अपने बच्चों पर अधिक ध्यान नहीं देना है। माता पिता के अधिक बिजी रहने से बच्चे अपनी नई वर्चुअल दुनिया बसाने लगते हैं। यह उसी का परिणाम है।
कमलेश तिवारी, मनोवैज्ञानिक

परसिस्टेंट डिल्यूजनल डिसार्डर की वजह से किशोर और युवाओं को पहले कोई पर्सनैलिटी आइडल लगती है और फिर उसे सामने वाले से प्रेम हो जाता है। धीरे धीरे वह उसके बारे में सोचता है और चारो ओर भ्रम की स्थिति बनने लगती है। अगर हीरोइन सीरियल पर्दे पर किसी को प्रपोज कर रही है तो उसे लगता है उसके साथ ऐसा हो रहा है। जो छात्र सीरियल की हीरोइन से मिलने मुंबई चला गया था उसकी काउंसिलिंग की जा रही है। अब उसमे सुधार नजर आ रहा है।
राकेश पासवान, मनोचिकित्सक