प्रयागराज (ब्यूरो)। देवशयनी एकादशी पर भगवान श्रीहरि विष्णु का विधि विधान से पूजन किया गया। संगम पर भी श्रद्धालुओं श्ने पुण्य की डुबकी लगाई। आचार्य बालकृष्ण ने बताया कि देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए पाताल लोक में शयन करेंगे। इस दौरान शादी, विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश, नए प्रतिष्ठान का शुभारंभ जैसे कार्य बंद हो जाएंगे। भगवान विष्णु कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी (देवोत्थान एकादशी) चार नवंबर को जागृत होंगे। उसके बाद मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे।
पानी की मात्रा रहती है अधिक
आचार्य राजेश पाठक कहते हैं कि देवशयनी से देवोत्थान एकादशी तक सूर्य व चंद्रमा की किरणों का तेज पृथ्वी पर कम पहुंचता है। पृथ्वी पर पानी की मात्रा अधिक रहती है। नदियां उफान पर होती हैं। वातावरण में अनेक जीव-जंतु उत्पन्न हो जाते हैं.यह सब तमाम रोग फैलाते हैं। देवशयनी एकादशी के बाद भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा चित्र को गंगा जल से स्नान कराकर धूप, दीप, पुष्प आदि अर्पित करना चाहिए। पुष्प, फल, वस्त्र पीला होना चाहिए। भोग में तुलसी की पत्ती जरूर डालें। इसके बाद ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जप करते हुए पूजन करना चाहिए। शाम को पुन: पूजन करके रात में दीपदान करने से प्रभु की कृपा की प्राप्ति होती है। चार नवंबर के बाद पुन: मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे।