प्रयागराज (ब्‍यूरो)। बेली और काल्विन अस्पताल में जरूरी दवाओं का टोटा बना हुआ है। यहां शासन द्वारा निर्धारित दवाओं की सूची में कई महत्वपूर्ण दवाएं उपलब्ध नही हैं। जिसकी वजह से मरीजों को बाजार से खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है। खासकर एलर्जी, एंटी बायटिक, गैस और दर्द की दवाओं की आपूर्ति ड्रग कारपोरेशन से ठप होने से डॉक्टरों को मरीजों का इलाज करने में भी परेशानी हो रही है। बाजार में यह दवाएं काफी महंगे दामों पर मिलती है जिसके चलते कई मरीज बिना इलाज ही घर लौट जा रहे हैं।

लंबे समय से नही मिल रही दवाएं
कई साल पहले अस्पताल शासन से मिलने वाले बजट से दवाएं खरीदते थे। इसके बाद शासन ने ड्रग कारपोरेशन बनाकर वहां से दवाओं की आपूर्ति शुरू कर दी। कारपोरेशन की ओर से शहर के सरकारी अस्पतालों में 294 दवाओं की सूची बनाकर सप्लाई की जा रही है। लेकिन वर्तमान में इनमें से केवल 220 दवाएं ही दी जा रही हैं। 74 दवाओं की सप्लाई बंद है। इनमें से कई दवाएं बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं जिनकी जरूरत 70 फीसदी मरीजों को पड़ती है। जबकि बाजार में इन दवाओं का दाम काफी अधिक है।

जरूरी दवाएं जो नही हैं मौजूद
दवा का नाम इफेक्ट
सिट्रीजिन एंटी एलर्जिक
नेफ्रोजाल एंटी एलर्जिक (कैप्सूल व इंजेक्शन)
रेनिटिडीन गैस और बदहजमी से बचाव (कैप्सूल व इंजेक्शन)
कफ सीरप खांसी से राहत
एंटी एलर्जिक आई ड्राप
माक्सीफ्लाक्सासीन आंखों की एंटी बायटिक
आई आइंटमेंट
डायक्लोफेनेक दर्द और सूजन की दवा
आयोडाइड मोतियाबिंद से बचाव का ड्राप

बाजार में ऊंचे दामों पर होती है बिक्री
अगर इन दवाओं की सप्लाई अस्पतालों में बंद है तो इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है। बाजार में इन दवाओं का दाम काफी अधिक है। केवल गैस और बदहजमी से छुटकारा दिलाने वाली दवाएं 5 से 10 रुपए प्रति टेबलेट या कैप्सूल है। इनकी पूरी स्ट्रिप सौ रुपए तक मिलती है। कुछ ब्रांडेड कंपनियों की दवाओं के दाम तो इससे भी अधिक है। इसके अलावा दर्द और सूजन की दवा मार्केट में 50 रुपए स्ट्रिप से अधिक है। आंखों के ड्राप माक्सीफ्लाक्सासीन की कीमत सौ रुपए से कम नही है। आंखों की सिप्लाक्स ड्राप को छोड़कर सभी के दाम काफी अधिक है। एंटी एलर्जिक बांडेड दवाओं की कीमत भी आसमान छू रही है।

अब तो एलपी का भी सहारा नही
कुछ साल पहले तक दवाओं के खत्म होने पर अस्पताल इनकी खरीदी एलपी यानी लोकल परचेजिंग के जरिए कर लेते थे जिससे मरीजों को आराम मिल जाता था। लेकिन अब यह संभव नही है। सरकार ने पिछले चार से पांच सालों से एलपी का बजट देना बंद कर दिया है। जिससे मरीजों की भलाई का यह रास्ता भी बंद हो गया है। जिन दवा सप्लायर का इन अस्पतालों में एलपी का टेंडर था, उनका लाखों का बजट फंसा हुआ है, जिसके मिलने के आसार काफी कम है।

हजारों मरीजों को होती है निराशा
ड्रग कारपोरेशन की ओर से मेडिकल कॉलेजों के लिए 660 दवाओं की सूची बनाई गई है और जिला अस्पतालों के 294 दवाओं की सूची तैयार की गई है। केवल प्रयागराज में बेली और काल्विन अस्पताल में प्रतिदिन 5 से 6 हजार मरीज विजिट करते हैं। इनमें से 70 फीसदी मरीजों को एंटी एलर्जी, दर्द और गैस की दवा की जरूरत होती है। लेकिन, इतनी महत्वपूर्ण दवाओं की सप्लाई न होना मरीजों के लिए मुश्किल भरा होता है।

सरकारी अस्पतालों में दवाओं का न होना निराशाजनक है। इससे मरीजों को परेशानी होती है। अस्पतालों में काफी मजबूर मरीज आते हैं। अगर वह बाजार से महंगी दवाएं खरीद सकेंगे तो सरकारी अस्पतालों में जाएंगे ही क्यों।
शुभम कुमार
कुछ दवाएं ऐसी होती हैं जो लगभग हर तरह की बीमारियों में दी जाती हैं। इनकी खपत अधिक होती है। ऐसी दवाओं का स्टाक हमेशा रखना चाहिए। नही होने पर मरीजों को बाजार से ऊंचे दामों पर खरीदना पड़ता है। क्योंकि वहां पर ब्रांडेड दवाएं ही मिलती हैं।
रमेश कुमार
अस्पताल में जो दवाएं मौजूद नही हैं उनकी डिमांड सरकार से की जा रही है। कई दवाएं इस समय मौजूद भी हैं। मरीजों के इलाज का पूरा ध्यान दिया जा रहा है।
डॉ। एमके अखौरी, अधीक्षक, बेली अस्पताल