प्रदेश सरकार खिलाडिय़ों के साथ खेलों को प्रमोट करने में लगी है। स्टेट लेवल पर ही खिलाडिय़ों को बेहतरीन मंच उपलब्ध कराने के लिए खेलो इंडिया और यूनिवर्सिटी गेम्स के तहत बड़ी आप्च्र्युनिटी क्रिएट कर दी गयी है। खेल के मैदानों की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल देने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं। यह सिक्के का एक पहलू है जो पॉजिटिविटी क्रिएट करना है। खिलाडिय़ों का हौसला बढ़ाने वाला है। इसके ठीक विपरीत ग्राउंड की स्थिति खिलाडिय़ों में निगेटिविटी भरती है। मैदान बेहतरीन बनाने के नाम पर खोदकर छोड़ दिया गया है। काम कछुए से भी धीमी गति से चल रहा है। इस चक्कर में कई जूनियर खिलाड़ी सीनियर की कैटेगिरी में चले गये। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट को मदन मोहन मालवीय स्टेडियम में ऐसा दिखा। इसे लेकर खिलाड़ी बेहद निराश दिखे। स्पोट्र्स अथॉरिटी का कहना है कि उनके बस में खिला पढ़ी करना है, इसे वह कर रहे हैं। जबकि, काम कराने वाली एजेंसी आज भी दो साल पुराना डॉयलाग बस बारिश बंद होते ही काम शुरू करा देगी, दोहरा रही है।
किस्मत के भरोसे चल रहा अभ्यास
मदन मोहन मालवीय स्टेडियम में खिलाडिय़ों को खेलने की व्यवस्था का अभाव है। आवश्यक संसाधान नहीं होने से खिलाड़ी प्रैक्टिस नहीं कर पा रहे हैं। यहां पर कुल 15 तरह के खेल कराए जाते हैं। जिनमें एथलेटिक, हॉकी और क्रिकेट से लेकर के कबड्डी तक के खेलों का अभ्यास खिलाडिय़ों को कराया जाता है।
केवल एथलेटिक की बात करें तो 26 प्रतिस्पर्धाओं के लिए खिलाड़ी यहीं तैयार किये जाते हैं
इनमें तीन का आयोजन इस स्टेडियम में नहीं होता है जिनमेें मैराथन समेत अन्य दो प्रतिस्पर्धाएं हैं।
अव्यवस्थित है मैदान
खिलाडिय़ों को खेलने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है मैदान का होना। विशेषज्ञों की माने अगर मैदान होगा तो उपकरणों के अभाव में भी अभ्यास कर लेंगे। मैदान ही न रहा तो अभ्यास करने के लिए खिलाड़ी कहां जाएंगे। बता दें बेहतर सुविधा दिलाने के लिए मैदान का निर्माण कराया जा रहा है। यहां दो वर्षों से मैदान बन नहीं पाया है। मैदान न बनने की वजह से सबसे ज्यादा दिक्कत एथलेटिक खिलाडिय़ों को हो रही है। क्योंकि इन सभी खिलाडिय़ों के लिए फुल ग्राउंड की आवश्यकता होती है। खिलाड़ी कई बार अपने कोच और उनके अधिकारियों से शिकायत कर चुके हैं लेकिन कुछ बदलाव नहीं हुआ।
खिलाड़ी होते जाते हैं जख्मी
मैदान और ट्रैक न होने से खिलाडिय़ों को काफी समस्या हो रही है। ऊबड़-खाबड़ होने से खिलाड़ी गिरकर चोटिल हो रहे हैं।
ठोस जमीन होने के चलते उनके घुटनों व टखनों में भी दर्द होने लगता है।
इसके चलते वे ज्यादा देर तक अभ्यास भी नहीं कर पार रहे हैं।
इसका सीधा असर उनके कॅरियर पर पड़ रहा है।
तैयारी न हो पाने से वे कई प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं।
स्टेडियम से बनाई दूरी
ट्रैक न होने की वजह से बहुत से खिलाडिय़ों ने स्टेडियम में आना छोड़ दिया है। ट्रैक न होने की वजह से बहुत से खेलों के ट्रायल देने के लिए खिलाडिय़ों को बाहर जाना पड़ता है। इन तमाम समस्याओं को अवगत कराते हुए खिलाडिय़ों ने अपना दर्द बताया।
पोलवाल्ट जम्प कारनवे खराब है। दौड़ कर कूदने की समस्या होती है। ग्राउण्ड न होने की वजह से एंकल में पेन होने लगता है। ट्रैक न होने की वजह से कई प्रतिस्पर्धाओं के ट्रायल में हिस्सा ले पाने की स्थिति नहीं बन पा रही है। तमाम खामियों के चलते कई खिलाड़ी यहां आने के बजाय दूसरे स्टेडियम में अभ्यास करना पसंद कर रहे हैं।
दीपक यादव
ब्रांज विजेता, पोलवाल्ट
संसाधन उपलब्ध न होने से स्टेडियम में उपलब्ध खेलों के प्रति बच्चों का रुझान कम होता जा रहा है। भाला फेंक की प्रैक्टिस के लिए खिलाडिय़ों को मैदान नहीं मिल पा रहा है। ग्राउंड से लेकर भाले तक समस्या बने हुए हैं। यहां तो मेडिसिन बॉल भी नहीं है।
राजेश पटेल
इंटरनेशनल प्लेयर भाला फेंक
प्रोजेक्ट स्मार्ट स्पोट्र्स इंफ्रास्ट्रक्चर एंड सराउंडिंग एरिया को कम्प्लीट करने के लिए सरकार ने 7.7 करोड़ रुपए का बजट 20 जुलाई 2021 को मंजूर किया था। इस प्रोजेक्ट में मदन मोहन मालवीय स्टेडियम के भीतर और कुछ कार्य कंपनी बाग से रिलेटेड शामिल है। मदन मोहन मालवीय स्टेडियम का ग्राउण्ड का काम पेंडिंग है। बारिश रूकते ही निर्माण कार्य फिर से प्रारंभ होगा। सितम्बर तक काम कम्प्लीट कर लिया जायेगा।
संजय रथ
मिशन मैनेजर जनरल, स्मार्ट सिटी
ट्रैक न होने से तमाम दिक्कत है। बड़ा चैलेंज यह क्रिएट हो गया है कि बिगनर्स को ट्रेंड करने के लिए माहौल नहीं बन पा रहा है। इनके लिए ट्रैक मस्ट है यह दो साल बन रहा है और अभी तक पेंडिंग है। मैदान बनवाने के लिए मिशन मैनेजर से शिकायत भी की गयी थी लेकिन कोई चेंज तो दिख नहीं रहा।
विमला सिंह
आरएसओ, प्रयागराज