प्रयागराज (ब्यूरो)। वाटर रिचार्जिंग के मद्देनजर तालाबों के संरक्षण पर करोड़ों रुपये हर साल जिले में सरकार खर्च करती है। बावजूद इसके यहां तालाबों की कंडीशन सुधरती हुई नजर नहीं आ रही। तालाबों का वजूद मिटता जा रहा है। करीब सौ साल से भी अधिक पुराने तालाब भी आज प्रशासनिक उपेक्षा और बढ़ती आबादी के शिकार होते जा रहे हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है नैनी एरिया के वार्ड 17 चाका स्थित चकमुंडी तालाब का। इसकी कंडीशन बदतर हो गई है। तालाबों की सुरक्षा व संरक्षा एवं कंडीशन और इतिहास का हाल आप सब को बताने के लिए दैनिक जागरण आईनेक्स्ट 'कहानी तालाब कीÓ अभियान चला रहा है। इसी के तहत रिपोर्टर चकमुंडी तालाब तक पहुंचा था। नगर निगम का दायरा बढऩे के बाद यह नगर निगम का हिस्सा बन चुका है। आज भी इसे लोग चक मुंडी तालाब के नाम से ही जानते और पहचानते हैं।
तहसील करछना
एरिया नगर निगम प्रयागराज
वार्ड 17 चाका
तालाब चकमुंडी नैनी
रकबा 03 बीघा करीब
सूचना तंत्र वार्ड पार्षद
वर्षों पुराना है इतिहास
इलाके के राजू गुप्ता, मंजू भारतीया, चंदन आदि कहते हैं कि इस तालाब का इतिहास वर्षों पुराना है। घर परिवार व गांव के बुजुर्ग बताया करते थे कि एक समय था जब इस तालाब का एक बड़ा धार्मिक जुड़ाव सीधे पब्लिक से था। संगम और गंगा नदी के दूर होने के कारण चकमुंडी गांव ही आसपास के भी कई गांव के लोग यहां सुख समृद्धि के लिए पूजा पाठ किया करते थे। चाका ब्लाक के करीब 84 गांवों में इस गांव का यह तालाब अपनी धार्मिक मान्यताओं के चलते काफी चर्चित था। उस दौर के बुजुर्ग जो अब इस दुनिया में नहीं हैं स्व। सुखलाल व भैरो लाल तालाब की देखरेख किया करते थे। बुजुर्ग कहा करते थे कि उस दौर में इस तालाब का पानी इतनी शीशे की तरह साफ हुआ करता था। घरों से निकला हुआ गंदा पानी इस तालाब में नहीं आता था।
तालाब किनारे बैठती थी पंचायत
इस तालाब के किनारे एक मंदिर ग्रामीणों के सहयोग से बनाया गया। ग्राम समाज के साथ व सहयोग से बनवाये गये इस मंदिर में क्षेत्र के कई गांवों के लोग पूजा पाठ के लिए आया करते थे। भण्डारा और कन्या भोज जैसे धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन इस तालाब पर मंदिर में पूजा पाठ के साथ होता था। इन बातों का कोई लिखित प्रमाण तो नहीं हैं, मगर पुरनिए इस तालाब का इतिहास बताया करते थे। बताते हैं कि उस जमाने में यहां पंचायतें भी बैठा करती हैं। पंचायतों का फैसला सर्वमान्य हुआ करता था।
मछलियों को चारा खिलाते थे लोग
चकमुंडी तालाब से जुड़ा एक और इतिहास यह है कि इसमें कोई भी मछली नहीं पकड़ता था। पाली गई मछलियों को लोग सुबह शाम इस तालाब पर दाना खिलाने के लिए आया करते थे। मान्यता था कि मछलियों को दाना या चारा खिलाने से घर परिवार में खुशियां आती हैं। लोग मछलियों को इस तालाब में खुद छोड़ा करते थे। मछलियों को नुकसान पहुंचाने वालों या तालाब में कुछ कूड़ा करकट डालने वालों पर पंचायतें जुर्माना लगाया करती थीं।
आज क्या है तालाब की कंडीशन
तालाब का पानी अब काफी गंदा और बदबूदार हो गया है। जलकुंभी इस तालाब का दाग बन गई है।
तालाब में लोगों के घरों से निकला गंदा पानी नालियों से होकर पहुंचने लगा है
तालाब आज बीमारी फैलाने वाले मच्छरों का आशियाना बन गया है।
तालाब के किनारे बना मंदिर जर्जर हो चुका है। अब यहां पूजापाठ भी नहीं होता।
इस एरिया में कई ऐतिहासिक तालाब हैं। चकमुंडी सहित दो तालाबों का सौंदर्यीकरण कराने के लिए नगर निगम को पत्र लिख गया है। घरों का निर्माण होने से तालाबों का दायरा घटता जा रहा है। इसके लिए भी पत्र अफसरों को लिखा गया है। अपने स्तर से तालाबों को सुरक्षित करने के लिए लिखापढ़ी कर रहे हैं।
अनूप कुमार, पार्षद वार्ड 17 चाका