- पान दरीबा के सफदर अली बेग से 7वीं मुहर्रम पर निकलता था दुलदुल का जुलूस

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PRAYAGRAJ: पान दरीबा के इमामबाड़ा सफदर अली बेग से 1836 में कायम किया गया दुलदुल का जुलूस कोविड संक्रमण के कारण इस वर्ष भी नहीं निकला। यह दूसरा वर्ष रहा जब 186 साल की परम्परा पर कोविड का ग्रहण लगा। इमामबाड़ा सफदर अली बेग में सुबह फजिर की नमाज के बाद इमाम हुसैन के वफादार घोड़े जुलजनाह को रेशमी व सूती चादर से ढ़क कर गुलाब व चमेली के फूलों से सजा कर लोगों के जियारत को इमामबाड़े के अन्दर ही तैयार किया। दुलदुल जुलूस इन्तेजामिया कमेटी के मिर्जा बाबर बेग,चंगेज बेग, सुहेल, शमशाद, जहांगीर, मुन्ना समेत दुलदुल जुलूस के छठी व सातवीं पीढ़ी के अन्य लोगों ने गेट के बाहर लोगों के हाथों को सेनेटाइज करने और मास्क लगाए रहने पर इमामबाड़े के अन्दर प्रवेश करने दिया। उम्मुल बनीन सोसाईटी के महासचिव सै.मो.अस्करी के अनुसार दिन भर लोग जियारत को आते रहे।

चादर चढ़ाकर मांगी मुरादें

दुलदुल पर फूल माला के साथ रंग बिरंगी चादरें, फूलों की चादर चढ़ा कर मन्नत व मुरादें मांगने व दुलदुल की जियारत के लिए सैकड़ों लोग पहुंचे। दुलदुल घोड़े को किसी ने दूध जलेबी तो किसी ने भीगी चने की दाल से स्वागत किया। देर रात दुलदुल पर चढ़ी चादर व फूलों को उतार दुलदुल बढ़ा दिया गया। दस मोहर्रम को सभी इमामबाड़ों पर चढ़े फूलों व ताजिया को करबला में नम आंखों से दफन कर दिया जाएगा। दरियाबाद का प्रसिद्ध दुलदुल जुलूस इमाम बाड़ा हुसैन अली खां से इस वर्ष भी नहीं निकाला गया। आयोजक जौरेज हैदर के अनुसार इमामबाड़ा प्रांगण में ही सुबह से देर रात तक लोग कोविड गाइड लाइन का पालन करते हुए जियारत करते रहे। अन्जुमन हाशिमया के नौहाख्वानो ने पुरदर्द नौहा पढ़ा। रानीमण्डी मे शाहरुक़ काजी के इमामबाड़े में अन्जुमन अब्बासिया रानीमण्डी तथा मीर हुसैन के इमामबाड़े मे अन्जुमन हैदरया के सदस्यों ने तेज धार की छूरीयों से लैस जंजीरों से पुश्तजनी कर करबला के बहत्तर शहीदों को खेराजे अकीदत पेश की।