- एक सप्ताह से नहीं आया इंजेक्शन, मरीजों की अटक गई रिकवरी
- प्रदेश सरकार से लगातार की जा रही है इंजेक्शन की डिमांड
प्रयागराज- ब्लैक फंगस के मरीजों का इलाज एक बार फिर अटक गया है। एसआरएन हॉस्पिटल में यह मरीज इंजेक्शन के इंतजार में एक-एक दिन काटने को मजबूर हैं। खुद हॉस्पिटल प्रशासन इस मामले में मौन बना हुआ है। उनका कहना है कि जब तक इंजेक्शन नही आ जाता, हम कुछ नही कर सकते हैं। फिलहाल मरीजों को आप्शन के तौर पर महंगी टेबलेट बाजार से खरीदकर खानी पड़ रही है।
इलाज के नाम पर बड़ी लापरवाही
पिछले एक सप्ताह से मरीजों को ब्लैक फंगस के इलाज में यूज होने वाले इंजेक्शन एंफोटेरेसिन बी की डोज नहीं लगाई
नही लगाई गई है। यह इंजेक्शन बेहद आवश्यक है और बाजार में उपलब्ध नहीं है। हॉस्पिटल के वार्ड दस में इस समय आठ मरीज ब्लैक फंगस के भर्ती हैं और यह प्रदेश सरकार की तरफ इंजेक्शन के लिए आस लगाकर बैठे हैं। लेकिन सुनवाई नही हो रही है। इलाज में यह बड़ी लापरवाही उनकी जान की दुश्मन बन सकती है। खुद डॉक्टर भी इस मामले में हाथ खड़े कर चुके हैं।
खरीदने पर मजबूर महंगी टेबलेट
जो मरीज भर्ती हैं उनको इंजेक्शन नही होने पर मजबूरी में आप्शन के तौर पर टेबलेट लेनी पड़ रही है। यह दवा बाजार में पांच हजार रुपए में उपलब्ध है और इसको लेकर हो रही ब्लैक मार्केटिंग का दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने स्टिंग कर भंडाफोड़ भी किया था। इसके बाद दो दिन में दो सौ डोज प्रदेश सरकार से आई और यह कुछ दिन में खत्म हो गई। इसके बाद से प्रयागराज को एलॉटमेंट नही मिला। अब फिर से मरीज बिना इलाज वार्ड में भर्ती हैं।
क्यों जरूरी है ये इंजेक्शन
कोरोना से ठीक हुए गंभीर मरीजों में ब्लैक फंगस के मामले सामने आ रहे हैं। प्रयागराज में अब तक 35 मरीज इस बीमारी के सामने आ चुके हैं। जिसमें से आठ मरीज अभी वार्ड में भर्ती हैं। इन मरीजों के इलाज में एंफोटेरेसिन बी इंजेक्शन काफी डिमांडिंग होता है। इसके यूज से मरीज का इंफेक्शन फैलने से रुक जाता है और किडनी पर दवा का असर नही पड़ता है। यह इंजेक्शन दवा से किडनी पर पड़ने वाले लोड को कम कर देता है।
टेबलेट खरीदना सबके बस की बात नहीं
मार्केट में ब्लैक फंगस के इलाज में यूज होने वाली टेबलेट की कीमत 5 हजार रुपए है। इसे फोन करने पर एक शख्स मरीजों तक पहुंचाता है और बदले में परिजनों को दवा का बिल भी नहीं दिया जाता है। यह टेबलेट अधिकतम दो से तीन दिन तक चलती है और फिर मरीज को नया पत्ता खरीदना होता है। इसलिए जो मरीज आर्थिक रूप से कमजोर हैं वह यह दवा नही खरीद सकते हैं। उनकी सेहत को सहेजना डॉक्टर्स के लिए बड़ा टास्क साबित हो रहा है।
इलाज नहीं है तो घर भेज दें हमें
रिपोर्टर ने जब इस मामले में परिजनों से बात की तो उनका दर्द सामने आ गया। उन्होंने बताया कि अगर दवा नही है तो हमारे मरीज को घर भेज दिया जाए। कम से कम उनकी वहां पर देखभाल तो हो जाएगी। टेबलेट भी हम घर पर खरीदकर दे देंगे। जब दवा ही नहीं उपलब्ध है तो हॉस्पिटल में किस बात का इलाज किया जा रहा है।
पिछली बार हमने डीएम साहब से रिक्वेस्ट की थी तो शासन से दो दिन इंजेक्शन मिले थे। लेकिन फिर से वहां से सप्लाई रोक दी गई है। हम इंतजार कर रहे हैं कि कितनी जल्दी इंजेक्शन मिले और ब्लैक फंगस के मरीजों को इसकी जरूरी डोज उपलब्ध कराई जाए।
प्रो। एसपी सिंह, प्रिंसिपल, एमएलएन मेडिकल कॉलेज प्रयागराज