प्रयागराज (ब्यूरो)।क्या शहर में सामुदायिक शौचालय या सार्वजनिक शौचालय स्वच्छ और अच्छी तरह रखे गए हैं?Ó यह वह सवाल है जिसका जवाद यदि पब्लिक के हां में देने पर जिला प्रदेश व देश में स्वच्छता के मामले में अपनी रैंगिंक को सुधार सकता है। यह प्रश्न ऑनलाइन होने वाले स्वच्छता सर्वेक्षण में पब्लिक से पूछा जा रहा है। मामला अपने शहर से जुड़ा है है तो हमने पब्लिक के सामने रियलिटी रखने के साथ ही अफसरों व पब्लिक को एक्टिव करने के उद्देश्य से इसका रियलिटी चेक करके हकीकत को परखा। रियलिटी चेक में सामने आयी हकीकत ठीक नहीं है। लेकिन, इस स्थिति को पूरी तरह से बदल देने का मौका जिम्मेदारों के साथ ही शहर के लोगों के पास अब भी मौजूद है।

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प्वाइंट से तय होगी स्वच्छता सर्वेक्षण की रैकिंग
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वीं रैंक थी पिछली बार प्रयागराज की
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जुलाई से शुरू हो चुकी है फीडबैक की प्रक्रिया
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अगस्त तक पब्लिक से लिए जाएंगे फीडबैक
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अंक मिलने हैं पब्लिक फीडबैक पर

नगर निगम की मानीटरिंग पर सवाल
पिछले वर्ष की स्वच्छता सर्वेक्षण रैकिंग में प्रयागराज को 16वां स्थान मिला था। स्वच्छता सर्वेक्षण शुरू होने के बाद प्रयागराज की रैंकिंग में लगातार सुधार हुआ जरूर है लेकिन नंवर वन बनने का सपना अभी दूर की कौड़ी है। नगर निगम के अफसर कोशिश में लगे हंै लेकिन फिलहाल जमीन पर प्रयास दिखायी नहीं देता है। बताते चलें कि नगर निगम स्वच्छता सर्वेक्षण एप पर पब्लिक को कुल नौ सवालों के जवाब हां या नहीं में देना है। इसमें एक सवाल यह भी है 'क्या शहर में सामुदायिक शौचालय या सार्वजनिक शौचालय स्वच्छ और अच्छी तरह रखे गए हैं?Ó नगर निगम को पब्लिक से उम्मीद है कि वह इस सवाल का जवाब हां में ही दे। मगर, शौचालयों में सफाई की जो स्थिति है उससे देखते हुए नहीं लगता कि लोग उत्तर हां में देंगे।

कैसे कह दें बेस्ट है
प्रोफेसर डॉ पवन पचौरी कहते हैं कि शहर को स्मार्ट सिटी बनाने पर जोर दिया दिया जा रहा है। करोड़ों रुपये व्यवस्था के नाम पर खर्च किए जा रहे हैं। शहर में शौचालय की कंडीशन नहीं सुधर पा रही। जिस शहर में शौचालय हद से ज्यादा गंदे हों, उसे स्मार्ट कैसे बनाया जाएगा। यदि स्वच्छता सर्वेक्षण में शौचालय की सफाई को लेकर कोई सवाल है तो जिले के लोग बदतर स्थिति कहेंगे। अपवाद स्वरूप कहीं एकाध साफ सुथरा हो तो नहीं कह सकते। हम अल्लापुर में रहते हैं, यहां कमला नेहरू हॉस्पिटल के पास बने टॉयलेट की कंडीशन बद से बदतर है।

चौक में इक्का दुक्का ही शौचालय हैं। जो हैं भी वह सुबह ही साफ किये जाते होंगे। लेकिन, एरिया में दुकानें खुलने के बाद स्थिति बदतर हो जाती है जबकि मार्केट के पीक के समय शाम को तो अंदर जाने का मन ही नहीं करता है। इतनी गंदगी होती है कि स्मेल बर्दाश्त कर पाना मुश्किल होता है।
अनुज वर्मा, चौक घंटाघर

जिला कचहरी में हर रोज लगभग दस हजार अधिवक्ता सुबह से शाम तक काम करते हैं। वादकारियों की तादाद भी हजारों में हर रोज आती है। यहां एक शौचालय है जरूर लेकिन इतना प्रेशर होता है कि यह पूरे दिन गंदा ही दिखता है। रोड पर कोषागार के पास भी एक शौचालय है, उसकी स्थिति भी ऐसी ही होती है। दिन में भी सफाई के लिए कर्मचारी रखे जाने चाहिए।
मनोज तिवारी, अधिवक्ता

यहां स्मार्ट सिटी के नाम पर सिर्फ पानी की तरह पैसे बहाए जा रहे हैं। किस निर्माण से पब्लिक को कितना लाभ मिलेगा इस बात पर तनिक भी गौर नहीं किया जा रहा। सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप कर दिये जाने से काम नहीं चलेगा। मेंटेनेंस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
अजीत गुप्ता, नैनी