प्रयागराज (ब्यूरो)। जिला क्षय रोग अधिकारी डा अरुण कुमार तिवारी ने बताया कि दो सप्ताह से ज्यादा किसी को खांसी रहने पर उसे टीबी संभावित माना जाता है पर जरूरी नहीं है कि दो सप्ताह से ज्यादा समय तक खांसी आने पर ही व्यक्ति टीबी की जांच कराने पहुंचे।
संबंधित व्यक्ति को टीबी है या नहीं, यह बगैर बलगम की जांच के पता नहीं लग सकता। इसलिए सेंट्रल टीबी डिवीजन ने खांसी के संभावित मरीज की पहचान के लिए अध्ययन शुरू किया है। कफ साउंड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बेस्ड साल्यूशन
टू डिटेक्ट टीबी के लिए जनपद से 170 आवाज के सैंपल भेजे जाएंगे।
आवाज की जा रही रिकॉर्ड
डा तिवारी ने बताया कि पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर देश के सभी राज्यों के चुनिंदा जिलों से टीबी मरीज, उनके संपर्क में रहे लोगों और संभावित रोगियों के खांसने और बोलने की आवाज रिकार्ड की जा रही है। इसके लिए 'फील्डी ऐप बनाया गया है। इस पर स्वास्थ्यकर्मी प्राप्त दिशा-निर्देशों के आधार पर विभिन्न चरणों के तहत आवाज की रिकार्डिग कर रहे हैं। पीपीएम समन्वयक धीरेन्द्र प्रताप सिंह के मुताबिक, जनपद को 170 आवाज के सैंपल का लक्ष्य प्राप्त है जिनमें टीबी के मरीज, संभावित और संपर्क में रहे लोगों की आवाज के सैंपल लिये जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि 'कफ साउंड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) सैंपलÓ के अंतर्गत 'फील्डी 'ऐपÓ के लिए जिला स्तरीय अधिकारियों को स्टेट टीबी आफिसर द्वारा आनलाइन प्रशिक्षण सीसीटी दिया गया। इसके उपरांत जिले में स्वास्थ्यकर्मियों को क्षय रोग विभाग की ओर से प्रशिक्षण दिया गया।
सिर्फ दो साल से अधिक ऐज के बच्चों की हो रही रिकॉर्डिंग
पीपीएम समन्वयक धीरेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि अधिकारियों की ओर से प्राप्त निर्देश के तहत प्रशिक्षित अधिकारी/सुपरवाइजर चिह्नित व्यक्ति के घर मास्क पहनकर जायेंगे। सात साल से अधिक उम्र के टीबी मरीजों, संभावित और संपर्क में रहे लोगों के ही आवाज की रिकार्डिंग की जा रही है। ऐप में आवाज रिकार्ड करने से पहले संबंधित व्यक्ति, मरीज का पूरा डाटा भरा जाता है। इसके बाद अलग-अलग चार चरणों में रिकार्डिंग होती है। पहला, एक से दस तक गिनती, दूसरा, खांसी की आवाज, तीसरा आ, ई, ऊ तीन शब्दों को तीन-तीन बार बोलने एवं चौथा रिकार्डिंग के दौरान बैकग्राउंड आवाज रिकार्ड की जा रही है।
खुद कर सकेंगे अपनी जांच
पीपीएम समन्वयक धीरेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि प्रोजेक्ट का मकसद मोबाइल ऐप (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) के जरिए महज खांसी की आवाज से संभावित मरीज की पहचान करना है। उन्होंने बताया कि कई बार लोग लंबे समय तक खांसी आने के बावजूद डर एवं संकोच के कारण जांच नहीं कराते। ऐसे में वह खुद ही मोबाइल में ऐप इंस्टाल कर अपनी जांच कर सकेंगे।