प्रयागराज (ब्यूरो)। डेंगू का डंक केवल लोगों को परेशान नहीं कर रहा है, हर साल सरकार के करोड़ों रुपए भी यह निगल जाता है और डकार तक नहीं लेता है। डेंगू-मलेरिया की रोकथाम के लिए प्रत्येक वर्ष भारी भरकम बजट सरकार मुहैया कराती है और इसका यूटिलाइजेशन भी किया जाता है, लेकिन रिजल्ट जीरो निकलता है। लाख कोशिशों के बावजूद मच्छर के डंक से हजारों मरीज सामने आ जाते हैं और कई की जान भी चली जाती है।
बजट तो पूरा खर्च किया जाता है
देखा जाए तो नगर निगम को हर साल चार करोड़ रुपए कीटनाशकों सहित डीजल और ब्लीचिंग की खरीद के नाम पर मिलते हैं। इसी तरह सीएमओ और जिला मलेरिया अधिकारी कार्यालय भी एक करोड़ से अधिक का बजट खर्च करता है। कुल मिलाकर डेंगू की रोकथाम में हर साल पांच करोड़ से अधिक खर्च हो जाता है। इस मामले में नगर निगम और मलेरिया विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हम बजट का पूरा उपयोग करते हैं। नगर निगम प्रशासन की माने तो कीटनाशक कम पडऩे पर सीएमओ कार्यालय से अलग से कीटनाशक मंगा लिए जाते हैं।
अलग अलग तरह से होता है यूज
मच्छरों को मारने के लिए दो तरह की कीटनाशक दवाओं का यूज किया जाता है। जिसमें से मैलाथियान टेक्निकल का यूज फागिंग के लिए किया जाता है। इसे डीजल के साथ मिलाकर धुएं के रूप में छोड़ा जाता है। माना जाता है कि इसके यूज से मच्छर भागने लगते हैं। दूसरी दवा टेमीफास है। ये मशीनों मे भरकर पंप के जरिए नालियों मेें स्प्रे किया जाता है। इसे एंटी लार्वा स्प्रे कहते हैं। खासकर नालियों की सफाई के बाद इस दवा का छिड़काव किया जाता है। जून माह में मलेरिया विभाग ने 200-200 लीटर मैलाथियान टेक्निकल और टेमीफास नगर निगम को उपलब्ध कराया है।
12 हजार टीमों को जिम्मेदारी
मच्छरों से निपटने के लिए हर साल 11 से 12 हजार टीमों का गठन किया जाता है। यह सभी अलग अलग विभागों को मिलाकर बनाई जाती हैं। सबसे ज्यादा टीमें स्वास्थ्य विभाग की होती हैं। इनमें संचारी अभियान के तहत 644 और दस्तक अभियान के तहत 4452 टीमों को लगाया जाता है। यह टीमें डेंगू मलेरिया साहित तमाम संचारी रोगों के प्रति लोगों को जागरुक करती हैं। दस्तक अभियान में टीमें घर घर जाकर बुखार के मरीजों की जांच कर इलाज उपलब्ध कराती हैं। जिससे डेंगू से किसी की जान न जाए।
हर वार्ड में चार-चार कर्मचारी
नगर निगम की ओर से शहरी एरिया में एंटी लार्वा और फागिंग के लिए चार-चार कर्मचारियों को रिजर्व रखा गया है। यह सभी इस सीजन में गली गली जाकर एंटी लार्वा स्प्रे करते हैं। साथ ही फागिंग का कार्य भी कराते हैं। अधिकारियों का कहना है कि इन कर्मचारियां को किसी दूसरे काम पर नही लगाया जाता है, क्योंकि मच्छरों के प्रकोप से हर साल कई लोग पीडि़त होते हैं, जिसको रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है। इसी तरह शहर में पांच दर्जन डीबीसी यानी डोमेस्टिक ब्रीड चेकर को तैनात किया गया है। यह घर घर जाकर मच्छरों के लार्वा की मौजूदगी का पता लगाते हैं।
फिर भी बढ़ते जाते हैं मरीज
इतना सब होने के बावजूद हर साल डेंगू के मरीजों की संख्या कम नही होती है। जितने मरीज सरकारी आंकड़ों में दिखते हैं उससे अधिक मरीज डेंगू के डंक से हर साल बीमार हो जाते हैं। देखा जाए तो 2018 से 2023 तक लगातार मरीजों की संख्या में इजाफा होता रहा है। कोरोना की वजह से 2020 में महज 57 ही मरीज सामने आए थे। 2022 में सबसे ज्यादा 1465 मरीज चिंहित किए गए थे। मरीजों का कम न होना और करोड़ो का बजट खर्च हो जाना लगातार सरकारी व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है।
कब मिले कितने मरीज
वर्ष मरीजों की संख्या
2018 830
2019 1121
2020 57
2021 1299
2022 1465
2023 505
हर साल खर्च होने वाला बजट
नगर निगम का सालाना बजट- 400 करोड़
जिला मलेरिया विभाग का सालाना बजट- 80 लाख
कुल लगाई जाने वाली टीमों की संख्या- 1182
लाखों करोड़ों का बजट हर साल स्वाहा हो जाता है लेकिन कोई हल नही निकलता है। लोग वैसे ही डेंगू से परेशान हैं। हमारे मोहल्ले में यदा कदा ही फागिंग होती है। एंटी लार्वा वाले तो नजर ही नही आते हैं।
हेमंत शुक्ला, गोविंदपुर
कछार और पॉश एरिया, दोनों इस सीजन में मच्छर से परेशान होते हैं। स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी की वजह से कई मोहल्लां में एंटी लार्वा और फागिंग नही हो रही है। बारिश का सीजन है और ऐसा ही चलता रहा तो फिर से डेंगू फैल सकता है।
रोहित केसरवानी, ओनर हीरा हलवाई एंड संस
हर साल सीजन में डेंगू के मरीज बड़ी संख्या में आते हैं। अगर इस रोग को रोकना है तो मच्छरों पर सीधा वार करना होगा। इसके लिए हर गली मोहल्ले में दवा का छिड़काव होना जरूरी है। साफ ही पब्लिक को जागरुक करना भी जरूरी है।
डॉ। राजीव सिंह, ओनर, नारायण स्वरूप अस्पताल