गंगा और यमुना नदी में पानी का बढ़ना सोमवार को भी रहा जारी

हजारों घरों में एक फ्लोर में घुसा पानी, छत पर रह रहे हैं लोग

PRAYAGRAJ: लाखों रुपये खर्च करके बेली कछार में लोग मुसीबत मोल ले लिए। खरीदी गई जमीन पर मकान बनवाने में जो खर्च हुआ वह अलग। कछार की जमीन में इमारत खड़ी करने वाले लोगों की एक भूल आज पछतावे की वजह बन गई है। गंगा में आई बाढ़ से बेली के तराई एरिया में त्राहिमाम की स्थिति है। पानी ने हजारों लोगों का रास्ता रोक दिया है। सैकड़ों लोग ऐसे हैं जिनके मकान का एक फ्लोर पूरी तरह डूब गया है। वह दूसरे फ्लोर पर जान हथेली पर लेकर बसर कर रहे हैं। सुकून भरी जिंदगी के लिए बनवाए गए घरों में भी ऐसे लोगों को चैन नहीं मिल रहा। बाढ़ से डूबे मकान में जिंदगी पर मंडरा रहे खतरे को देखते हुए घर छोड़ परिवार संग सैकड़ों लोग स्कूल में शरण ले रखे हैं।

तनती गई हवेलियां भरता गया कछार

प्रयागराज शहर में घर बनाने की चाहत में लोग बाढ़ के खतरे को नजरंदाज कर बैठे। देखी-देखा बेली कछार में जमीन खरीद कर लोग मकान बनवाते चले गए। गरीब ही नहीं, अमीर तबका भी इस कछार में बसने से पहले बाढ़ के खतरे का खयाल नहीं किया। बगैर रोक-टोक हवेलियां बनती गई और कछार भरता गया। किसी ने यह नहीं सोचा कि जहां वे मकान बनवा रहे उस जगह बाढ़ आएगी। जिनके मकान पुस्तैनी हैं उनकी तो खैर कोई बात ही नहीं। जो लोग जमीन खरीदकर कछार में घर बनवाए वह भी इस दिशा में आत्म मंथन नहीं किए। यही भूल आज हजारों लोगों के लिए मुसीबत का सबब बन गई है। गंगा में आई बाढ़ के चलते लोगों के मकान डूब गए हैं। सड़कें गहरे तालाब में तब्दील हो गई हैं। बाढ़ में जिनके एक फ्लोर डूब गए वह दूसरे तल पर शरण ले रखे हैं। बढ़ते हुए पानी को देख कर हर कोई यहां सहमा हुआ है।

इन मोहल्लों में है ज्यादा दिक्कत

बेली कछार के कई मोहल्ले ऐसे हैं जहां बाढ़ का पानी इतना है है कि आदमी डूब जाय। लोगों की मानें तो इनमें प्रमुख रूप से बेली गांव का कछारी इलाका, सुंदरम कॉलोनी, बेली कॉलोनी शामिल है। यहां लोगों के मकान के एक फ्लोर तक पानी चढ़ गया है।

एक तो प्रशासन कोई मदद नहीं कर रहा। ऊपर से कुछ पुलिस वाले आए थे वह लाइट कटवाने की बात कह रहे हैं। लाइट काट देंगे तो किसी तरह जो दूसरे तीसरे फ्लोर पर लोग हैं उनकी जिंदगी और दूभर हो जाएगी। कई मोहल्लों में लोग नाव से आवागमन कर रहे हैं। तमाम लोग घर छोड़ कर स्कूल में शरण ले रखे हैं।

प्रदीप यादव, बेली गांव यादव बस्ती

गंगा का पानी काफी तेजी से बढ रहा है। सड़कों पर तालाब की तरह पानी भरा हुआ है। मेरी कॉलोनी में इतना पानी है कि लोग डूब जाय। किसी तरह सभी जीवन बसर कर रहे हैं। पानी भी गंगा ही आ रहा है। जान हथेली पर रख कर सभी आवागम कर रहे हैं।

हर्षित त्रिपाठी, बेली कॉलोनी

तमाम लोग ऐसे हैं जिनके मकान पुस्तैनी हैं। मेरे भी एक घर में पानी भर गया है। हमारी पीढि़यां इस समस्या से जूझती आई हैं। हमें याद है सन 78 में त्रिपाठी चौराहे तक कमर भर पानी था। उस वक्त डीएम भूरेलाल मिलिट्री व पब्लिक संग खुद बोरियां ढोकर लोगों की जान बचाए थे। सरकार बांध बनवाने पर ध्यान नहीं दे रही।

रोशन लाल यादव

बेली गांव यादव बस्ती

शहर में जमीन है नहीं, जो है भी इतनी महंगी कि आम आदमी खरीद नहीं सकता। इसीलिए किसी सूरत कछार में ही लोग जमीन लेकर मकान बनवा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि बांध बनवाने का प्रबंधक करे। यह समस्या कोई नई नहीं है। मेरे घर के ग्राउंड फ्लोर में खुद पानी भर गया है।

वसीम अहमद,

बेली गांव यादव बस्ती

बड़ी मुश्किल में तो यहां मकान बनवा पाए। आज बाढ़ में डूब गया तो क्या कर सकते हैं। इसके पहले भी बाढ़ में आई थी तो परिवार संग इसी स्कूल में शरण लिए थे। यहां एक बेटी व बेटे के साथ हैं। जमीन लिए तो बताया गया था कि बांध बनने वाला है। आज तक नहीं बना।

अनीता देवी, बेली कछार

मेरे मकान का एक फ्लोर डूब गया है। दूसरे फ्लोर के छत पर सामान रखे हैं। पति व बच्चे अभी उसी दूसरे फ्लोर पर ही हैं। क्योंकि सामान चोरी का खतरा है। मैं यहां कॉलेज में हूं। पूरे परिवार का यहां नाम लिखा है। स्थिति और खराब हुई तो पति बच्चे भी आ जाएंगे।

माधुरी देवी, बेली कछार

मैं मूल रूप से कौशाम्बी का हूं। रिश्तेदार यहां रहते हैं इसलिए हम भी आ गए। जिनसे जमीन खरीदे थे वह बताया था कि जल्द ही बांध बन जाएगा। सरकार से पास हो गया है। सात साल हो गए आज तक बांध नहीं बना। अब मकान बनवा लिए हैं तो जा भी नहीं सकते। जैसे तैसे जीवन काट रहे हैं।

कमल तिवारी, बेली कछार

गंगा मइया जैसे चाहेंगी वैसे ही रहेंगे। यह दिक्कत हम अकेले तो नहीं झेल रहे हैं। हम सब के मकान में पानी भरा है इसलिए स्कूल में शरण ले लिए हैं। जो सक्षम हैं वह आज भी घरों के दूसरे व तीसरे फ्लोर पर रह रहे हैं।

शशि तिवारी, बेली कछार

तहरी खाकर बिताना पड़ रहा दिन

महबूब अली इंटर कॉलेज में शरण लेने वालों का दिन सिर्फ तहरी खाकर बीत रहा है। यहां उन्हें दोपहर के वक्त तहरी दी जाती है। इसके बाद सीधे रात में पूड़ी सब्जी मिली है। सुबह एक व्यक्ति को एक केला और बिस्किट का पैकेट नाश्ते में मिलता है। छोटे बच्चों को दूध के नाम पर सिर्फ कोरम पूरा किया जा रहा है। एक साल के बच्चे को चौबीस घंटे में महज आधा लीटर दूध दिया जा रहा है।

शरणार्थियों के लिए खाने का कोई मैन्यू निर्धारित नहीं है। आवश्यकता अनुसार सभी को खाना उपलब्ध कराया जा रहा है। बच्चों के लिए जितने दूध की डिमांड आती है उसे सप्लाई कराया जाता है।

दिवाकर, लेखपाल