प्रयागराज ब्यूरो । पुष्पराज ने शायद ही कभी सोचा होगा कि उनके साथ ऐसा भी होगा। पुष्पराज की सादगी ही उनके बेटे के जान की दुश्मन बन गई। रविवार को बेटे का शव पकड़कर पुष्पराज बिलखते रहे। मां और बहन भी चुप होने का नाम नहीं ले रही थी। परिवालों का हाल देख वहां मौजूद लोगों की भी आंखें नम हो गईं। अंतिम संस्कार के लिए शव को ले जाया जाने लगा तो परिवार की चित्कार सुनकर लोगों का कलेजा दहल गया।
पुष्पराज की किराना की दुकान है और ट्रकें चलती हैं। व्यवहार अच्छा होने की वजह से बाजार में पुष्पराज की खासी साख है। पुष्पराज का धंधा दिन दूना रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ रहा था। धंधा अच्छा होने की वजह से रुपये पैसे की कोई कमी नहीं थी। शुभ पुष्पराज का एकलौता बेटा था। वह काक्ष सात का छात्र था। पुष्पराज बेटे को व्यापारी बनाना चाहते थे। इसलिए उसे दुकान पर बैठाते थे। जब ट्रकें आती थीं तो हिसाब किताब के दौरान भी शुभ साथ रहता था। पंद्रह साल का शुभ व्यापार की समझ रखने लगा था। मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। शुभ की हत्या से पुष्पराज का पूरा परिवार टूट गया। बेटे का शव पकड़कर बहुत देर तक पुष्पराज रोते रहे। मां राखी और बहन टिंवकल भी लगातार रोती रहीं। शव ले जाया जाने लगा तो मां राखी का रोना देख वहां मौजूद महिलाएं भी रोने बिलखने लगीं।
अब किसके सहारे जिएंगे शुभ
मां राखी बेटे शुभ का शव पकड़कर रोए जा रही थी। वह बार बार यही कर रही थी अब किसके सहारे जिएंगे शुभ। शुभ क्यों तुम चले गए। पुष्पराज का बुरा हाल था। आसपास की महिलाएं मां रखी को पकड़कर समझाने का प्रयास कर रही थीं। मगर उसका कोई असर नहीं था।