प्रयागराज ब्यूरो । डकैत सामान समेटकर भागे तो जाते वक्त दरवाजा बाहर से बंद कर गए। कुछ देर बाद संतोष ने दरवाजा खोलने का प्रयास किया तो दरवाजा बाहर से बंद था। इस पर संतोष ने पड़ोसी रोशन भारतीया को फोन किया। रोशन ने आकर दरवाजा खोला। अंदर दुकान वाले कमरे में अशोक खून से लथपथ पड़े थे। संतोष ने अपने परिवार के लोगों को फोन किया। संतोष के तीन भाई हेतापट्टी से करीब एक किलोमीटर दूर बहादुरपुर में रहते हैं। इस बीच संतोष अपने साथी राजेश केसरवानी की कार से पत्नी और भाई को लेकर बेली अस्पताल रवाना हो गए। बेली अस्पताल में जब उन्हें भर्ती नहीं किया गया तो संतोष सभी को एसआरएन ले गए। वहां उपचार शुरू हुआ।
बोली भाषा से लग रहे थे बाहरी
संतोष ने बताया कि डकैत बोली भाषा से बाहरी लग रहे थे। बात बात पर डकैत गाली दे रहे थे। मार देने के लिए कह रहे थे। एक डकैत ने हाथ में करीब डेढ़ फीट लंबा धारदार छेनी नुमा हथियार ले रखा था। उसका हाथ और धारदार हथियार खून से सना था।
पूरे शरीर पर किया वार मगर बच गई जान
जाको राखे साइयां मार सके न कोय। अशोक पर यह लाइनें बिल्कुल खरी उतरती हैं। अशोक के सिर, चेहरे और पेट पर चोट और कटे के इतने निशान हैं कि उनकी पूरी शरीर खून से भीग गई थी। संतोष को लगा कि भाई का बच पाना मुश्किल है। इसलिए बगैर देरी किए वह फौरन भाई और पत्नी को लेकर अस्पताल के लिए रवाना हो गए। संतोष ने बताया कि अशोक को पूरे शरीर में सत्तर से अधिक टांके लगे हैं।
अस्पताल में लगाई पुलिस टीम
घायलों को सुरक्षा देने के लिए थरवई थाने की एक पुलिस टीम दरोगा अमित कुमार चौबे के नेतृत्व में लगाई गई है। पुलिस टीम घायलों की लगातार निगरानी कर रही है।