¨जदगी और मौत के बीच आठ महीने तक संघर्ष करते रहे नरेंद्र, बड़े भाई ने दी मुखाग्नि

नक्सली हमले से घायल होने के बाद सोमवार को दम तोड़ने वाले सैनिक नरेंद्र का पार्थिव शरीर बुधवार की सुबह आर्मी के एंबुलेंस के जरिए सड़क मार्ग होते हुए उनके पैतृक गांव पइंसा के रामसहायपुर लाया गया। साथ आए सेना के जवानों ने शहीद को श्रद्धांजलि दी। इसके बाद शहीद को उनके बड़े भाई ने मुखाग्नि दी।

जनवरी में नक्सली हमले हुए जख्मी

जनवरी माह में तेलंगाना बार्डर के पास हुए नक्सली हमले में कई जवान शहीद हो गए थे। जबकि सैनिक नरेंद्र जख्मी हो गए थे। पइंसा के रामसहायपुर गांव के रहने वाले नरेंद्र इंजीनिय¨रग बटालियन 72 स्पेशल टास्क फोर्स में सिपाही पद पर तैनात थे। घायल हुए नरेंद्र को महाराष्ट्र के पुणे स्थित आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। ¨जदगी और मौत के बीच नरेंद्र आठ महीने तक संघर्ष करते रहे। सीने में गोली लगने के कारण 19 अगस्त को नरेंद्र का डाक्टरों ने आपरेशन किया। इसके बाद वह कोमा में चले गए और सोमवार की दोपहर दम तोड़ दिया। परिवार के लोगों को जानकारी हुई तो शहीद का पार्थिव शरीर लेने के लिए पिता लल्लूराम कई लोगों के साथ पुणे पहुंचे।

सैनिकों ने शहीद को दी सलामी

जानकारी होने पर विधायक सिराथू शीतला प्रसाद पटेल, विधायक मंझनपुर लालबहादुर के अलावा जिलाधिकारी सुजीत कुमार, एसपी राधेश्याम, एसडीएम राजेश श्रीवास्तव, सीओ योगेंद्र कृष्ण नारायण व पइंसा थाना की पुलिस फोर्स पहुंची। करीब दो घंटे बाद प्रयागराज के तेलियरगंज से भी आर्मी के जवान आए। गम और आंसुओं के बीच सैनिकों ने शहीद को सलामी दी।

ध्वज को सलामी देने के लिए बेड से उठ खड़ा हुआ था नरेंद्र

¨जदगी और मौत के बीच आठ महीने तक लगातार अस्पताल में इलाज करा रहे सैनिक नरेंद्र के दिल में आखिरी दम तक देश के प्रति समर्पण की भावना मौजूद रहीं। स्वतंत्रता दिवस पर आखिरी बार नरेंद्र खुद ही अस्पताल के बेड से उठकर ध्वजारोहण स्थल तक पहुंचा। साथ ही ध्वज को सलामी भी दिया। राष्ट्रगान के बाद चिकित्सक नरेंद्र को फिर से अस्पताल के बेड तक लेकर गए ।

दो माह पहले हुई थी बेटी

शहीद हुए नरेंद्र की पत्नी दीपा ने बताया कि शादी के 12 साल बीतने के बाद भी उन्हें तीन बेटियां ही हुईं। नरेंद्र के तीन संतानों में बड़ी बेटी वैशाली, दूसरी आइना व तीसरी सीकू हुईं। नक्सली हमले के बाद आठ महीने से नरेंद्र अस्पताल में भर्ती रहे। इस दौरान दीपा गर्भवती थी। दो माह पहले ही बेटी सीकू पैदा हुई। फूट-फूट कर रो रही दीपा का कहना था कि यदि सबसे बड़ा बेटा होता तो आज पिता को मुखाग्नि वही देता। अब बेटियां ही उसकी ¨जदगी का सहारा बची हैं।

शहीद के नाम से बनेगा द्वार व स्मारक स्थल

देश के लिए बलिदान देने वाले शहीद नरेंद्र दिवाकर के नाम से स्मारक व द्वार स्थल बनाया जाएगा। इसके अलावा परिवार को एक बीघा भूमि पट्टा आवंटित करने के लिए भी शासन से मांग की जाएगी। इसकी पहल विधायक सिराथू शीतला प्रसाद पटेल करेंगे। उन्होंने पीडि़त परिवार को आश्वासन भी दिया है।

दहाड़ मारकर रोया परिवार, सबकी आंखें हुईं नम

शहीद फौजी नरेंद्र दिवाकर का पार्थिव शरीर गांव पहुंचा तो घर में मातम छा गया। करुण क्रंदन के बीच परिवार को ढांढस बंधा रहे ग्रामीणों के भी आंखों में आंसू रहा। बेजान पड़े बेटे को देख कुछ देर के लिए पिता लल्लूराम सहम गया और एकांत में एक दीवार के सहारे खुद को संभालते हुए सिसकने लगा। मां सुदामा देवी व पत्नी दीपा पार्थिव शरीर के पास छाती पीट-पीट कर रोती रहीं.

तिरंगे में लिपटे सैनिक पर गिराए श्रद्धा के बूंद

बात जब वतन के रखवालों की होती है तो सरहद पर जंग लड़ रहे सैनिकों की सलामती के लिए हर कोई ईश्वर से प्रार्थना करता है और जब सैनिक शहीद होता है तो उसकी शहादत को याद कर लोग गम में भी डूब जाते हैं। ऐसा ही माहौल पइंसा के रामसहायपुर गांव में भी उमड़े जनसैलाब के बीच देखने को मिला। नरेंद्र का पार्थिव शरीर पहुंचते ही एक तरफ परिवार का करुण क्रंदन शुरू हुआ तो आसमान भी रो पड़ा। इस बीच आसमान में काले बादल छाए और मंद हवाओं के बीच बारिश शुरू हो गई। धीरे-धीरे हो रही बारिश को देख वहां मौजूद लोग अवाक रह गए और सभी यही कहते रहे कि शहीद की शहादत में आसमान भी रो रहा है और श्रद्धा सुमन के रूप में बारिश की बूंद तिरंगे में लिपटे नरेंद्र के पार्थिव शरीर पर गिरा रहा है। करीब 20 मिनट तक बारिश की बूंदे शहीद पर गिरती रहीं।