प्रयागराज (ब्यूरो)। खेवरापुर कांड से पहले 2028 में 19 मार्च को नवागंज के शहाबपुर उर्फ पसियापुर में तीन लोगों की हत्या की गई थी। क्राइम सीन को नजदीक से जानने वाले एक्सपर्ट कहते हैं कि इस घटना में भी कातिलों ने कोई ठोंस सुबूत नहीं छोड़ा था। जिस धारदार हथियार से हत्या की गई थी वह तक मौके से पुलिस को नहीं मिले थे। घटना के खुलासे में जुटी पुलिस को लोहे के चने चबाने पड़ गए थे। किसी तरह पुलिस एक शख्स को गिरफ्तार घटना का खुलासा की तो सवाल खड़े हो गए। पुलिस द्वारा बताई गई थ्योरी पर लोगों के बीच कई गंभीर सवाल उठे, जिसका जवाब आज तक पुलिस नहीं दे सकी है। बताते चलें कि इस घटना में मारे गए लोगों में सुशीला देवी, उसका बेटा सुनील और अनिल शामिल था।
हत्यारे कहीं नहीं छोड़े अपना सुराग
इसी पैटर्न पर कातिलों ने 2020 में पांच जनवरी को सोरांव के यूसुपुर गांव में वारदात को अंजाम दिया था।
यहां घर के अंदर सो रहे विजय शंकर तिवारी, उसकी पत्नी, सोनी, बेटा सोनू, मासूम कान्हा एवं कुंज शामिल था।
पांच लोगों की इस सामूहिक हत्या में भी कातिलों ने धारदार हथियार का प्रयोग किया था।
तत्कालीन आईजी व एसएसपी सत्यार्थ अनिरूद्ध पंकज सहित तमाम आलाधिकारी मौके पर पहुंचे थे। बारीकी से की गई छानबीन के बावजूद पुलिस के हाथ मौके से कोई ऐसा सुबूत पुलिस को नहीं मिला जिसके दम पर वह कातिलों तक पहुंच सके।
मामले में मृतक के बेटे की तहरीर पर पट्टीदार के ही आधार दर्जन लोग नामजद किए गए थे।
चूंकि आरोपितों के खिलाफ पुलिस को कोई साक्ष्य नहीं मिले। हालांकि उस वक्त गंगापार में रहीं कई टीमें तमाम तरह के दावे की थीं।
उनके द्वारा किए गए दावे में सच्ची व साक्ष्य का अभाव रहा। लिहाजा तत्कालीन
एसएसपी मानने से इंकार कर दिए।
कुछ दिनों के बाद मामले में कुछ घुमंतू परिवार के लोगों को पकड़ कर उन्हें छैमार गैंग बताते हुए किसी खुलासे का दावा करी थी।
इस खुलासे में भी पुलिस के पास पकड़े गए लोगों के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं था। लिहाजा आज तक घटना का पूरी तरह से खुलासा नहीं हो सका था।
यह दो घटनाएं तो सिर्फ एक उदाहरण मात्र हैं। इस तरह की गंगापार में कई सामूहिक हत्याएं पूर्व में हैं। जिसमें सबूत नहीं छोड़कर हत्यारे पुलिस की चाल को मात देते आए हैं।
अब खेवराजपुर कांड में बगैर किसी क्लू व कातिलों के सुबूत जैसी चीजों के मिले पुलिस कातिलों तक कैसे पहुंच सकेगी? अब इस सवाल का जवाब आने वाला वक्त ही तय करेगा।