डयूटी के बाद निभा रहे हैं सेवा धर्म, नेक सोच के साथ किए शुरुआत तो बढ़ती गई सहयोग करने वालों की फौज

PRAYAGRAJ: नेक सोच के साथ दिल में अच्छा करने की चाहत हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। शुरुआत अकेले ही करनी पड़ी है, कारवां बाद पीछ खुद-ब-खुद बन जाते हैं। इसका उदाहरण बने हैं तीन सिपाही जिन्होंने डयूटी के बाद मानवता की सेवा को अपना पैशन बना लिया है।

शुरुआत के लिए नहीं चाहिए भीड़

'पुलिस मित्र' के नाम से रक्तदान का सिलसिला कांस्टेबल आशीष मिश्रा ने शुरू किया था। आज इस गु्रप से जुड़कर प्रदेश भर में 20 हजार से भी अधिक लोग जरूरतमंदों को ब्लड देकर जान बचाने का काम कर रहे हैं। शुरुआती दौर में मुश्किलें आई, पर आज पुलिस मित्र नाम हर किसी की जुबान पर है। इसी तरह कांस्टेबल सुमित कुमार द्वारा 'पुलिस वाले अच्छे होते हैं' नाम से पहल की गई। फेसबुक पर इसी नाम से आईडी बनाए और जन सेवा में जुट गए। ड्यूटी के साथ या बाद जरूरतमंदों की सेवा के उनके इस कार्य को आज करीब 200 लोग कर रहे हैं। बढ़ते साइबर अपराध को देखते हुए सत्येश रॉय पब्लिक को जागरूक करने का मन बनाया। फेसबुक के जरिए वह साइबर अपराध से बचने के लिए लोगों को तरीके बचाते व वीडियो बनाकर समझाने में जुटे हैं। इनके फेसबुक पेज पर साइबर अपराध में क्रिएट हो रहे नए-नए तरीकों व उससे बचाव के टिप्स वह देने में जुटे हैं।

आशीष मिश्र

पांच साल पहले बनाया पुलिस मित्र ग्रुप

जीवनदाता के रूप में पहचान बना चुके आशीष ने 'पुलिस मित्र' की स्थापना 25 फरवरी 2017 में की थी। वह कहते हैं कि ऐसा करने की पे्ररणा मुझे ब्लड के अभाव में दम तोड़ते लोगों को देख कर मिली थी। शुरुआत में अकेला था। मगर, शीर्ष अफसरों का पूर्ण सपोर्ट और साथियों का सहयोग इसे एक मिशन बना दिया। प्रयागराज के आईजी खुद ग्रुप के संरक्षक हैं। आशीष कहते हैं कि ब्लड के लिए कोई चार्ज नहीं है। हम सब यह काम सेवा भाव से करते हैं और करते रहेंगे। मैं मीरजापुर का रहने वाला हूं। मन को बड़ा सुकून मिलता है जब दिए गए ब्लड से किसी की जिंदगी बच जाती है उसके परिवार के लोग खुश हो जाते हैं।

आशीष मिश्रा, कांस्टेबल आईजी कार्यालय

'पुलिस वाले अच्छे होते हैं'

इस पेज की शुरुआत की कोई खास वजह नहीं थी। 2015 में जब भर्ती हुआ तो बांदा अपने घर से विभाग का हिस्सा बन गया। ड्यूटी के वक्त देखता था कि लोगों के पास दवा तक के पैसे नहीं होते थे। हम सब हॉस्पिटल पहुंचा तो देते थे उनकी मदद नहीं कर पाते थे। तब वह पुलिस वालों को कोसा करते थे। यही सब देखकर खयाल आया कि ऐसे लोगों की मदद करेंगे। बस, सोशल मीडिया का सहारा लिया और शुरू कर दिया। आज करीब 200 लोग जुड़े हैं। कॉल आने पर जो ड्यूटी पर होते हैं किसी दूसरे साथी को सूचना देते हैं वह जाकर कॉलर की यथा संभव हेल्प करते हैं। मदद के लिए थोड़े बहुत पैसे हम सब आपस में चंदा कर लेते हैं।

साइबर क्राइम में हर संभव मदद

वर्ष 2011 में जब मेरी भर्ती हुई तो तमाम जगह ड्यूटी किया। कम्प्यूटर की जानकारी हमें पहले से ही थी। सुनते थे कि साइबर शातिर लोगों के खाते से रुपये निकाल लिए। बड़ी तकलीफ होती थी, लोग कितनी मेहनत से पैसे जोड़ते हैं। शीर्ष अफसरों ने काम करने का मौका दिया और साइबर थाने में पोस्टिंग दी गई। यहां आया तो और भी तमाम साइबर से जुड़ी टेक्टिनकल जानकारियां सीनियरों से प्राप्त हुई। साइबर शातिर आए दिन लोगों को ठगने के नए-नए तरीके अपनाते हैं। जानकारी होती नहीं इस लिए लोग इनके झांसे में आ जाते हैं। यही सब देखकर खयाल आया कि साइबर अपराध व इससे बचाव के प्रति लोगों को जागरूक करें। एक साथ सब तक पहुंचना संभव भी नहीं था, इस लिए फेसबुक व अन्य माध्यमकों का सहारा ले रहे हैं। लोग जो सवाल करते हैं उनके उत्तर भी देते हैं।

आशीष रॉय, कांस्टेबल आईजी रेंज कार्यालय