प्रयागराज ब्यूरो । हेरीटेज बिल्डिंग के संरक्षण में वर्क करने वाले आईटी के इंजीनियर ने बिल्डिंग का खोजा कुछ इतिहास
क्कक्र्रङ्घ्रत्रक्र्रछ्व: नगर निगम की बिल्डिंग में आजादी के पूर्व क्या था? उस दौर में इस बिल्डिंग को अंग्रेज किस नाम से बुलाते थे। यदि यह सब कुछ जानने की इच्छा है तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। आज आप के इन सारे सवालों का जवाब इस खबर में मिल जाएगा। हम आप को इस हेरीटेज बिल्डिंग के बारे में बताएं, इसके पहले यह जान लीजिए कि बहुत जल्द यह ब्रिटिश काल वाले लुक में दिखाई देगी। बिल्डिंग की दीवार से लेकर दरवाजे तक को आजादी के पूर्व वाले लुक बनाया जाएगा। आजादी के पूर्व जिस शक्ल में यह बिल्डिंग थी सेम उसी तरह बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इस बिल्डिंग को धरोहर मानते हुए अब नगर निगम इसे संरक्षित करने में जी-जान लगा दिया है। प्लान के मुताबिक काम भी शुरू हो गया। इसे बनाने के लिए हेरीटेज बिल्डिंग का वर्क कराने वाली कंपनी को हॉयर किया गया है।

किस सन में हुआ निर्माण, खोज जारी
देश की आजादी के पूर्व नगर निगम की इस बिल्डिंग में होटल चलता था। इस होटल को ब्रिटिश काल में होटल लोरीज के नाम से जाना जाता था। जिस रोड पर यह होटल था उस दौर में इसे क्वीन रोड के नाम से अंग्रेज जाना करते थे। आजादी के बाद इस सड़क का नाम बदल कर सरोजनी नायडू मार्ग कर कर दिया गया। बिल्डिंग में काम शुरू करने से पूर्व आईटी इंजीनियर के द्वारा इसकी ऐतिहासिकता की खोज की गई। इसी पड़ताल में उन्हें इस बिल्डिंग के कुछ रहस्यों के बारे में पता चला। बताते हैं कि ब्रिटिश काल में मार्कट््वीन नामक लेखक इलाहाबाद आया था। उस लेखक को इसी होटल लोरीज में ठहराया गया था। इस बात का जिक्र इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर रहीं नीलम सरन गौर की बुक में किया गया था।
अखबार में प्रकाशित हुआ था विज्ञापन
आईटी इंजीनियर की मानें तो जिसमें उन्होंने इस बिल्डिंग में आजादी के पूर्व होटल लोरीज के होने का जिक्र किया है। इतना ही नहीं पड़ताल में इस होटल से सम्बंधित एक अखबार में प्रकाशित विज्ञान का भी पता लगाया है। वह विज्ञान उस दौर के किस अखबार और डेट में प्रकाशित था। यह स्पष्ट नहीं है। बिल्डिंग में चल रहे रेस्टोरेशन वर्क के दौरान भी कहीं कोई ऐसा शिलापट नहीं मिला जिसपर बिल्डिंग के निर्माण की सदी लिखी हो। हालांकि लगाए गए कर्मचारियों को ऐसे किसी भी पत्थर के मिलने पर तत्काल उन्हें खबर देने के निर्देश दिए गए हैं। उनका मानना है कि यह तो कंफर्म है कि बिल्डिंग ऐतिहासिक व ब्रिटिश काल की है। निर्माण से सम्बंधित डेट कहीं नहीं मिल पाने के कारण कितनी पुरानी है? यह पता कर पाना मुश्किल हो गया है। नगर निगम के चीफ इंजीनियर के मुताबिक इस बिल्डिंग को आजादी के पूर्व वाले स्वरूप में लाने के लिए चल रहे कार्य पर करीब नौ करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत हुआ है।


आजादी के बाद यहां था म्यूजियम
देश की आजादी के बाद इस बिल्डिंग में संचालित होटल बंद हो गया था। इसके बाद यहां इलाहाबाद म्यूजियम की स्थापना की गई थी। जब यहां म्यूजियम था उस वक्त बिल्डिंग के बाहरी दीवारों पर नीव से सटे हुए देवी देवताओं व महापुरुषों की छोटी-छोटी प्रतिमाएं लगाई गई थीं। वक्त बीतने के बाद इलाहाबाद म्यूजियम की अपनी बिल्डिंग में तैयार हो गई। यहां से म्यूजियम का सारा कुछ अपनी बिल्डिंग में शिफ्ट कर दिया गया। मगर वह दीवार के बाहर लगाई गई छोटी वह प्रतिमाएं हटाई नहीं गईं। यही वजह है कि आज भी वह प्रतिमाएं नगर निगम की बिल्डिंग के चारों तरफ दिखाई देती है।

इस बिल्डिंग के निर्माण की कोई डेट या सन लाख कोशिशों के बावजूद मालूम नहीं चल सका है। अब तक की गई पड़ताल से यह स्पष्ट है कि आजादी के पूर्व इस बिल्डिंग में होटल लोरीज था। अंग्रेजों के सारे दफ्तर इसी रोड या आसपास हुआ करते थे। आने वाले अंग्रेजी शासन इसी होटल में रुकते थे। आजादी के बाद इस बिल्डिंग के बदले गए पुराने लेआउट को वापस लाने का काम चल रहा है।
वैभव मैनी, आईटी इंजीनियर

इस ऐतिहासिक बिल्डिंग के रेस्टोरेशन वर्क में करीब नौ करोड़ रुपये खर्च होंगे। पूरी कोशिश है कि यह बिल्डिंग अपने पुराने वेशभूषा में वापस आ जाएगा। इसके लिए ऐतिहासिक बिल्डिंगों संरक्षित करने वाली अनुभवी संस्था को लगाया गया है।
सतीशचंद्र, चीफ इंजीनियर नगर निगम