- तहसीलों में सरकारी कंबल बांटने की रफ्तार धीमी

- कई तहसीलों में पूरा नही हो सका

लक्ष्य, ध्यान नही दे रहे कानूनगो और लेखपाल

प्रयागराज- सरकार की कोशिश है कि आमजन तक उनकी योजनाओं का लाभ आसानी से मिल जाए। लेकिन संबंधित अधिकारी ही नहीं चाहेंगे तो यह मुमकिन नहीं। चाहे राशन का मामला हो या फिर कंबल वितरण का। कर्मचारी ही इनका पलीता लगा रहे हैं। बात करें इस बार ठंड में कंबल वितरण की तो इसकी गति काफी धीमी है। सर्द हवा चलने स ठंड अपने चरम पर है। अगर इस सीजन में सरकारी कंबल नही बांटा गया तो फिर इसका कोई फायदा नहीं होगा। लेकिन यह बात सरकारी महकमे के जिम्मेदार कर्मचारियों को समझ नहीं आ रही। सरकार का तत्काल कंबल बांटने का सख्त आदेश का भी पालन नही किया जा रहा है।

बिना कंबल कांप रहे मजबूर

वैसे तो जिले में हजारों-लाखों की संख्या में ऐसे लोग होंगे जिन्हें भीषण ठंड में गर्म कपड़े नसीब नहीं हैं। उनको किसी न किसी की रहमत से कंबल या रजाई हासिल हो जाती है। इसी को ध्यान में रखकर सरकार हर साल कंबल वितरण की जिम्मेदारी प्रत्येक जिले को सौंपती है। इन जिलों के कानूनगो और लेखपालों को यह काम तय समय में पूरा करना होता है। लेकिन प्रयागराज में ऐसा नही है। यहां हजारों की संख्या में कंबल अभी तक जरूरत मंदों तक नही पहुंच सके हैं।

इन तहसीलों में पिछड़ गया काम

जिले की आठ तहसीलों में हंडिया, मेजा, कोरांव और फूलपुर में कंबल वितरण शत- प्रतिशत होने की जानकारी दी जा रही है। जबकि सोरांव, करछना, बारा और सदर तहसील में यह रिकार्ड अच्छा नहीं कहा जा सकता है। यहां पर तेज ठंड होने के बावजूद कंबल तहसील के स्टोर की शोभा बढ़ा रहे हैं। बुधवार तक बांटे गए कंबल की संख्या इन तहसीलों में काफी कम थी। सबसे ज्यादा खराब स्थिति सदर तहसील की है। यहां पर 500 से अधिक कंबल बांटने का इंतजार कर रहे हैं।

किस तहसील में कितना हुआ काम

तहसील कितने बांटे गए कितने आवंटित हुए

सोरांव 976 1500

करछना 1157 1500

बारा 1169 1300

सदर 2110 2624

ऑनलाइन फीडिंग करना जरूरी

पिछले कुछ सालों में कंबल वितरण की व्यवस्था तेजी से बदली है। पहले इसका विवरण तहसीलों द्वारा मैनुअल दिया जाता था लेकिन अब सरकार ने ऑनलाइन फीडिंग की व्यवस्था कर दी है। जिसमें लेखपाल और कानूनगो को लाभार्थी का आई कार्ड और अंगूठे का निशान पोर्टल पर शेयर करना पड़ता है। यानी प्रत्येक लाभार्थी की डिटेल देनी जरूरी है। यह सिस्टम जिम्मेदारों को रास नहीं आ रहा है। जिसके चलते कंबल वितरण का काम धीमी गति से चल रहा है।

332 रुपए का खरीदा गया प्रति कंबल

महंगाई के जमाने में सरकार ने पहले ही 332 रुपए का कंबल वितरण के लिए दिया है। अब इसे बांटने में हो रही लेटलतीफी गरीबी में आटा गीला होने की कहावत को सही साबित कर रही है। हालांकि इसको लेकर जिले के उच्च अधिकारी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। उनका कहना है कि कंबल वितरण में देरी करने वालों पर कार्रवाई हो सकती है।